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बुधवार, 25 दिसंबर 2013

डायरी के पन्नों से....


आज मैने खुद से ही बेइमानी की। मैने कसम खाई थी तुमसे बात ना करने की, मगर फिर भी तुम्हे फोन किया, हाँ बोला कुछ भी नही। आज पहली बार हमारे बीच शब्द दीवार बन गये, एक ऐसी दीवार जिसे मै पार नही कर पाई। शायद तुम्हे दी हुयी कसम को तोड देना मेरे बस की बात नही। मगर खुद को तसल्ली नही हुयी, रात के ढलते ढलते एक एस. एम. एस. कर ही दिया , एक शब्दहीन एस. एम. एस.। पुराना साथ और आदते जाते जाते ही जाती हैं । सच एक आदत ही तो बन गये थे तुम , मगर अब छोडनी ही होगी ये आदत, क्योकि बाकी का सारा जीवन इस आदत के बिना ही जीना होगा  
अब तो मेरे सुख से ना किसी को खुशी होती होती है ना दुख से तकलीफ दिन भर में कितनी बार तुम्हारे लिये ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ, तुम्हारे खुशहाल और सफल जीवन के लिये , ये तो मुझे भी नही पता तुम जहाँ भी रहो , खुश रहो, सुखी रहो। क्या करूँ, मजबूर खुद से ही हूँ, जब किसी को हम एक बार अपना समझ लेते है तो उसके लिये चाह कर भी बुरा सोच भी नही पाते, क्योकि जानते है कि अगर कभी भूले से भी उसकी कोई खबर मिली और वो बुरी हुयी तो तकलीफ इस दिल को ही होगी।  
तुम भले ही मुझसे दूर चले गये, तुमने मुझे वो हर चीज वापस कर दी, जो तुम्हे मेरी याद दिला सकती थी, मुझसे भी तुमने वो हर चीज मांग ली, जो कभी तुमने मुझे प्यार् की सौगात समझ कर दिया था,
मै चाहती तो कुछ भी वापस ना करती, मगर मै ऐसा ना कर सकी, क्योकि मै जानती थी कि ये दिये हुये तोहफे तुम्हे याद करने का जरिया नही
मेरी जिन्दगी की जमा पूँजी है तुम्हारे साथ बिताये वो पल जिसमे सिर्फ अपना पन था, मासूमियत थी, सपने थे , उमंगें थी, संगीत था, सरगम था, और था ईश्वर
मगर तुम डरना नही, मै कभी इन यादों की पूंजी लेकर तुम्हारे पास वापस नही आऊँगी
मै हमेशा वही रहूंगी, वैसे ही रहूंगी, जैसा तुम छोड कर गये हो, वैसे ही, उसी रूप मे , उसी तरह जिसे देख कर तुमने कहा था- तुम्हारी आंखों मे मुझे लगता है कोई आइना छुपा है- जिसमें मैं अपने को देखता हूँ शायद इसीलिये इन आंखों मे कभी आंसू भी नही आते, कि कहीं इसमे बसा आइना धुंधला ना हो जाय

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