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शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

तन्हाई मेरी ......................



तन्हा तन्हा सी रहती है तन्हाई मेरी
रात भर जागती रहती है तन्हाई मेरी

खुद में हंसती है कभी, कभी रो लेती है
ख्वाब कुछ बुनती, रहती है तन्हाई मेरी

दो कदम उजालों में कभी, कभी सायों में
शामों सहर सफर में, रहती है तन्हाई मेरी

सुर्खी अख्बार की, कभी खामोश गजल
 कहानी किस्सों में, रहती है तन्हाई मेरी

रूठ जाती कभी, कभी मचल भी जाती है
आजकाल नाराज सी, रहती है तन्हाई मेरी

लोग मिलते है कभी, कभी बिछड जाते हैं
साथ हर पल चलती, रहती है तन्हाई मेरी


मंगलवार, 26 जुलाई 2016

कलाम को सलाम


कलाम एक व्यक्ति नही, सच्चे जीवन का पयार्य हैं। यहाँ कलाम जी के लिये था शब्द का प्रयोग मुझे व्यक्तिगत रूप से न्याय संगत नही लगता। कलाम जी का जीवन के प्रति नजरिया, उनकी उपलब्धियां, उनका देश और कार्य के प्रति समर्पण, उनका सादा जीवन जीने का आचरण, उनका समय प्रबन्धन, उन्हे युग पुरुष बनाता है। कलाम की के जीवन पर कुछ कहने का साहस कर पाना कोई आसान कार्य नही। यदि वे मात्र हमारे राष्ट्रपति होते, सिर्फ एक महान वैज्ञानिक होते, देश प्रेमी होते, सच्चे समाज सेवक होते, तो शायद उनके जीवन को प्रकाशित करना इतना दुष्कर ना होता, किन्तु वह तो अपने आप में एक सम्पूर्ण जीवन की परिभाषा है।
ऐसे व्यक्ति कभी मृत्यु को प्राप्त नही होते, मात्र उनका शरीर देवलीन होता है। कलाम जी के जीवन के अनगिनत ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें से दो चार को भी यदि हम अपने जीवन में आत्मसात कर लें तो हम समाज में एक अनुकरणीय व्यक्ति बन सकते हैं।
साधारण परिवार मगर असाधारण व्यक्तित्व
तमिलनाडु के धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम् ) में एक मध्यमवर्गी मुस्लिम परिवार में १५ अक्टूबर १९३१ को डॉ. अब्दुल कलाम का जन्म हुआ। उनके पिता जैनुलाब्दीन एक साधारण और कम पढ़े-लिखे  व्यक्ति थे। पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया। वह सदैव अपनी सफलता का श्रेय सर्वप्रथम अपनी माँ को देते थे, उनके अनुसार—“मैं अपने बचपन के दिन नही भूल सकता, मेरे बचपन को निखारने में मेरी माँ का विषेश योगदान है। उन्होने मुझे अच्छे-बुरे को समझने की शिक्षा दी। छात्र जीवन के दौरान जब मैं घर-घर अखबार बाँट कर वापस आता था तो माँ के हाँथ का नाश्ता तैयार मिलता। पढाई के प्रति मेरे रुझान को देखते हुए मेरी माँ ने मेरे लिये छोटा सा लैम्प खरीदा था, जिससे मैं रात को 11 बजे तक पढ सकता था। माँ ने अगर साथ न दिया होता तो मैं यहां तक न पहुचता।“
प्रारम्भिक जीवन में अभाव के बावजूद वे किस तरह राष्ट्रपति के पद तक पहुँचे ये बात हम सभी के लिये प्रेरणास्पद है। उनकी शालीनता, सादगी और सौम्यता किसी महापुरुष से कम नही है। डॉ. कलाम बच्चे हों या युवा, सभी में बहुत लोकप्रिय रहे हैं। अपने सहयोगियों के प्रति घनिष्ठता एवं प्रेमभाव के लिये कुछ लोग उन्हे ‘वेल्डर ऑफ पिपुल’ भी कहते हैं। देश के हर युवक हर बच्चे के प्रेरणा श्रोत हैं। उनका कहना था “ सपने देखना बेहद जरूरी है, लेकिन सपने देखकर ही उसे हासिल नही किया जा सकता। सबसे ज्यादा जरूरी है जिन्दगी में खुद के लिये कोई लक्ष्य तय करना।“ 
कलाम जी के सिद्धान्त
कलाम जी एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक होने के साथ साथ एक कुशल दर्शनशास्त्री भी थे। उनके दर्शन सिद्धान्त बेहद प्रभावशाली हैं। उन्होने जीवन के ११ सिद्धान्त दिये।
1- जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार एवं मेहनती होते हैं, उन्हे ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है। क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना हैं।
2- किसी के जीवन में उजाला लाओ।
3- दूसरों का आर्शिवाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बङों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो इनके बिना जीवन अर्थहीन है।
4- देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुणं है, परन्तु उसे पूर्णता देने के लिये उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिये।
5- कम से कम दो गरीब बच्चों को आत्मर्निभर बनाने के लिये उनकी शिक्षा में मदद करो।
6- सरलता और परिश्रम का मार्ग अपनाओ, जो सफलता का एक मात्र रास्ता है।
7- प्रकृति से सिखो जहाँ सब कुछ छिपा है।
8- हमें मुस्कराहट का परिधान जरूर पहनना चाहिये तथा उसे सुरक्षित रखने के लिये हमारी आत्मा को गुणों का परिधान पहनाना चाहिये।
9- समय, धैर्य तथा प्रकृति, सभी प्रकार की पिङाओं को दूर करने और सभी प्रकार के जख्मो को भरने वाले बेहतर चिकित्सक हैं।
10- अपने जीवन में उच्चतम एवं श्रेष्ठ लक्ष्य रखो और उसे प्राप्त करो।
11- प्रत्येक क्षण रचनात्मकता का क्षण है, उसे व्यर्थ मत करो।
 अब्दुल कलाम, सादा जीवन, उच्च विचार तथा कङी मेहनत के उद्देश्य को मानने वाले वो महापुरूष हैं जिन्होने सभी उद्देशों को अपने जीवन में निरंतर जीया भी है। वह सिर्फ भारत के ही नही सम्पूर्ण विश्व के रत्न है। उनके योगदानों के लिये सदैव हम सभी भारतीय उनके ऋणी रहेंगे। यदि हम कलाम जी के दिये हुये सिद्धांन्तों का पालन अपने जीवन में करते हैं तो यही उनको सच्ची श्रद्धांजली होगी।


मंगलवार, 19 जुलाई 2016

आजा साथी, मेघा आये......


आजा साथी, मेघा आये
संग मिलन की घडियां लाये

कब से हमने राह तकी थी
सावन साजन लेकर आये
अब आये तो काहे ऐसे
तिरछी नजर से मोहे डराये
आजा साथी...................

आ यूं भीगो संग मेरे यूं
अपना सावन फिर ना जाये
बूंदों से मिल खेल वो खेले
विरह की अगनी बुझ जाये
आजा साथी...................

तन भी भीगा, मन भी भीगा
भीगी बारिस ने ख्वाब जगाये
भूल के जग के सारे बन्धन
प्रियतम मोहे अंग लगाये
आजा साथी........................
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