आजा साथी, मेघा आये
संग मिलन की घडियां लाये
कब से हमने राह तकी थी
सावन साजन लेकर आये
अब आये तो काहे ऐसे
तिरछी नजर से मोहे डराये
आजा साथी...................
आ यूं भीगो संग मेरे यूं
अपना सावन फिर ना जाये
बूंदों से मिल खेल वो खेले
विरह की अगनी बुझ जाये
आजा साथी...................
तन भी भीगा, मन भी भीगा
भीगी बारिस ने ख्वाब जगाये
भूल के जग के सारे बन्धन
प्रियतम मोहे अंग लगाये
आजा साथी........................
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (21-07-2016) को "खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
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