प्रशंसक

मंगलवार, 31 मार्च 2020

कर्त्तव्य पथ पर न विश्राम कर

बैठना तो है घर पर मगर, 
कर्त्तव्य पथ पर न विश्राम कर
समय जो आज तुमको मिला, 
उसका यथोचित मान कर

थोड़ा टटोलो मन को अपने, 
दुर्भावों का कर्कट साफ कर
काट सर्पीले बैरों के बंधन , 
अपने अहम का त्याग कर

कितने ही वीरों ने प्रान छोड़े, 
गांव घर द्वार  धरती के लिए
कुछ हमें भी चाहिए सोचना , 
उनके परिवार बच्चों के लिए

अकर्म हो जाएं हम सभी, 
यह तो अर्थ नहीं घर रहने का
है उत्तम अवसर धरती और, 
मानवता की सेवा करने का

समय मिला तो, आओ मिल, 
सुंदर जगत का निरमान करें
भूले करीं हैं हमने जो बरसों, 
अब प्रायश्चित कर निदान करें

बुधवार, 25 मार्च 2020

कुछ तो कर सकते ही हैं


दूर हैं तुमसे तो क्या 
खुशियां बांट तो सकते ही हैं

हाथ में हाथ नहीं तो क्या
साथ निभा तो सकते ही हैं

रात है लम्बी तो क्या
मसाल जला तो सकते ही हैं

हैं बंद जो घर में तो क्या
हौसला बढ़ा तो सकते ही हैं

ताले पड़े मंदिर में तो क्या
पुकार लगा तो सकते ही हैं

सब काम ढप है तो क्या
नेकियां कमा तो सकते ही हैं

फैल रही निराशा तो क्या
आस को उगा तो सकते ही हैं

शनिवार, 7 मार्च 2020

दो शब्द


दो शब्द कहूंगी मैं तुमसे
दो शब्द अनकहे समझ लेना
दो शब्द हमारे अधरों से
चुपके से आ कर ले लेना.........

दो शब्द अहसासो के प्रिये
सांसों में थमे थमे से है
दो शब्द सौंप तुम मुझको
अपने बन्धन में कर लेना.......

दो शब्द तुम्हारे मोती से
दो शब्द मेरा श्रंगार बने
दो शब्द तेरे दो शब्दों से मिल
धरा का सुन्दर राग बने........

कहाँ जरूरत कुछ और कहे
सुनने को कहाँ कुछ बाकी
तेरे दो शब्द के सागर में
खुशियों की लहर में साथ बहे.........
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