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मंगलवार, 5 जून 2012

क्या लिखूँ -- दर्द या खुशी


चाहती हूँ हमेशा लिखना
वो जो औरों को खुशी दे
उन्हे कुछ पल अपने
हंसी अतीत में खोने दे

मेरे हर शब्द उन्हे लगे
बात अपने ही मन की
पढते पढते सोचने लगे
कहानी अपने ही मन की

मगर सदा सम्भव नही
होता औरों को हँसाना
अपने शब्दों के दर्पण में
किसी की तस्वीर बिठाना

भरा हो मन ही जब
पीर के पानी से
कैसे श्रंगार गाऊँ
कवित्व की बानी से

मगर नही छुपाना ही होगा
दर्द को किसी अलंकार मे
उलझाना ही होगा अश्कों को
शब्दों के भ्रमर जाल में

जैसे आँसू खुशी और गम
दोनो में ही आते है
देखने वाले मगर उसकी
अपनी अपनी परिभाषा बनाते हैं

वैसे ही लिखूँगीं कलम से
कुछ इस तरह के गीत
खुशहाल हो या जख्मी दिल
मिले उसे अपना ही अतीत

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