प्रशंसक

बुधवार, 23 मार्च 2011

अलविदा with the hope of returning



ब्लाग जगत के सभी बडों एवं मित्रो से विनम्रता से कुछ दिनों के लिये अवकाश ले रही हूँ । ये तो नही जानती कब वापस आऊँगी (आऊँगी भी या नही) , मगर आप सभी से जो आशीष , प्यार मिला उसे बहुत सहेज कर रखूंगी । आज से लगभग ढेड वर्ष पूर्व जब हमने लिखना शुरु किया तो आप सभी ने मेरा उत्साह बढाया, उसी का आज परिणाम है कि इस सागर जैसे ब्लाग जगत मे हम एक गुमनाम बूँद नही बने (माना कि मोती भी नही हैं) ।आप सभी से बहुत कुछ सीखा और पाया ।आप सभी का बडप्पन था कि मैने जो कुछ भी (टूटा फूटा सा) लिखा आपने पढा भी सराहा भी , और सुधारा भी (अपना अमूल्य समय दे कर) , मैं तहे दिल से आज आप सभी का शुक्रिया अदा करती हूँ ।
कुछ विवशता है कि अब हम कुछ समय तक लिख नही सकेगें हाँ आप सभी को पढना मेरा जारी रहेगा ।

कभी साथ रह के, तो कभी कभी दूर रह कर भी रिश्ते निभाये जाते है ।
कभी कभी कुछ ,तो कभी कभी सब खो कर भी मुकद्दर आजमाए जाते है ॥


हमने सदैव ही यह कोशिश की ,कि चाहे कम लिखूँ , किन्तु अच्छा ही लिखूँ , ऐसा लिखूँ जिससे किसी को तकलीफ ना हो , किन्तु फिर भी यदि कभी हमने अन्जाने मे भी ऐसा लिखा हो जिससे किसी को भी तकलीफ हुयी हो ,
तो आज हम सभी लेखकों और अपने पाठको से क्षमा प्रार्थी है । ब्लाग जगत मेरी जिन्दगी का एक हिस्सा है , जो हमेशा मेरे साथ रहेगा । ईश्वर ने चाहा तो जरूर फिर एक दिन वापस आयेगें ।
 
तब तक के लिये अलविदा
 
पलाश

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

आओ ऐसे खेलें होली …………………







त्योहार मनाओ पूरे दिल से , 
ना कि परम्परा निभाने को । 
गले मिलो मिलने की खातिर,
ना कि बस रस्म निभाने को ॥ 
रंग बिरंगी होली आयी ,
कुछ उम्मीदें दिल मे लिये।
गुलाल कहे कर गाल गुलाबी ,
क्यों अरमा बस दिल में खिले ॥
“पलाश” से चुनो तुम रंग सच्चे ,
ना  कि कच्चे रंग बस लगाने को । 
गले मिलो मिलने की खातिर………………..
पी लो भंग आज थोडी सी ,
प्रीत का नशा चढाने को । 
बना के टोली घूमो घर घर ,
प्रेम संदेश फैलाने को ॥ 
फाग के राग सुनाओ नभ को , 
ना कि शोर बस हुडदंग मचाने को ।
गले मिलो मिलने की खातिर………………..


आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनायें 
 

गुरुवार, 17 मार्च 2011

बिन आसूं रोया ये मन



आज बहुत उदास है ये मन

बिन आसूं ही रो रहा ये मन


काँच से नाजुक रिश्तों को

कितना मैने संभाला था

दुनिया की बुरी निगाहों से

उसको मैने बचाया था

मगर लगा उसको तो

किसी अपने का ही ग्रहण

आज बहुत……………..


पल भर मे ही लगा कि जैसे

रानी से भिखारिन हो गये

बिन अपराध किये ही तो

हर नजर के अपराधी हो गये

जीते जी ही कर डाला

उसने मेरे भावों का तर्पण

आज बहुत ……….


फिर भी जीवन निर्मम इतना

सासों को नही है त्याग रहा

जाने क्यों अब भी आखों में

उसके ख्वाबों को पाल रहा

बचा ही क्या है जो कर दे

अब उसके चरनों में अर्पण

आज बहुत…………………..



मंगलवार, 15 मार्च 2011

इक वादा चाहिये.............I am saying this with a great hope.




आज इस बात से कोई भी इंकार नहीं  कर सकता कि वह पॉलीथीन का रोज प्रयोग नहीं  करता (मैं भी करती हूँ)। आज इस  पॉलीथीन ने हमारी जिन्दगी में  अपनी अहम जगह बना ली है । यह जानते हुए  भी कि यह हानिकारक है, हम बडी सहजता से इसका प्रयोग करते हैं ।
प्राकृतिक विपदायें हमारी किसी एक या दो दिन की भूल का परिणाम नहीं  होती, बरसों बरस तक प्रकृति  चुप चाप सब सहन करती है , और फिर एक दिन हमें  उत्तर देती है , एक ऐसा उत्तर जिसे हम ही नहीं  हमारी आने वाली पीढियां भी भुगतती हैं ।
यूँ तो बुरी आदतों को हमें  एक ही दिन मे त्याग देना चाहिये , मगर फिर भी यह हर किसी के लिये इतना आसान नहीं  होता ।जरा सोच कर देखिये कि क्या वाकई में हम  पॉलीथीन के बिना एक दिन भी अपनी जिन्दगी सामान्य रूप से नहीं  जी सकते । आप में  से बहुत लोग कहेंगे  – हाँ , हम आप की बात से सहमत भी हैं , आज बेहद मुश्किल है ऐसा करना , लेकिन क्या यह भी नामुंकिन है कि हम रोज पॉलीथीन  के एक प्रयोग से स्वयं को रोके ।
हम यदि रोज एक प्रयोग को भी रोकते हैं ,और अपने बच्चों  , मित्रों को , पडोसियों को भी ऐसा करने को कहे तो हम दिन मे कम से कम पॉलीथीन   के १० प्रयोग तो रोक ही सकते हैं  (आप पर निर्भर करता है,कितना आप रोक सकते हैं) , मतलब महीने में ३०० पालीथिन का कम प्रयोग ।आप सोचेगे इससे क्या होगा , माना मेरे अकेले से, कुछ नही होगा , लेकिन यदि आप साथ दें तो यह ३०० से ३००० या ६००० भी हो सकती है या और ज्यादा भी ….


पाठक और लेखक के बीच एक मधुर रिश्ता होता है , और उसी रिश्ते के अधिकार से आज हम आप सभी से यह वादा चाहते हैं कि “आप रोज एक  पॉलीथीन को ना कहेगें ”। कैसे करेगें यह मैं आप पर छोडती हूँ पर उम्मीद करती हूँ कि आप इसे पूरी ईमानदारी से निभायेगें ।इस छोटी सी आवाज को बुलन्द करने में  आप सभी के सहयोग की अपेक्षा है । और मेरे इस यज्ञ में आपकी आहुति की जरूरत भी ।
आज मुझे इस ब्लाग पर टिप्पणी नहीं  , वादा चाहिये ।
विचार के विस्तार और अमल में हम सभी की भलाई निहित है ।


                                     प्रकृति  हमारा जीवन है
                                         इसका नाश हमारी मृत्यु
                                             आओ बने हम मित्र इसके
                                                  धरती का शत्रु हमारा शत्रु


रविवार, 13 मार्च 2011

इनका भी स्वागत कीजिये


आज आप सभी को दो ऐसे ब्लागर्स से मिलवाने जा रही हूँ जिनको पढने के बाद मुझे यह महसुस हुआ कि इनकी बात आप सभी तक भी पहुँचनी चाहिये । ये दोनो ही अच्छा लिखते हैं । अगर आप सभी का प्यार और स्नेह मिले और इनका भी त्साह वर्धन किया जाय तो इनकी लिखनी में और निखार आ सकता है ।

ब्लॉगर – चक्रेश
स्थान - मेरठ 
ब्लॉग - Someone Somewhere


वैसे तो बहुत दिन हो गए देखे हुए तुम्हें
पर आज कुछ अलग बात हुई जा रही हैं
आँखों मैं आंसू तो नहीं हैं पर
न जाने क्यूँ आज मेरी जान जा रही हैं
बहुत दिनों से तुम्हारी बहुत याद आ रही है

कहने को तो बहुत खुश हूँ मैं पर
न जाने क्यूँ धडकन मचली जा रही है
सब कुछ तो हैं मेरे पास पर
जरूरत तेरी बढ़ती जा रही है
बहुत दिनों से तुम्हारी बहुत याद आ रही है

कहने को तो मैं मुस्कराता हूँ महफिल मैं
पर तन्हाई जिंदगी मैं बढ़ती जा रही हैं
जानता हूँ तू न आयेगी अब कभी पर
तेरे आने की उम्मीद बढ़ती जा रही है
बहुत दिनों से तुम्हारी बहुत याद आ रही है

कहने को तो दोस्त और भी बहुत हैं मेरे पर
ऐ दोस्त तू मेरी जिंदगी होती जा रही है
जानता हूँ तू अब किसी और की है पर
नजदीकियां तुमसे बढ़ती जा रही है
बहुत दिनों से तुम्हारी बहुत याद आ रही है

कहने को तो बहुत लोग आए गए है जिंदगी मैं पर
न जाने क्यूँ तेरी याद जिंदगानी बनती जा रही है
यूँ भी नहीं बहुत उदास हूँ मैं पर
यह कैसी बेरुख फिजा नजर आ रही है
बहुत दिनों से तुम्हारी बहुत याद आ रही है

स्थान - दिल्ली 





जिस पथ पर जाना ना हो, उस पर पग ही क्यों धरें ।
राह जो मंजिल की है, कितनी भी मुश्किल क्यों डरें ॥ 
चलते रहना है हमको, मंजिल जब तक ना मिले ।
 जीवन चाहे मिट जाये,  हौसला फिर भी ना हिले  ॥
हम भटकने वालों में से नहीं,  हमें पता अपनी मंजिल ।  
अब हमारा मन भी यही,  यही है हमारा दिल ॥ 
चाहे कितने भी हों प्रलोभन,  चमक और सुख अनेक । 
चलना बस उसी पर है,  चुनी है जो राह एक ॥ 
क्या हुआ जो सुख ना मिले,  ना मिले अपना कोई । 
चलना सच्चाई की राह पर, था मेरा सपना यही ॥ 
क्यों ना आयें पल पल, कांटे अनेकों सामनें ।
सत्य की शक्ति हमेशा, साथ है मुज्ञको थामनें ॥ 
मिलेगी जब मंजिल मुज्ञे, वह क्षण कितना अनुपम होगा । 
यही सोच कर हर पल, चलना प्रतिक्षण होगा ॥ 


बुधवार, 9 मार्च 2011

टिप्पणियों को सिर्फ तारीफ का माध्यम बनाना क्या उचित है ??



हम जब भी कुछ लिखते है तो सबसे पहले चाहते है कि अधिक से अधिक लोग उसे पढ़े , और तारीफ भी करें । तारीफ सुनना हर व्यक्ति को अच्छा लगता है , यह मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है । हमारे ब्लाग जगत में ऐसे बहुत कम पाठक है जो सिर्फ पाठक ही है , ज्यादातर लोग ब्लॉगर और पाठक दोनो ही है । हिन्दी यूँ तो बहुत सरल भाषा है किन्तु उसका गहन व्याकरण ज्ञान एक सामान्य सी रचना को भी उम्दा बना देता है । और यहाँ पर अच्छे जानकारों की कतई कमी नही । फिर भी हम बस यही क्यों चाहते है कि बस हमने जो लिखा है उसकी सराहना और प्रशंसा ही की जाय ।जहाँ तक हम समझते है ब्लॉग पेज पर टिप्पणी के रूप में कुछ लिखने का स्थान इसीलिये बनाया गया कि हम उस रचना को पढ़ कर अपने विचार व्यक्त कर सकें । एक ईमानदार टिप्पणी करना क्या कोई मुश्किल कार्य है , हम क्यों यह सोचते है कि यदि हम कमी की बात कर देंगें तो ब्लॉगर महोदय/ महोदया को अच्छा नही लगेगा । टिपप्णी सिर्फ तारीफ के आदान प्रदान का ही माध्यम तो नही । अपने विचारों को हमें निर्भय हो कर लिखना चाहिये , और ब्लॉगर्स को भी उसका खुले मन से स्वागत करना चाहिये । एक बार उस पर विचार अवश्य करना चाहिये । जरूरी नही कि जो गलती बताई जाये वो हमेशा ठीक ही हो ।
नये ब्लॉगर्स कई बार ब्लॉग जगत में अपनी जगह बनाने के लिये , ज्यादा से ज्यादा टिप्पणी करके अपनी मौजूदगी बनाने की कोशिश करते है , इसमे कुछ गलत नही , मगर जितनी जिम्मेदारी लेखक की सही और अच्छा लिखने की होती है , उतनी ही जिम्मेदारी पाठक की भी होती है ।लेकिन लोग कभी संकोच के कारण कभी कुछ अन्य कारणों से कुछ गलत दिखते हुये भी सिर्फ प्रशंसा करके ही निकल लेते है ,यह सोच कर की यह तो बहुत बडे ब्लॉगार ने लिखा है ।
आज कल ब्लॉग जगत में हमारी वाणी पर बने रहने के लिये कुछ लोग कुछ भी लिख रहे है , वही कुछ ऐसे ब्लॉगर्स भी है इस बात की बिल्कुल भी फिक्र नही करते । हमें यह भी सोचना होगा कि आखिर मोडरेटर की आवश्यकता एक लेखक को क्यों पडती है , कई बार टिप्पणियां लेख की विषय वस्तु से भटक कर लेखक के व्यक्तिगत जीवन पर आ जाती है । यह एक प्रकार का अदृश्य डर है जो लेखक के मन में रहता है(जो कि नही होना चाहिये) ।
हमे टिप्पणी लिखते हुये कुछ बातों का ध्यान रखना ही होगा , अपने ब्लाग जगत की स्वस्थ उन्नति के लिये ।
  • मेरा सभी जानकार , विद्वान ब्लॉगर्स से अनुरोध है , कि नये ब्लॉगर्स को अपना उचित मार्गदर्शन देने की भूमिका भी निभायें ।
  • पाठकों को जो बात रचना में लिखी समझ ना आयें वह टिप्पणी के माध्यम से पूछे ।
  • ब्लॉगर्स यदि कोई पाठक आपकी किसी कमी के बारे मे लिखता है तो उसे विशाल हदय से लें , मन में कोई बैर भाव ना लायें ।
  • टिप्पणी करते समय स्वस्थ भाषा का ही प्रयोग करें ।
  • टिप्पणियों का केन्द्र लेख ही होना चाहिये , लेखक नही ।
  • अतीव किसी भी आलेख को जिससे आप सहमत ना हो , पर शालीन टिप्पणी करें ।
 
 यह लेख किसी भी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रख कर नही लिखा गया है , तो आप सभी से अनुरोध है कि इसे व्यक्तिगत रूप से ना लें , किन्तु एक बार विचार अवश्य करें और अपनी राय दें ।


आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक





सोमवार, 7 मार्च 2011

पोस्ट एक शीर्षक अनेक



एक बहुत ही जानेमाने ब्लॉगर है । लिखते भी बहुत अच्छा है । और उनके पाठक भी बहुत है । लेखन का विषय भी उन्होने बहुत अच्छा चुना और लेख भी अच्छा लिखा । मगर पता नही उन्होने क्या सोचा या एक नया प्रयोग किया  कि उस एक लेख को कई सारे शीर्षक दे डाले ।और अलग अलग ब्लॉगों पर पोस्ट छाप डाली । कही आप लोग यह तो नही सोचने लगे कि ऐसा वो हमारी वाणी की सूची पर बने रहने के लिये कर रहे है,या अपने सारे ब्लाग्स का प्रचार कर रहे है ,या उनके ब्लॉग पर ज्यादा पाठक नही है ।अरे नही ऐसा बिल्कुल नही है  बल्कि वह यह चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा पाठक इसे पढे और “जागरूक“ हो ।
 हाँ एक बात मुझे समझ नही आई कि शीर्षक का उद्देश्य क्या होता है ? जहाँ तक मेरी समझ मे आता है शीर्षक लेख का आइना होता है , जिसे  पढ़्ते ही पाठक एक अनुमान लगाता है कि लेख किस विषय पर आधारित है । यहाँ पर मैं लेखक को बधाई देती हूँ जिन्होने एक ऐसा लेख लिखा जिसके लिये इतने सारे शीर्षक सटीक बैठते हैं(उनके अनुसार, बाकी आप लोग ही पढ़ कर देख सकते है कि सारे शीर्षक कितने सटीक है कितने नही) ।इतने सारे शीर्षक देख कर स्कूल टाइम याद आ गया जब यह एक प्रश्न होता था , प्रश्न पत्र मे लेख दिया होता था और शीर्षक पूछा जाता था ।
आपकी सुविधा के लिये हम आपको वह लिंक्स दे रहे है , चाहे जो भी क्लिक कर लीजिये (लिखा सभी मे एक ही है) और आप लोग इससे शिक्षा भी ले कि जब भी किसी गम्भीर मुद्दे पर लिखे उसे कई सारे ब्लाग्स पर अलग अलग शीर्षक लिख कर छापे , ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग पढे ,और सीखे ।
 
इतने ही हम देख पाये है यदि किसी शीर्षक को हम नही देख पाये तो लेखक से क्षमा प्रार्थी हूँ ।
यदि आप पाठ्कों को और भी कोई शीर्षक सूझ रहा हो, अवश्य लिखें, स्वागत है ।


शनिवार, 5 मार्च 2011

नही जानती क्यों ……………


चंद रोज पहले बना रिश्ता , जन्मों का बन्धन लगता है ।
नही जानती क्यों लेकिन , अपना सा हमको लगता है ।

कभी तो लग जाते है बरसों ,एक रिश्ते को संजोने में
कभी नही लगते दो पल भी , रिश्तों के बिखर जाने में
ऐसे रिश्तों के अनोखे जहाँ में, क्यों तू मेरे साये सा लगता है
नही जानती क्यों ……………………………….

कभी रुधिर के रिश्ते भी, रक्त के प्यासे देखो हो जाते
कभी अजनबी अचानक ही,अपनों से प्यारे बन जाते
प्रतिपल बदलते लोग यहाँ, क्यो तू मेरे बिम्ब सा लगता है
नही जानती क्यों …………………………………….

रिश्तों की अबूझ पहेली को ,मै मूरख समझ नही पाती
रिश्तों की मिलावट देख देख, रिश्तों के बन्धन से घबराती
ऐसी मुश्किल घडियों मे क्यों , तू मेरा साहस बन मुझमें बसता है
नही जानती क्यों ……………………………………………
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