एक बहुत ही जानेमाने ब्लॉगर है । लिखते भी बहुत अच्छा है । और उनके पाठक भी बहुत है । लेखन का विषय भी उन्होने बहुत अच्छा चुना और लेख भी अच्छा लिखा । मगर पता नही उन्होने क्या सोचा या एक नया प्रयोग किया कि उस एक लेख को कई सारे शीर्षक दे डाले ।और अलग अलग ब्लॉगों पर पोस्ट छाप डाली । कही आप लोग यह तो नही सोचने लगे कि ऐसा वो हमारी वाणी की सूची पर बने रहने के लिये कर रहे है,या अपने सारे ब्लाग्स का प्रचार कर रहे है ,या उनके ब्लॉग पर ज्यादा पाठक नही है ।अरे नही ऐसा बिल्कुल नही है बल्कि वह यह चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा पाठक इसे पढे और “जागरूक“ हो ।
हाँ एक बात मुझे समझ नही आई कि शीर्षक का उद्देश्य क्या होता है ? जहाँ तक मेरी समझ मे आता है शीर्षक लेख का आइना होता है , जिसे पढ़्ते ही पाठक एक अनुमान लगाता है कि लेख किस विषय पर आधारित है । यहाँ पर मैं लेखक को बधाई देती हूँ जिन्होने एक ऐसा लेख लिखा जिसके लिये इतने सारे शीर्षक सटीक बैठते हैं(उनके अनुसार, बाकी आप लोग ही पढ़ कर देख सकते है कि सारे शीर्षक कितने सटीक है कितने नही) ।इतने सारे शीर्षक देख कर स्कूल टाइम याद आ गया जब यह एक प्रश्न होता था , प्रश्न पत्र मे लेख दिया होता था और शीर्षक पूछा जाता था ।
आपकी सुविधा के लिये हम आपको वह लिंक्स दे रहे है , चाहे जो भी क्लिक कर लीजिये (लिखा सभी मे एक ही है) और आप लोग इससे शिक्षा भी ले कि जब भी किसी गम्भीर मुद्दे पर लिखे उसे कई सारे ब्लाग्स पर अलग अलग शीर्षक लिख कर छापे , ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग पढे ,और सीखे ।
इतने ही हम देख पाये है यदि किसी शीर्षक को हम नही देख पाये तो लेखक से क्षमा प्रार्थी हूँ ।
यदि आप पाठ्कों को और भी कोई शीर्षक सूझ रहा हो, अवश्य लिखें, स्वागत है ।
हा हा हा
जवाब देंहटाएंहा हा हा
एक कमेन्ट दस जगह भी पोस्ट किये जाते है
अरे कई बाते है भद्रे जो तुमसे छूट गयी है
अभी पूरी कौवों की मंडली की काव काव सुनने को तैयार रहो
great work
जवाब देंहटाएंthey have nothing to do they have been writing the same thing for last 2 years
you are a woman so now they will target you
but dont worry they are a army of cowards and the best they can do is to काव काव
woman bloggers who are part of an consortium that is writing against woman should leave the consortium
जवाब देंहटाएंइस पर उन्हें भी विचार करना चाहिये जो इन क्षुद्र ब्लोग-जीवी जन्तुओं के जिला-प्रदेश-देश..स्तरीय ब्लोगों के सदस्य बने बैठे हैं। इन क्षुद्र्ताओं को ’लेजिटमैसी’ देने के लिये ये सदस्य क्या कम जिम्मेदार है?? ऐसी सदस्यताओं के लोभ के मूल में क्या है?? मूर्खों का मनोबल बढ़ाना,और निजी टीआरपी !! अधिक क्या !!
जवाब देंहटाएंकिसी भी लेख का शीर्षक लेख के विषयवस्तु का ध्वजवाहक ही होता है . अब एक आलेख के लिए इतने सारे शीर्षकों का चयन सचमुच में दुष्कर कार्य है . शीर्षकों का आलेख के विषयवस्तु से मेल ना खाने का पूरा अवसर है .
जवाब देंहटाएंकोई टिप्पणी नहीं !
जवाब देंहटाएंyah bhi khoob rahi !
जवाब देंहटाएंआपने काफी मेहनत के बाद जो निष्कर्ष निकाला है वह एकदम सही है और हरेक दुराग्रह से मुक्त है ।
जवाब देंहटाएंबधाई !
आपके इस सराहनीय ब्लॉग शोध की चर्चा 'ब्लॉग की खबरें' में की जाएगी जो कि ब्लॉग जगत का इकलौता समाचार पत्र है ।
very good work di....
जवाब देंहटाएंYou deserve appreciation for searching such a nice bloger. I agree that the readership will definitely increase by spreading the same matter on different blogs with different headings.I have gone through some of those blogs and found correct what you have said in that regard. I praised that blogger on one of those posts.
जवाब देंहटाएंपलाशजी
जवाब देंहटाएंमजा आ गया ।
जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
मिस्टर जमाल
जवाब देंहटाएंमेरी किसी भी पोस्ट को किसी भी जगह पर किसी भी प्रकार के प्रयोग के पहले मेरीलिखित अनुमति अनिवार्य है . ऐसा ना करने पर आप कापीराईट एक्ट के अंतर्गत अपराधी होंगे. आइन्दा से मेरी किसी भी पोस्ट या मेरे नाम के किसी भी प्रकार के उपयोग से बाज़ आइये .
मै आपको अनुमती नहीं प्रदान कर रही हूँ.
एक बात और ब्लॉगजगत में आप जैसो के कारण स्वस्थ ब्लॉग्गिंग नहीं हो पा रहे है अपने में सुधार कीजिये (हालाँकि मुझे उम्मीद नहीं है)
मुफ्त सुविधा का दुरुपयोग करने की आदत कैसे जाये....बहुत बार इस विषय पर मैने भी निवेदन किया मगर न जाने क्या सोच है...
जवाब देंहटाएंकॉपी राइट के अंतर्गत यह नहीं आता है । मैं ऐसा ही करूँगा क्योंकि यह वैधानिक है और एक पत्रकार को घटना की कवरेज से नहीं रोका जा सकता। ऐसा करना सूचना के मौलिक अधिकार का हनन करना है । अतः आपकी आपत्ति फ़िज़ूल है ।
जवाब देंहटाएंआपने भी तो सलीम जी की पोस्ट की अच्छाई की तारीफ की है क्या आपने उनसे लिखित रूप से कोई अनुमति ली थी ?
हमने भी आपकी पोस्ट की तारीफ़ ही की है । आपकी पोस्ट के किसी अंश का उपयोग नहीं किया है।
इस जमाल की चोरी और जबरदस्ती तो वाकई बड़े बड़े चोरो के कान काटने वाला है अपर्णा ने जिस बात को मुद्दा बनाया है उस मुद्दे को बाजीगरी वाले अंदाज में जबरदस्ती एक पोस्ट बना डाली और वो भी बिना ब्लॉगर की अनुमति से.
जवाब देंहटाएंइसे अब क्या कहा जाय वाकई अब तो चोर अपने को सर मौर बता रहा है
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/03/blog-post_07.html
kamal hai...aisa bhee hota hai
जवाब देंहटाएंबहन अपर्णा मुझे याद आ रहा है कि किस प्रकार एक बालक "मेरा प्रिय मित्र" पर निबंध याद कर के गया था और जब "मेरे पिता" पर निबंध लिखने को आया तो उसने अपनी विशिष्ट प्रज्ञा शक्ति का उपयोग करते हुए अपने निबंध को ज़रूरत के हिसाब से ढाल लिया। इसी प्रकार यह सज्जन हैं जो एक अंतर के साथ, इन्होने शीर्षक बदल लिए, पर पोस्ट पूरा का पूरा वैसे ही रहने दिया। पोस्ट मे दिए गये आंकडों पर नज़र डालने की ज़रूरत नही यह तो शीर्षक से ही ज्ञात होता है कि यह झूठा है, यथाः-
जवाब देंहटाएंशीर्षक १ - मुस्लिम समाज में पुरुष-स्त्री अनुपात बहुत अच्छा, हर समाज से अच्छा है. - अब कोई इन मूर्धन्य (मूढ़) से पूछे कि यह अनुपात इतना ही बेहतर है तो शेख यहां वहां दूसरे देशों में क्यों लडकियां ढूंढते रहते हैं।
शीर्षक २. - २.‘कन्या भ्रूण-हत्या’ से संबंधित अमानवीयता, अनैतिकता और क्रूरता की वर्तमान स्थिति हमारे देश की ‘विशेषता’ है. - निश्चित तौर पर हमारे देश मे कन्या / स्त्री सशक्ती्करण के दिशा मे बहुत काम करना है, पर क्या यह "हमारे देश की विशेषता है"? और अगर है तो संभवतः इनके धर्मावलंबियों के कारण ही।
शीर्षक ४. - नारी-आन्दोलन (Feminist Movement) नाइट क्लब कल्चर, सौंदर्य-प्रतियोगिता कल्चर, कैटवाक कल्चर, पब कल्चर, कॉल गर्ल कल्चर, वैलेन्टाइन कल्चर आदि आधुनिकताओं (Modernism) तथा अत्याधुनिकताओं (Ultra-modernism) की स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, विकास व उन्नति के लिए जितना अधिक जोश, तत्परता व तन्मयता दिखाता है, उसकी तुलना में कन्या भ्रूण-हत्या को रोकने में बहुत कम तत्पर रहता. - मालूम नही इतने बडे शीर्षक के बाद पोस्ट मे लिखने को क्या बचा?
शीर्षक ५. - भारत में मुस्लिम समाज ‘कन्या भ्रूण-हत्या’ की लानत से सर्वथा सुरक्षित है. - झूठ बोलने का लाईसेन्स ले रखा है सलीम खान ने।
शीर्षक ६. - मुस्लिम समाज में बहुएं जलाई नहीं जातीं। ‘बलात्कार और उसके बाद हत्या’ नहीं होती। लड़कियां अपने माता-पिता के सिर पर दहेज और ख़र्चीली शादी का पड़ा बोझ हटा देने के लिए आत्महत्या नहीं करती. - पर बहुओं पर ससुर के बलात्कार की बात पर चुप्पी साध गया सलीम।
शेष बहन मै इतना ही कहूंगा कि इनके बस की बात नही कुछ रचनात्मक करने की, जो कुछ थोडा बहुत कहीं से नकल किया हुआ है उसी को अलग अलग रंग रोगन करके बाजार मे चलाने की कोशिश क रहे हैं इनसे इससे अधिक की उम्मीद मत करना।
॰सलीम जी आपका अभी तक यहाँ पर ना आने के तीन कारण हो सकते है
जवाब देंहटाएं१ . अभी तक आपने यह पोस्ट देखी ही ना हो (जो कि असम्भव लगता है )
२. आपके पास ठोस तर्क नही है
३. आपने जमाल साहब को जबाव देने के लिये नियुक्त कर रखा है
मगर हमारी इच्छा थी कि हम आपके विचार जानते । जमाल साहब सलीम साहब को बता तो दीजिये की उनकी पोस्ट काफी चर्चित हो गयी है ।
* जमाल साहब आप पत्रकारिता कर रहे है , तो अच्छे से कीजिये , सच को सामने लाइये , मित्रता निभाना अच्छी बात है । मगर सच कहना और लिखना उससे भी ज्यादा अच्छी बात है ।
*क्या आप एक पोस्ट को ६ विभिन्न शीर्षकों से प्रकाशित करने को सकारात्मकता से लेते हैं ।(आप चाहे तो कुछ श्रेष्ठ ब्लागर्स से विचार विमर्श करने को हम तैयार है)
*क्या आपको व्यंग की भाषा का ज्यादा ज्ञान नही । लेख में तारीफ नही की गयी है ऐसे कार्य की ।
मैं लेखक को बधाई देती हूँ जिन्होने एक ऐसा लेख लिखा जिसके लिये इतने सारे शीर्षक सटीक बैठते हैं(उनके अनुसार, बाकी आप लोग ही पढ कर देख सकते है कि सारे शीर्षक कितने सटीक है कितने नही)
*और यदि आपके अनुसार हमने तारीफ ही की है तो हमने एक प्रश्न भी पूछा है
हाँ एक बात मुझे समझ नही आई कि शीर्षक का उद्देश्य क्या होता है ?
कम से इसका उत्तर एक ब्लागर के नाते ही दे दीजिये
अद्भुत प्रयोग है। क्षमतावान 6 वाक्यों की पोस्ट को 6000 शीर्षक देने का शीर्षासन भी कर सकते हैं। क्या पता गिनीज बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में ही नाम आ जाए।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपर्णा त्रिपाठी जी, आपक बहुत-बहुत शुक्रिया ! मैं देर से आया इसके लिए माज़रत (क्षमा याचना) चाहता हूँ. पड़ोसी हैं आप हमारी, और हम हैं कि आपकी पोस्ट हमारीवाणी पर हॉट में आने के बावजूद आ न सके...!
जवाब देंहटाएंख़ैर ! आपने मेरी हौसला अफज़ाई की इसका बहुत-बहुत शुक्रिया ! एक बात की तारीफ़ मैं भी करना चाहता कि आपने ब्लॉग पर फॉण्ट बड़ी अच्छी लगाई है.
शीर्षक अलग-अलग लिखने की जो विधि मैंने शुरू की इसकी अलख को फ़ैलाने का सा काम आपने कर दिखाया. इसके लिए भी बहुत बहुत शुक्रिया. मैं चाहता हूँ कि आप AIBA ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोशियेशन व LBA लखनऊ ब्लॉगर्स एसोशियेशन की सक्रिय सदस्य बने जिससे एक दुसरे से सिखने का सिलसिला चले.
सलीम ख़ान
धन्यवाद सुदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनारी मनुष्य का निर्माण करती है.नारी समाज की प्रशिक्षक है और उसके लिए आवश्यक है कि सामाजिक मंच पर उसकी रचनात्मक उपस्थिति हो
सलीम जी शीर्षक अलग अलग लिखने से पोस्ट थोड़ी बदल जाती है यह पाठको के साथ एक किसिम का छल है वह शीर्षक देखकर पढने आता है किन्तु जब उसे वही विषय वास्तु पढने को मिलती है जो वह पूर्व में पढ़ चूका है तो सोचिये कि उस समय लेखक के लिए उसके मन में क्या भाव आते है. आपके बारे में मै जाकिर भाई से सुन चुका हूँ आप जैसे वैज्ञानिक सोच रखने वाले इस तरह की परंपरा बनायेगे तो सही बात नहीं.
जवाब देंहटाएंऔर जमाल के बारे में मै क्या कहू वह स्वनाम धन्य अखबार नवीस बन बैठा है. लेखक के नाम और रचना पर उसका अधिकार है जिसे वह कापीराईट नोटिस के द्वारा सूचित कर रहा है. यह नोटिस जहा हो वहा लेखक की अनुमति आवश्यक है. सलीम जी के ब्लॉग पर ऐसा नही है. उम्मीद है कि सलीम जी मुद्दे को समझने का प्रयास करेगे.
पवन कुमार मिश्र
कानपुर ब्लोगेर्स असोसिएसन
टॉप पर रहने का अच्छा तरीका हैं, मगर भाई किसी कि पोस्ट अगर उड़ा रहे हो तो कम से कम पूछ तो लो यार.
जवाब देंहटाएंये नायब तरह कि चोरी हो गई,
खैर किसी को अगर देखना हो कि मुस्लिम समाज में बहुए नहीं जलाई जाती तो कभी गाजियाबाद आइयेगा ,
Why all the bloggers want to teach me always. Just compare with others without 'PURWAGRAH'.
जवाब देंहटाएंI want to recommend this blog must to see http://www.anindianmuslim.com
सलीम साहब क्या हुआ , क्या आपको यह आभास हुआ कि आपने कुछ गलत लिखा था , या गलत जगह लिखा था , जिसके सुधार के रूप मे आपने अपना कमेंट डिलीट कर दिया ।
जवाब देंहटाएंआपने उसमे अपना फोन नम्बर ही तो दिया था(जो कि हमने आपसे माँगा नही था, आपने स्वेच्छा से ही लिखा था) , और कुछ गलत तो लिखा नही था । वैसे यह आपका अधिकार भी है और व्यक्तिगत मामला भी , कोई भी पाठक अपनी टिप्पणी डिलीट करने के लिये स्वतंत्र है ।
गायबल्स आज भी जीवित है... और उसकी तकनीकें भी..
जवाब देंहटाएंशीर्षक में क्या है?
जवाब देंहटाएंसुदर प्रस्तुति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंपलाश सिर्फ अपनी डाल पर लगता है और उसी पर मुरझाकर धरती पर गिर जाता है। वह सिर्फ अपने लिए अपनी डाल पर ही सीमित रहता है। और डाल से अलग होते ही अपने अस्तित्व को समाप्त कर देता है। यही है उसका पूर्ण समर्पण उस डाल के प्रति जिसने उसको जीवन दिया ।
जवाब देंहटाएंpadhkar achchha laga !
@Why all the bloggers want to teach me always. Just compare with others without 'PURWAGRAH'.
जवाब देंहटाएं@ सलीम साह्ब हमने आपकी त्लना किसी से भी नही की थी , और रही बात गलती बताने की तो जहाँ तक हम समझते है , ऐसा बहुत कम ही लोग करते है , वरना अक्सर लोग यहाँ पर तारीफ ही करते देखे है हमने ।
क्या हमको गलतियों को नकारात्मक लेना चहिये । शायद नही ।अगर हमारे लेखन में कभी भी कोई त्रुटि आपको दिखे तो आप अवश्य बताइयेगा।
nahin aapmen aseem urjaa hai.
जवाब देंहटाएंbahut aage jayengee ! blog jaghat ke bhediyon se saawdhan rahiyega !! waqt rahte aapko pata chalega !~!!!!!!!!!
saleem ji , its my faith that when ever i have blessings(yours and many others) , no body can harm me .
जवाब देंहटाएंthanks your the valuable advice .
अपर्णा दीदी आपक बहुत-बहुत शुक्रिया ! मैं देर से आया इसके लिए क्षमा चाहता हूँ
जवाब देंहटाएं