हम जब भी कुछ लिखते है तो सबसे पहले चाहते है कि अधिक से अधिक लोग उसे पढ़े , और तारीफ भी करें । तारीफ सुनना हर व्यक्ति को अच्छा लगता है , यह मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है । हमारे ब्लाग जगत में ऐसे बहुत कम पाठक है जो सिर्फ पाठक ही है , ज्यादातर लोग ब्लॉगर और पाठक दोनो ही है । हिन्दी यूँ तो बहुत सरल भाषा है किन्तु उसका गहन व्याकरण ज्ञान एक सामान्य सी रचना को भी उम्दा बना देता है । और यहाँ पर अच्छे जानकारों की कतई कमी नही । फिर भी हम बस यही क्यों चाहते है कि बस हमने जो लिखा है उसकी सराहना और प्रशंसा ही की जाय ।जहाँ तक हम समझते है ब्लॉग पेज पर टिप्पणी के रूप में कुछ लिखने का स्थान इसीलिये बनाया गया कि हम उस रचना को पढ़ कर अपने विचार व्यक्त कर सकें । एक ईमानदार टिप्पणी करना क्या कोई मुश्किल कार्य है , हम क्यों यह सोचते है कि यदि हम कमी की बात कर देंगें तो ब्लॉगर महोदय/ महोदया को अच्छा नही लगेगा । टिपप्णी सिर्फ तारीफ के आदान प्रदान का ही माध्यम तो नही । अपने विचारों को हमें निर्भय हो कर लिखना चाहिये , और ब्लॉगर्स को भी उसका खुले मन से स्वागत करना चाहिये । एक बार उस पर विचार अवश्य करना चाहिये । जरूरी नही कि जो गलती बताई जाये वो हमेशा ठीक ही हो ।
नये ब्लॉगर्स कई बार ब्लॉग जगत में अपनी जगह बनाने के लिये , ज्यादा से ज्यादा टिप्पणी करके अपनी मौजूदगी बनाने की कोशिश करते है , इसमे कुछ गलत नही , मगर जितनी जिम्मेदारी लेखक की सही और अच्छा लिखने की होती है , उतनी ही जिम्मेदारी पाठक की भी होती है ।लेकिन लोग कभी संकोच के कारण कभी कुछ अन्य कारणों से कुछ गलत दिखते हुये भी सिर्फ प्रशंसा करके ही निकल लेते है ,यह सोच कर की यह तो बहुत बडे ब्लॉगार ने लिखा है ।
आज कल ब्लॉग जगत में हमारी वाणी पर बने रहने के लिये कुछ लोग कुछ भी लिख रहे है , वही कुछ ऐसे ब्लॉगर्स भी है इस बात की बिल्कुल भी फिक्र नही करते । हमें यह भी सोचना होगा कि आखिर मोडरेटर की आवश्यकता एक लेखक को क्यों पडती है , कई बार टिप्पणियां लेख की विषय वस्तु से भटक कर लेखक के व्यक्तिगत जीवन पर आ जाती है । यह एक प्रकार का अदृश्य डर है जो लेखक के मन में रहता है(जो कि नही होना चाहिये) ।
हमे टिप्पणी लिखते हुये कुछ बातों का ध्यान रखना ही होगा , अपने ब्लाग जगत की स्वस्थ उन्नति के लिये ।
- मेरा सभी जानकार , विद्वान ब्लॉगर्स से अनुरोध है , कि नये ब्लॉगर्स को अपना उचित मार्गदर्शन देने की भूमिका भी निभायें ।
- पाठकों को जो बात रचना में लिखी समझ ना आयें वह टिप्पणी के माध्यम से पूछे ।
- ब्लॉगर्स यदि कोई पाठक आपकी किसी कमी के बारे मे लिखता है तो उसे विशाल हदय से लें , मन में कोई बैर भाव ना लायें ।
- टिप्पणी करते समय स्वस्थ भाषा का ही प्रयोग करें ।
- टिप्पणियों का केन्द्र लेख ही होना चाहिये , लेखक नही ।
- अतीव किसी भी आलेख को जिससे आप सहमत ना हो , पर शालीन टिप्पणी करें ।
यह लेख किसी भी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रख कर नही लिखा गया है , तो आप सभी से अनुरोध है कि इसे व्यक्तिगत रूप से ना लें , किन्तु एक बार विचार अवश्य करें और अपनी राय दें ।
आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक
आप स्वयं विद्वान हैं.. बहुत अच्छी बातें लिखी हैं जिन पर गौर करना चाहिये..
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआपने सही मुददेको उठाया।
मैंने अब तक के अपने ब्लाग सफर में महसूस कियाहै कि आप नए हैं तो कितने ही अच्छे लिख लें आपके ब्लाग पर टिप्पणियों का टोंटा होगा और कुछ ऐसे लोग हैं जो स्थापित हो गए हैं वे अनाप शनाप भी लिखें तो टिप्पणियों की भरमार हो जाती है।। यह सब पोस्ट (लेख) देखकर नहीं लेखक देखकर किया जाता है।
और यह भी कि कुछ भी लिखा तारीफ कर दिया।
होना यह चाहिए कि लेख पर बहस छेडना चाहिए, एक स्वस्थ बहस। यह लेखक के हित में भी होगा और ब्लाग जगत के हित में भी।
मैं कोशिश करता हूं कि ज्यादा से ज्यादा पढूं और टिपियाऊं पर मैंने देखा है कि कई ब्लागर अच्छा लिख रहे हैं पर उन्हें टिपियाने वाले नदारद रहते हैं।
आपने अच्छा लिखा। इस पर सभी ब्लागरों को विचार करना चाहिए।
इसी विषय पर एक बार उदय जी ने और फिर एक बार दिव्या जी ने भी लिखा था। आपने फिर से ध्यान दिलाया। शुक्रिया।
आपकी ८ फरवरी की कविता और यह पोस्ट एक सही बात कहते हैं.लेकिन इसी ब्लाग जगत में "मैं हूँ...मैं हूँ..मैं हूँ"के उद्गोष करते कुछ अहंकारी लेखक दूसरों को "मूर्खता पूर्ण" कथाकार बताते हैं क्या वे सीख ले सकेंगे?
जवाब देंहटाएंांअपसे सहमत हूँ। सार्थक आलेख। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंyae sab bahut pehale bhi likha jaa chuka haen
जवाब देंहटाएंnaye blogar kae liyae jarurii haen ki wo pehlae puraane blog padhae silsilaevaar aur jaane tab hi nayee post dae
सच कड़वा तो होता ही है लेकिन सत्य होता है. आप ने बहुत ही सही बात कही है
जवाब देंहटाएंतारीफ सुनने का शौक़ रखने वाला इंसान कहां इन बातों को अमल मैं लता है. यहाँ तो नेटवर्क बना हुआ है तरफ करने और सुनने वालों का .
बिलकुल अलग प्रकार की और ब्लॉग के ज़रूरी पहलुओं को उजागर करती ये पोस्ट सबको पढनी चाहिए तभी टिप्पणियों की गुणवत्ता में सुधार संभव है.
जवाब देंहटाएंलेखक को बधाई.
"आत्मना प्रतिकूलानि परेषाम ना समाचरेत"
जवाब देंहटाएंबेनामी महोदय त्वम् किं? कुतो आगच्छ कुतो आयसि
भगिनी अपर्णा सम्यक वचन उवाच
अहम् स्वयमेव पालयामि
सर्वब्लॉगबन्धुभगिनीश्च इति पालयेतु
अच्छी और विचारणीय पोस्ट ..टिप्पणी करते समय इन बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए ...अच्छे सुझाव हैं ..
जवाब देंहटाएंSaarthak lekh k liye dhanyawaad .....
जवाब देंहटाएंaapki baaton ka hamesha dhyan rakhunga......
सही है|
जवाब देंहटाएंईश्वर करे यह चेतना लोगों में जाए, कि वे महसूस करें 'हितकारी और मनोहर वचन दुर्लभ हैं'!
वर्षों के अनुभव से यही कह सकता हों कि लोग सुधरेंगे कम! आभार!
अच्छी और विचारणीय पोस्ट .
जवाब देंहटाएंआपसे पूर्णतः सहमत हूँ |
जवाब देंहटाएंVicharneey baaten.
जवाब देंहटाएंAabhar.
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पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
अपर्णा जी
जवाब देंहटाएंआपकी प्रत्येक बात विचारणीय है ..काश हम इन बातों को समझ पाते ...आपका शुक्रिया इस महत्वपूर्ण पोस्ट के लिए
बिलकुल अलग प्रकार की और ब्लॉग के ज़रूरी पहलुओं को उजागर करती ये पोस्ट सबको पढनी चाहिए तभी टिप्पणियों की गुणवत्ता में सुधार संभव है.लेखक को बधाई.
जवाब देंहटाएंकमी-बेसी अन्य पहलू अथवा असहमति, अधिकांश बार हितकार ही होती है भले वह लेखक के हित के उद्दे्श्य से न की गई हो।
जवाब देंहटाएंयदि आप जानते है कमी लेख में नहीं है फिर भी निकाली जा रही है तो समझ लेना चाहिए लेख सम्पूर्ण सफ़ल है।
आपके पोस्ट का शीर्षक “टिप्पणियों को सिर्फ तारीफ का माध्यम बनाना क्या उचित है ?? ”
जवाब देंहटाएंका जवाब मेरे अनुसार अलग होता।
पोस्ट खतम होते-होते विषय दूसरा हो गया। जिसमें टिप्पणी करने वालों और ब्लॉग लिखने वालों को कुछ सलाह और सुझाव दिए गए हैं।
दूसरे भाग से असहमति की गुंजाइश नहीं होते हुए मैं भी यह मानता हूं कि शालीनता और शिष्टाचार की सीमा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। सहमति-असहमति हो सकती है।
JO 'ATMPRKSHALAN' KAR CHUKE......UNKE LIYE YE
जवाब देंहटाएंSANHITA HAI........JO AURON/LOGON KO......SIKH
DENE ME GRAST HAIN.......OON 'KUTEV' KO KYA KAHIYE.........
ANUJ PAWAN NE MAN ANANDMAYA KAR DIYE...........
SADAR........
आपसे पूर्णत: सहमत हूँ जी... लेकिन एक बात अवश्य जानता हूँ... ब्लॉग जगत में झूटी शान के लिए जीने वाले अधिक दिन तक नहीं टिक सकते हैं... आखिर कोई अपने मन को कब तक बहला सकता है... ऐसी तिग्दम बाज़ी करने वालों को सभी जानते हैं, बस ज़रूरत है बहिष्कार की... एक बार लोग अपने अन्दर की उत्सुकता को दबा कर ऐसे लोगों का बहिष्कार करके तो देखें.... इन लोगों की दुकानदारी खुद-बा-खुद ख़त्म हो जाएगी...
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट से पूर्णतः सहमत हूँ...
जवाब देंहटाएंपर कई बार आप किसी ब्लोगर से उसके लेख के बारे में पूछते हैं तो वो उसे व्यक्तिगत ले लेता है...
जैसे टिप्पणी करनेवाले का नजरिया सही होना चाहिए, वैसे ही टिप्पणी पढने वाले का...
और तो और, कई बार लोग बिना लेख/पोस्ट पढ़े ही उसे "बढ़िया" के खिताब से नवाज़ देते हैं... मैंने कई बार कुछ लोगों के अलग-अलग ब्लोग्स में सेम कमेंट्स देखें हैं...
बहुत-बहुत धन्यवाद इस पोस्ट को लिखने के लिए...
बहुत अच्छा विषय चुना है आपने, व्लागिंग में टिप्पणियों का अर्थ क्या है ? (१) अपनी हाजिरी दर्ज कराना (२)टिप्पणियों को उधार समझ कर देना (३) ओपचारिकता निभाना (४) रचना को ध्यान से पढ़ कर अपनी राय से अवगत कराना यह मेरी समझ में अभी तक नहीं आया वैसे मै चौथे विकल्प में ही विश्वास रखता हूँ| अच्छा आलेख ,आभार
जवाब देंहटाएंचूंकि आपने जानकार और विद्वान ब्लॉगर्स से अनुरोध किया है इसलिए मैं नये ब्लॉगर्स को अपना उचित मार्गदर्शन देने के लिए तैयार हूँ:)
जवाब देंहटाएंआपने जो लिखा है वह पहले कई बार कई लोग अपने-अपने तरह से कह चुके हैं. मुझे लगता है कि यह सब ब्लौग और ब्लौगरों का स्वाभाविक गुण-दोष है. उसे न तो हटाया जा सकता है और न ही ऐसे प्रयासों में अपना समय व्यर्थ करने का औचित्य है.
टिप्पणियां विवादों की जड़ हैं लेकिन वे ब्लौगों के लिए ज़रूरी हैं. यदि उनका लालच न हो तो स्वमेव बहुत सी समस्याएँ सुलझ जायेंगीं.
मैं तो आजकल ज्यादा व्यस्त होने के कारण कोई टिपण्णी नहीं कर पा रहा हूँ. टिपण्णी करके भी क्या मिल जाता है? जिसकी पोस्ट हमें अच्छी लगती है, उसे पढ़के हम खुश होते ही हैं, यही बहुत है, उसकी तारीफ करने से क्या हो जाएगा? जिसकी पोस्ट बेकार है उसे पढ़ते ही पता चल जाता है कि उसपर टाइम खोटी करने की ज़रुरत नहीं. उसे बताके भी क्या फायदा?
टिपण्णी तो बड़ी हो गयी... बस.
टिप्पणियों का सार्थक महत्व है, उनका उपयोग साहित्य संवर्धन में ही हो।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपके विचारों से.
जवाब देंहटाएंउफ़..ये टिप्पणियों की मगजमारी....
जवाब देंहटाएंवैसे हर नए ब्लौगर को टिप्पणियों की बढती संख्या बहुत आकर्षित करती हैं..फिर धीरे धीरे सब कुछ सही हो जाता है...
जहाँ तक रही आलोचनात्मक टिप्पणियों की बात तो, कई जगह तो ये हाल है कि पोस्ट की ज़रा सी खामी बता दो तो वो टिप्पणी प्रकाशित ही नहीं होती... मेरे निजी अनुभव के हिसाब से कह रहा हूँ...इसलिए मैंने आज कल टिप्पणियों का कारोबार बंद कर दिया है...जहाँ जरूरत होती है वहां करता हूँ वरना पढ़कर निकल लेता हूँ.... और जो फेसबुक पर हैं उन्हें वहीँ बधाई दे देता हूँ.... :)
सार्थक आलेख। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसहमत.
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक आलेख लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंसलाम.
टिप्पणियों पर आपने लिखा और आपके लिए भी टिप्पणियों की बारिश होने लगी.अच्छी बात है. वास्तव में टिप्पणियाँ परस्पर सार्थक संवाद का बेहतर माध्यम हो सकती हैं. ब्लॉग-जगत में कुछ ही महीनों से हूँ.इस दौरान मैंने यह महसूस किया है कि कम टिप्पणियों और अधिक टिप्पणियों में मिठाई म और मूंगफल्ली जैसा अंतर होता है. मिठाई रोज-रोज नहीं खाई जाती ,जबकि मूंगफल्ली टाईम-पास करने के लिए कभी भी और कई बार खाई जाती है.
जवाब देंहटाएंटिपण्णी और उनकी सार्थकता के बारे में अच्छे विचार . टिपण्णी के माध्यम से हम अपने विचारो का आदान प्रदान करते है और सहमत या असहमत होने का पूरा अवसर होता है . लेकिन मतभेद कई बार मनभेद बन जाता है जो कतई उचित नहीं है . सुन्दर सार्थक आलेख .
जवाब देंहटाएंTippaniyo ke baare me bahut sundar lekh aap ka. mai aap ke bicharo se purntah sahmat hun.
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट...अच्छा विषय
जवाब देंहटाएंकई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..