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मंगलवार, 27 नवंबर 2018

वो फरिश्ते कम ही होते है.........


बहुत दूर तलक साथ दे,
वो रिश्ते कम ही होते हैं
औरों के लिये भी जियें
वो अपने कम ही होते हैं

दिखती तो हैं कई चेहरों में
कुछ अपनेपन की फिकर
बिन कहे दर्द दिल के सिये
वो अपने कम ही होते है

धूम करने को महफिल में
बहुत से है तराने, लेकिन
बुझे दिल की रौशनाई बने
वो नगमे कम ही होते हैं

जी कर भी तमाम उम्र
तलाश अधूरी सी, अबतक
मुकम्मल जिन्दगी कर दे
वो लमहे कम ही होते हैं

कामयाबी पे मिलते है गले
बेगाने भी अपनो की तरह
सख्त राहों में हमकदम बने
वो फरिश्ते कम ही होते है

रविवार, 18 नवंबर 2018

परची



सलिल और अनीता की शादी को करीब आठ साल हो चुके थे किन्तु आंगन आज तक सूना था, कोई ऐसा डॉक्टर नही बचा था जिन्हे दिखाया न गया हो, कोई ऐसा मन्दिर नही था जहाँ मन्नत न मांगी गयी हो। जब सभी आशाओं ने दम तोड दिया तब दम्पति ने एक बच्चा गोद देने का निश्चय किया। आज इसी उद्देश्य से दोनो "अपना घर" अनाथाश्रम में आये थे। इस अनाथाश्रम में करीब पचास साठ बच्चे थे, अनाथाश्रम की संचालिका इरा ने उन्हे बच्चों से मिलवाया, दोनो कुछ समय बच्चों के साथ समय बिता यह कह कर वापस आ गये कि आपको दो चार दिनों में बताते है कि हम किस बच्चे को गोद लेंगें।
करीब एक हफ्ते बाद वह बच्चा लेने के लिये वापस अपना घर आये। उन्होने एक बच्चा जो करीब चार साल का था उसको लेने का निश्चय किया था। उन्होने संचालिका इरा से कहा- हम लोग करीब एक हफ्ते पहले आये थे, बच्चे देखकर गये थे, हम दोनो ने काफी सोचा और फिर रोहित को ले जाने का निश्चय किया है, आप हमे बच्चा लेने का प्रासेस बता दीजिये।  
इरा ने कहा- माफ कीजिये हम आपको रोहित क्या अपने किसी भी बच्चे को नही दे सकते। सलिल और अनीता ये सुनकर हैरान थे, अनीता ने कहा- नही दे सकते, हम आपका मतलब नही समझे, पिछले हफ्ते तो आपने कुछ नही कहा था, आखिर क्यों नही दे सकती।
इरा ने कहा- मै उन लोगों को बच्चा नही देती जो बच्चे को देखकर या सोच समझकर ले जाते है, मेरे बच्चे कोई वस्तु नही। मै ऐसे किसी भी माता पिता को अपना बच्चा नही सौंपती। शायद आपने हमारे बारे में सुना नही है, यहाँ जब कोई माता पिता बच्चा लेने आते है तो हम सारे बच्चों के नाम की परचियों में से एक परची चुनने को उन्हे कहते हैं, हमारे यहाँ बच्चों का चुनाव करने का प्रावधान नही है, अनीता जी, ममता का न रूप होता है न रंग, न उम्र होती है न धर्म। फिर थोडा रुक कर इरा जी ने अनीता को प्रश्नात्मक निगाह से देखते हुये कहा - ममता और जरूरत के अन्तर को तो आप भी समझती होंगी। मेरे बच्चे किसी की जरूरत को पूरा करने के लिये नही, हाँ ममता के आकांक्षी जरूर हैं, और हम अपने बच्चों को सही हाथों में सौपने के प्रति बेहद सावधान रहते हैं। मेरे अनाथाश्रम का नाम यूं ही अपना घर नही, वास्तव में ये मेरे बच्चों का अपना घर है।
इरा जी को सुनकर  सलिल और अनीता को अपनी भूल का अहसास हो चुका था। इरा जी से माफी मांगते हुये अनीता ने विनम्र स्वर में कहा- हम अपनी सोच पर शर्मिन्दा है, आपने आज जो सिखाया है, वो हमे आजीवन याद रहेगा, मै बस आप्आसे विनती कराती हूँ अपनी बगिया का एक फूल हमें सौंप दीजिये, हम आपको विश्वास दिलाते हैं आपके फूल को आपसा ही प्यार देंगे। प्लीज हमे माफ कर दीजिये, कहकर अनीता ने इरा जी के सामने अपना आंचल फैला दिया, इरा जी भी एक अनुभवी सेवानिवॄत्त प्राध्यापिका थी,  व्यक्ति को परखने में उनसे चूक होने का प्रश्न ही नही था। उन्होने अनीता को गले  लगा लिया और मुस्कुराते हुये बोली- आओ चुन लो एक परची और पूरा करो बच्चा गोद लेने का प्रॉसेस।

गुरुवार, 1 नवंबर 2018

इक्तेफाक- The coincidence


कैसे समझ लूं, मिलना तुमसे
महज इक्तेफाक था
इतने बडे जहाँ में
एक छत के नीचे
तेरा मेरा साथ होना
महज इक्तेफाक था
हजारों की भीड में
टकरा जाना
तेरी नजरों का मेरी नजरों से
महज इक्तेफाक था
हसी खुशी के मंजर में
अचानक से दहशतगर्दों का
विस्फोट करना
और मेरा तेरी बाहों में गिर जाना
महज इक्तेफाक था
किसी अन्जान की परवाह में
कई रातों जगना
सलामती की दुआ मांगना
मेरे जख्मों का दर्द
तेरी सीने में उतर आना
महज इक्तेफाक था
चंद दिनों पहले के अनजबियों का
अपनो से बढकर हो जाना
महज इक्तेफाक था
तुमसे मिलने से पहले 
मेरे दिल का सूना और 
तेरे दिल का वीरां होना
महज इक्तेफाक था
नही, बिल्कुल नही मान सकता मेरा दिल
कि इतना कुछ
महज इक्तेफाक था
हमे मिलना ही था,
इसलिये हम मिले थे
मगर यूं मिलना
हाँ वो , महज इक्तेफाक था

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