बहुत दूर तलक साथ दे,
वो रिश्ते कम ही होते हैं
औरों के लिये भी जियें
वो अपने कम ही होते हैं
दिखती तो हैं कई चेहरों में
कुछ अपनेपन की फिकर
बिन कहे दर्द दिल के सिये
वो अपने कम ही होते है
धूम करने को महफिल में
बहुत से है तराने, लेकिन
बुझे दिल की रौशनाई बने
वो नगमे कम ही होते हैं
जी कर भी तमाम उम्र
तलाश अधूरी सी, अबतक
मुकम्मल जिन्दगी कर दे
वो लमहे कम ही होते हैं
कामयाबी पे मिलते है गले
बेगाने भी अपनो की तरह
सख्त राहों में हमकदम बने
वो फरिश्ते कम ही होते है
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 29 नवम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1231 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.11.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3170 में दिया जायगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह्ह्ह... बहुत खूब...बहुत शानदार रचना👌
जवाब देंहटाएंगहराई तक उतरते सच्चे उद्गगार।
जवाब देंहटाएंचलते हैं रहगुजर में
यूं तो साथ कई राही
मंजिल तक साथ चले
वो हमसफर कम ही होते हैं।
सुन्दर पंक्तियां
हटाएंवाह!!अपर्णा जी ,बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, एकदम सटीक...
लाजवाब रचना