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गुरुवार, 31 अगस्त 2017

मन की बात


जानती हूँ 
मै साधन सम्पन्न नही
न आपसी आवाज मेरी बात में
किन्तु सोचती शायद पहुंचे
आप तक मेरी बात ये
सम्भव नही और न जरूरत
कहूँ सभी से मन की बात
पर जरूरी है कह ही दूँ
उठती हदय में जो बात

हूँ बहुत छोटी
उम्र में भी अनुभवों में भी
किन्तु सौ करोड में
हूँ इक इकाई मै भी

देश को संचार तकनीक
से भी कुछ ज्यादा जरूरी
खेत को समेटेने से
उन्नति रहेगी अधूरी

हो सके तो गाँव से
गाँव न मिटने दीजिये
किसान को शहरो में
मजदूर न बनने दीजिये

हर शहर में रोटी रहे
ऐसा अपना विज्ञान हो
घर का बच्चा घर में रहे
ऐसा कुछ प्राव्धान हो

आज हर किसी घर का
एक ही बस राग है
वॄद्ध दम्पति घर में अकेला
सन्तानों का मल्टीनेशनल काम है

चार कमरो के घर
इधर वीरान हो रहे
उधर शहर बसाने को
खेत बंजर हो रहे

जाती ट्रेन टेलीफोन पर
महीने की आधी कमाई
अपने घर के सपने ने
नींद युवाओं की उठाई

नही चाहती देश मेरा
हो अमेरिका या जापान सा
हो सके तो हिन्द करो दो
सोने की चिडिया के जैसा

हर गली हर मोड पर
लोग मेरे खुशहाल हो
अपने घर से पलायन को
न मजबूर हिन्दुस्तान हो

न मजबूर हिन्दुस्तान हो

सोमवार, 28 अगस्त 2017

पाती प्रेम की


ओ प्यारे कबूतर
सुना है मैने
लोग तुम्हे कहते थे
प्रेम का दूत
जाने कितने
दिलों को तुमने मिलाया
जाने कितने
बुझे चिरागों को जलाया
आज मेरा भी
एक काम कर दे
मेरे प्रियतम को
इक संदेश दे दे
जल रहा है
मन मेरा वेदना में
जा उन्हे 
सांसें मेरी शेष दे दे
हे! नारि विज्ञान युग में
साधनो की क्या कमी
फिर लिये बैठी क्यू
नैनों में अपनी नमी
उस पर बुलाती हो
देने को प्रेम पाती
कही तुम मेरे हुनर
को तो नही हो आजमाती
न न ओ मेरे पंक्षी प्यारे
ओ मेरे दुख के साथी
तेरे सिवा सौपूं किसे
आखिर मै ये प्रेम पाती
जानती उनके सिवा न देगा
खत किसी को है यकी
जवाब की पाती लिये बिन
लौटना तेरा मुंकिन नही
तू ही बता कैसे करूं
यकी आधुनिक साधनो पर
कैसे करूं जतन वो डाले
ई-मेल पर अपनी नजर
फोन भी वो बन्द करके
गुम कहाँ जाने हुये
कल तलक जो पास
इक पल में वो अनजाने हुये
ढूंढू कैसे मै अकेली
इतने बडे जहान में
आखिर कुछ सीमायें भी तो
है मेरे विज्ञान में
तू पहुँच सकता है बस
मेरे प्रियतम के द्वार पर
ओ मेरे प्यारे पंक्षी
मुझ पर ये उपकार कर

रविवार, 27 अगस्त 2017

तडपते जज्बात


जब भी ख्याल हुआ, अब जीने में कुछ नही
जिन्दगी ने कहा, सफर ऐसे तो खतम नही
माना मिल जाते है साँप, आस्तीन के बाजारों में
न करूं यकी हमनिवालों का, ये भी तो हल नही

सुना था कानून अन्धा होता है,
सुना था धर्म आँख खोल देता है
शुक्र है जमाने में अभी सब नही बिगडा
जब धर्म हो अन्धा, कानून सच तोल देता

वो लहू बहाते है, मजहब ने नाम पर
वो घर जलाते हैं, मजहब के नाम पर
कौन कहता है, आतंकी एक कौम के लोगो को
ये सडकों पर हिंसा का नाच, क्या आतंकवाद नही

आवाज सच की धीमी ही सही
हमारी बात आज तेरी न सही
क्या रह सकेगा उस आग से बेखौफ कल भी
जब जलेगा शहर मेरी जुबां दबाने से

भूल जाओ, कि भूलने कि आदत है तुमको
क्या हुआ, कल शहर में तुम्हे क्या करना है
अच्छा किया, जो निकले नही कल घर से 
तेरे अपने बच गये, मरो का तुम्हे क्या करना है

उफ कहाँ गयी है हया, मुँह छिपाने अपना
कैसे दरिन्दों को मानते हो भगवान अपना
रोक लो खुद को, सोचो जरा रुक कर तुम
क्या जरूरी है, सीखो सब जला कर अपना

जाने क्या चाहते हैं वो, देना अपनी नस्लों को
जाने क्या डालते हैं खेतों में, अपनी फसलों को
नफरत के बीज दे रही है सियासत, बिना सब्जिडी
आग पेट की बुझाने को क्यों, किसी का घर जलाते हो

हरियाली भी बिकने लगी, इन्टरनेट की दुकान पर
इन्सानों से ज्यादा, मशीने रहने लगी मकान पर
खुशबुयें समेट रही हैं, अपने जज्बात आज कल
गुलाब खिलते नही, अब बनते है किसी बजार पर

शनिवार, 26 अगस्त 2017

ये कैसा सिलसिला है.......................



क्यो नही रुकता ये सिलसिला
सिलसिला जिसमें चले जाते है सब
धरम की आड में बिना समझे
एक अन्धेरी खोखली गली

सिलसिला जिसमें दिखता है बस
पागल पागलपन और जुनून
बहाने को खून की नदी

सिलसिला जिसमें मिटता है सच
धन बल सत्ता की तलवार पर
सिसकती रह जाती है जिन्दगी

सिलसिला जो कर रहा है संतुष्ट
भूखे वहसी भेडियों की हवस
लूट कर अस्मिता, लाचारी, तिजोरी

सिलसिला जो संकेत है विनाश का
तोड देगी किसी दिन अपना दम
जलती धरती बिलखती मनुजता

सिलसिला कोई तो रोक लो
मनुष्य के दानव बनने का
या बना ही दो, धरा को दानवग्रह

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

जाने कितने


जाने कितने छूटे हैं जाने कितने छूटेंगें
सोच की तंग गलियों में जाने कितने रूठेंगें

कुछ लोग गले से लगायेगे
फिर खंजर दिल पे चलायेगे
बन करके सबब बर्बादी का
जख्मों पर मरहम लगायेगे
जाल बिछा् अपनेपन का, सब हौले हौले लूटेंगे
जाने कितने छूटे हैं जाने कितने छूटेंगें

बुलंदी पर जश्न मनायेंगें
और जाम में जहर पिलायेंगें
स्वांग रचाके लव सव का
दामन में दाग लगायेंगें
गर सपने सरेआम किये, अरमान यहाँ फिर टूटेंगें
जाने कितने छूटे हैं जाने कितने छूटेंगें

सहमे हैं कभी, कभी सिमट गये
घिनौनी नजरों से घर में भी घिरे
कभी सब खो गहरे पानी में डूबे
कभी बचने को आग में कूद गये
ऐ बदनीयत जा बदल, हम ज्वाला बन फूटेंगें
जाने कितने छूटे हैं जाने कितने छूटेंगें

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

उम्र- The Notion of Life


उम्र तो बस उम्र होती है
जितनी भी हो पूरी होती है

चाहे कह लो इसे अच्छी बुरी
चाहे समझो इसे छोटी बडी
इसमें जिन्दगी की उमीद होती है
उम्र तो बस उम्र होती है.......................


कोई काटता है कोई गुजारता है
कोई जीता है कोई संवारता है
सप्तसुरों से सजी सरगम होती है
उम्र तो बस उम्र होती है...........................

कौन माप सका अवधि इसकी
कौन रोक सका गति इसकी
चक्र पूर्ण कर ही नींद में खोती है
उम्र तो बस उम्र होती है........................

कोई जीता है इसे ख्वाबों में
कोई खोता है इसे यादों में
हर किसी की ये पहली प्रीत होती है
उम्र तो बस उम्र होती है.............................

न आधी, न अधूरी होती है
जितनी भी हो पूरी होती है 
उम्र तो बस उम्र होती है.........................

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

प्रतिक्रिया

उस समय लोग बुद्ध को भगवान समझने लगे थे, लोग उनकी बातों को सुनते और उनके कहे अनुसार आचरण करते थे। एक गाँव में एक लकडहारा बुद्ध से ईर्ष्या रखता था, सभी से उनकी बुराई करता, और कहता सब उनकी पूजा करते हैं इसलिये वो शान्त रहते हैं मै जब चाँहू उनसे लडाई कर सकता हूँ उनको क्रोध दिला सकता हूँ।
एक दिन वह खुद को सत्य सिद्ध करने के उद्देश्य से वहाँ गया जहाँ बुद्ध रहते थे। वहाँ उसने देखा कि भगवान बुद्ध तपस्या में लीन हैं। कुछ देर तक तो वह उनकी आंखे खुलने का इन्तजार करता रहा, फिर जब उससे रहा नही गया तो वह बुद्ध के निकट गया और उनके चेहरे पर थूक दिया और फिर कुछ दूर खडा हो गया। वह सोच रहा था कि जरूर मेरे ऐसा करने से वह आंख खोलेंगे और गुस्सा करेगें तब मै उनसे लडाई करूंगा और सारे गाँव वालो को शोर से बुला कर दिखाऊंगा कि बुद्ध को भी क्रोध आता है।
कुछ देर इन्तजार करने के बाद जब बुद्ध ने आंख खोली और अपने अंगवस्त्र से थूक साफ करते हुये बोले- तुम्हे और कुछ कहना है। लकडहारा बडे आश्चर्य में पड गया क्योकि वह ऐसे व्यवहार की कल्पना भी नही कर सकता था। फिर भी लडाई करने के उद्देश्य से गुस्सा करते हुये बोला- मैने आप पर थूका है, आपको गुस्सा नही आ रहा। और आप कह रहे हो और कुछ कहना है।
बुद्ध बोले- हाँ, मैं पूँछ रहा हूँ, तुम कुछ और भी कहना चाहते हो क्या?
लकडहारा कुछ समझ नही पाया कि अब उसको क्या कहन चाहिये, बिना कुछ और कहे वहाँ से चला गया। गाँव आ कर उसने जब लोगो को यह बताया कि आज उसने बुद्ध पर थूका है तो लोगो ने उसे समझाया कि यह उसने बहुत गलत किया है, वो बहुत महान हैं, अब भगवान उसे इसकी सजा देंगें, और भी कई प्रकार से लोगो ने उसको डराया। लोगों की बातें सुनकर वह बहुत डर गया और सारी बारात वह यही सोचता रहा कि सच में उससे कुछ गलत हो गया है, मुझे जाकर माफी मांग लेनी चाहिये, वरना भगवान उसे सजा देंगें।
अगली सुबह वह बहुत जल्दी उठा और बुद्ध के पास गया। बुद्ध तपस्या में लीन थे। वह खडे होकर उनकी प्रतीक्षा करने लगा। जब बहुत देर हो गयी और बुद्ध ने आँख नही खोली तो वह बुद्ध के पैरों में जा कर गिर गया, उसे अपनी गलती का अहसास था, उसकी आंखों से आँसू निकल पडे। आसुओं के आभास से बुद्ध ने नेत्र खोल दिये और बोले- तुम्हे और कुछ कहना है।
लकडहारा फिर कुछ नही समझ पाया, बोला - आपने कल भी यही कहा था, आज भी यही कह रहे हैं, मैने तो कल भी कुछ नही कहा था, आप पर थूक कर चला गया था, आज भी कुछ नही कहा, बस आपके चरणों में आकर गिर गया। मगर आपने मुझसे कुछ कहा ही नही।
बुद्ध बोले- कल तुम्हे जो भाषा आती थी तुमने उस भाषा में मुझसे बात की थी, और आज भी ऐसा ही किया। तुम मुझसे कुछ्ह कहना चाहते थे, मगर मुझे तो तुमसे कुछ भी नही कहना था।
मै तुम्हारे अनुसार अपना आचरण तय नही कर सकता कि जब तुम चाहो मेरे हदय में तुम्हारे लिये घॄणा हो, जब तुम चाहो मै तुम पर करुणा करूं।
अपने आचरण का निश्चय मैं स्वयं करूंगा, कोई अन्य नही।

सच, हम अक्सर अपने जीवन में प्रतिक्रिया करते हैं, जो जैसा हमसे चाहता है वैसा हम करते हैं। उसमें हमारा निर्णय नही होता। हमारा अपना निर्णय जब होता है तब प्रतिउत्तर होना चाहिये न कि प्रतिक्रिया।

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

खाली हो


अल्बर्ट स्मिथ, अमेरिका की एक जानी मानी यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर थे। एक बार अपनी क्लास में वह सत्य, ज्ञान और धर्म पर अपना व्याख्यान दे रहे थे। अचानक उन्हे रोकते हुये उनके एक विघार्थी ने कहा- सर आप जो भी कह रहे हैं उसमें भाव नही आ रहा, ऐसा लग रहा है जैसे आप सिर्फ किताबी ज्ञान दे रहे हैं। आपने कभी इसे अनुभव नही किया। कभी आप जापान के सन्त चितोस को सुनियेगा, उनकी बातों में भाव होता है, उनकी हर बात सच लगती है।
अल्बर्ट बहुत ही समझदार और धैर्य वाले व्यक्ति थे, उन्होने विधार्थी की बातों पर विचार किया, और कालेज की छुट्टियों में जापान जाकर चितोस से मिलने का निश्चय किया।
चितोस एक ऊंची पहाडी पर एकान्त में रहते थे। लोगों से उनका पता पूछते पूछते एवं दुर्गम रास्तों से होते अल्बर्ट अन्ततः चितोस की कुटिया तक आ पहुंचे। उन्होने चितोस को आवाज लगाई। दरवाजे पर एक दुर्बल व्यक्ति आया जिसका रंग कुछ काला और चेहरा चेचक के दागों से भरा था, कुल मिलाकर कहा जाय तो वह व्यक्ति पूर्णतः आकर्षणहीन था। अल्बर्ट ने कहा- मुझे चितोस से मिलना है, दरवाजे पर आये व्यक्ति ने विनम्रता से कहा- मेरा नाम ही चितोस है, कहिये मै आपके लिये क्या कर सकता हूँ। यह सुनकर अल्बर्ट को आने का पूरा उश्देश्य ही विफल लगने लगा, वह सोचने लगा क्यो यहाँ आकर समय खराब किया, भला यह बदसूरत सा दिखने वाला, कमजोर सा व्यक्ति मुझे क्या बतायेगा। फिर भी यह सोचकर की कि आ गया हूँ तो पूंछ ही लेता हूँ, अल्बर्ट ने कहा- मै अमेरिका की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र का प्रोफेसर हूँ, मेरे एक विघार्थी ने कहा कि आप जानते है कि सत्य ईश्वर और धर्म क्या है। मुझे जल्दी से बता दो और मै जाऊँ, अभी बहुत दूर वापस जाना है।
चितोस ने कहा- बताता हूँ, पहले आप अन्दर तो आइये, आप बहुत थके हुये से लग रहे है, आइये एक कप चाय पीजिये।
अल्बर्ट ने कहा- नही मै ठीक हूँ, आप बस बता दीजिये, मुझे वापस भी जाना है। मगर पुनः चितोस के आग्रह पर अल्बर्ट अन्दर चले गये, वो अनुभव करने लगे कि वाकई वो थके हैं और एक कप चाय की उन्हे बेहद जरूरत थी।
तभी चितोस चाय की केतली और कप लेकर आ गये। उन्होने अल्बर्ट को कप प्लेट पकडाई और कप में चाय डालने लगे। जब अल्बर्ट ने देखा कि चाय, कप में पूरी तरह भर चुकी है और प्लेट से बस निकलने ही वाली है तो कुछ नाराजगी से बोले- ये क्या, आप देख नही रहे कि कप भर गया है इसमें और चाय नही आ सकती।
चितोस ने कहा- आपने सही कहा,  क्या आपने यहाँ आने से पूर्व ध्यान दिया कि आप खाली नही हैं।

अल्बर्ट भी एक समझदार व्यक्ति थे, वे चितोस की बात का अर्थ समझ गये कि जब हम किसी के पास कुछ सीखने जाय तो मन मे ग्रहण करने का भाव भी होना चाहिये। अल्बर्ट उठ खडे हुये और माफी माँगते हुये बोले- मै जाता हूँ और जब खाली हो जाऊंगा तब आपके पास अपने उत्तर के लिये वापस आऊंगा। चितोस ने उन्हे प्रेमपूर्वक रोका और कहा- मित्र मेरा विश्वास कीजिये आप जब खाली हो जायेंगे, तब आपको मेरे पास आने की आवश्यकता भी नही रहेगी।
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