ओ प्यारे
कबूतर
सुना है मैने
लोग तुम्हे
कहते थे
प्रेम का
दूत
जाने कितने
दिलों को
तुमने मिलाया
जाने कितने
बुझे चिरागों
को जलाया
आज मेरा भी
एक काम कर
दे
मेरे प्रियतम
को
इक संदेश
दे दे
जल रहा है
मन मेरा वेदना
में
जा उन्हे
सांसें मेरी शेष दे
दे
हे! नारि विज्ञान युग में
साधनो
की क्या कमी
फिर लिये बैठी क्यू
नैनों में
अपनी नमी
उस पर बुलाती
हो
देने को प्रेम
पाती
कही तुम मेरे
हुनर
को तो नही
हो आजमाती
न न ओ मेरे
पंक्षी प्यारे
ओ मेरे दुख
के साथी
तेरे सिवा
सौपूं किसे
आखिर मै ये
प्रेम पाती
जानती उनके
सिवा न देगा
खत किसी को है यकी
जवाब की पाती
लिये बिन
लौटना तेरा
मुंकिन नही
तू ही बता
कैसे करूं
यकी आधुनिक
साधनो पर
कैसे करूं
जतन वो डाले
ई-मेल पर
अपनी नजर
फोन भी वो
बन्द करके
गुम कहाँ
जाने हुये
कल तलक जो
पास
इक पल में
वो अनजाने हुये
ढूंढू कैसे
मै अकेली
इतने बडे
जहान में
आखिर कुछ सीमायें भी तो
है मेरे विज्ञान
में
तू पहुँच
सकता है बस
मेरे प्रियतम
के द्वार पर
ओ मेरे प्यारे
पंक्षी
मुझ पर ये
उपकार कर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-08-2017) को "गम है उसको भुला रहे हैं" (चर्चा अंक-2712) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय आपकी एक -एक पंक्तियाँ लाज़वाब हैं बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2713 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Bahut sundar rachana hai
जवाब देंहटाएंOsm ji
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
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