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गुरुवार, 31 मई 2018

हो जाये तो अच्छा


न हँसने का दिल
न रोने का मन
कुछ गुमसुम सी
गुजर जाये तो अच्छा
न दोस्ती का नाता
न बैर का रिश्ता
कुछ अजनबी ही
रह जायें तो अच्छा
न गर्म दोपहर
न स्याह रात
कुछ ठंडी शामे भी
मिल जाये तो अच्छा
न जीने की तमन्ना
न मरने की ख्वाइश
जिन्दगी कुछ यूँ ही
बीत जाये तो अच्छा
न मिलने की आरजू
न खोने की कसक
वक्त कही खुद ही
ठहर जाये तो अच्छा
न गुरुर का नशा
न कमतर का गम
उम्र कुछ दरिया सी
बहती जाये तो अच्छा

मंगलवार, 29 मई 2018

ये वही लड़की है………………




तीन साल की मेहनत, माँ पिता जी के आशीर्वाद और ईश्वर की अनुकम्पा से आज राधिका ने यू. पी. पी. सी. एस. में फर्स्ट रैंक हासिल की। कल तक उसे मोहल्ले के जो लोग पढाकू, घमंडी और न जाने क्या क्या कहते थे, आज अखबारों के पहले पन्ने पर छपी राधिका की तस्वीर देख अपनी राय बदल चुके थे, सुबह से लोग बधाई देने आ रहे थे, सभी दिल से आये हो ऐसा न था, कुछ लोग अपने नये सम्बन्ध बनाने को भी आतुर थे, कोई कह रहा था- राधिका की माँ मै तो पहले से ही जानती थी आपकी बेटी जरूर एक दिन आपका ही नही हम सबका नाम रौशन करेगी, कोई कह रहा था, बिटिया ने मोहल्ले का नाम ऊंचा कर दिया……
शाम को राधिका अपने मित्रों की जिद पर उनको पार्टी देने गयी। फ्रैंड्स जिद कर रहे थे पार्टी हो हम कान्हा कोंटीनेन्टल में ही लेंगें, जो की राधिका के घर से काफी दूर था, पर माँ ने कहा- कोई बात नही बेटा- दोस्तो का भी हक होता है, फिर स्कूटी से तो जाना है तुझे, हाँ बस जरा समय का ख्याल रखना।
पार्टी खत्म होते होते करीब ९ बज गये, वैसे तो मई जून के महीने में नौ बजे शहरों में सड़कों पर खूब चहल पहल रहती है मगर अचानक कुछ आंधी का सा मौसम बनने के कारण थोडा सन्नाटा सा होने लगा था। राधिका रोज की अपेक्षा कुछ तेज स्कूटी चलाते हुये खुद को ही कोस रही थी कि अन्दर रेस्टोरेंट में न समय का पता चला न मौसम का, और आज पता नही क्यों माँ ने भी फोन करके जल्दी आने को नही कहा, शायद आज वो मुझे मेरी खुशी को कम नही करना चाहती थीं, राधिका ऐसे ही ख्यालों में खोई हुयी स्कूटी चला रही थी कि अचानक तीन लोगों ने बाइक से उसे घेर लिया। राधिका कुछ समझ पाती इससे पहले वो सब हो गया जो किसी भी लड़्की के जीवन में नही होना चाहिये था। उसे नही याद कि कौन उसके लहूलुहान तन और मॄत मन को किस तरह अस्पताल ले कर आया। कुछ ही पलों में उसकी सारी खुशियां कही दूर जा चुकीं थी। माँ पिता जी जो कल शाम तक गर्व से सर उठाये खुश थे, शर्म से उनके कांधे और आँखे झुकी जा रही थी। कल सुबह जिस मीडिया ने मेरी सफलता की तस्वीरे छापी थीं, वो उसकी बर्बादी की खबर लिखने को आतुर था। मगर राधिका ने निश्चय किया और मन ही मन खुद से बोली- जीवन की एक दुर्घटना मेरे जीवन को समाप्त नही कर सकेगी। राक्षस मेरा शरीर नोच सकते है, मेरा आत्मविश्वास नही। एक रात का अन्धकार मेरे जीवन के हर उजालें को नही ढक सकता। अस्पताल मेरे शरीर के घाव भर कर मुझे दो चार दिन में यहाँ से छुट्टी दे ही देगा मगर मन पर लगे घाव मुझे ही भरने होंगे, वो भी उस समाज में रह कर जो पल पल मुझे देख कर याद दिलायेंगा – ये वही लड़की है जिसके साथ……..

शुक्रवार, 25 मई 2018

रात, नींद और ख्वाब


हर रोज की तरह आज भी 
शाम ढलते ही
रात आयी 
धीरे धीरे
अपनी मुट्ठी बन्द किये
बडी बेसब्री से मिली उससे
कुछ न सूझा
बस गले लगा लिया 
फिर धीरे से 
पास जाकर कान में पूछा 
क्या लाई हो
आज मेरे लिए 
नींद या ख्वाब .........
रात चुप रही 
कुछ भी न बोली
उसकी चुप ने 
मुझे बेचैन कर दिया
मैने कहा -
कुछ तो कहो 
क्या हुआ 
आखिर क्यो हो परेशान 
रास्ते में कुछ हुआ क्या
फिर कोई मिला क्या
अंधेरों का फायदा उठाने वाला
हौले से मेरे कंधे पर हाथ रख
रात कुछ गम्भीरता से बोली
नही कोई मिला तो नही
मगर
मै देख रही हूँ
सो रहे है लोग जागते हुए भी
सो गई है इंसान मेंं इन्सानियत
सो गया है उसका स्वाभिमान
सो गयी है नेक नियत
सो गया है देश समाज के लिये प्रेम
भाग रहे है सब सपनो के पीछे 
सोते सोते

कैसे लाऊं ऐसे मे 
मै नींद और ख्वाब 
गर मैने भी सुला दिया सबको 
तो सुलाना पडेगा ये देश
सदा सदा के लिए 
जहाँ नही होगी गुंजाइश
ख्वाबों की
कि ख्वाब पूरा करने को तो
पडेगा जागना

इसलिए नही लाई कुछ भी
आज तेरे लिए 
चलो आओ मेरे साथ
जगाए सोए लोगो को 
ताकि हो सके सपने पूरे 
उन लोगो के 
जो सो गए हसते हसते 
सदा के लिए 
अपने प्यारे भारत की
सुकून की नींद और ख्वाब के लिए

शनिवार, 12 मई 2018

हर दोपाया आदम नही


नही कहा जा सकता
हर हाड़ मांस वाले
दो हाथो और दो पाये वाले को
इंसान

और भी बहुत कुछ  चाहिये
दो हाथों दो पैरों
पांच इन्द्रियों
और शेष वो सब
जिससे मिल कर बने ढाँचे को
सम्बोधित कर सकती है दुनिया
मानव योनि 
के अलावा

भले ही
मानव योनि में जन्म
होता हो
पूर्व कर्मों का फल
किन्तु मानव रचना को
इंसान कहलाने के लिये
गुजरना होता है
एक सतत प्रकिया से
बनना पड़्ता है वो कमल
जो रखता है
स्वच्छ स्वयं को
कीचड़ मे भी
नही होती प्रभावित रचं मात्र भी
उसकी कोमलता
उसकी सुगंध और
उसके सदगुण

भला कैसे कहा जा सकता है
हाड़ मांस वाले
दोपाये को इंसान
जिसके अंतर्मन में घर बना चुके हो
द्वेषईर्ष्यादंभ
जिसकी सोच में हो कपट
जिसकें कर्म हो अमानवीय
और जिसके हदय में हो छल

वो पुष्प
जो आकार में कमल सा हो 
किन्तु
उपजे हो नुकीले कांटे
आती हो दुर्गंध
पत्थर जैसी हो कठोरता
और
हो अंधेरें सा कालापन
नही कहलायेगा 
कमल
नही चढेगा पूजा में

आकॄति के आधार पर 
नही हो सकती गुणों की माप 
अन्यथा
एक ही कहलाते
देव और दैत्य 

गुरुवार, 3 मई 2018

पलाश का पत्र- पाठ्कों केलिये

आप सभी के साथ अपनी खुशी बाँटते हुये और भी खुशी का अनुभव कर रही हूँ
पलाश आज एक छोटे ही सही किन्तु मुकाम पर पहुच गया, आज अगर उसकी पेज दॄश्य संख्या ६ अंको को और टिपणियों की संख्या ४ अंकों को छू सकी तो यह आप सभी के स्नेह और आशीष का परिणाम है।
मई ०३, २०१० को मैने यह ब्लाग अपनी पहली रचना “जीवन से परे” के साथ शुरु किया था। कैसे धीरे धीरे अपने मन के भावों को टूटे फूटे शब्दों का सहारा ले लिखती गयी और करीब ३०० रचनाओं को पलाश में जोड दिया पता ही नही चला।
मुझे याद आता है जब मेरी पहली रचना को चर्चा मंच पर प्रकाशित करने के सूचनार्थ टिप्पणी आयी थी। ब्लाग पर इस टिप्पणी देख कर मन मे जो आनन्द का उत्सव हुआ था, आज उसे शब्दों में नही व्यक्त कर सकती। इसे एक सुखद संयोग ही कहूंगी कि आज १००० वीं टिप्पणी भी पांच लिकों पर आनन्द पर रचना को सम्मिलित किये जाने की सूचना के साथ आयी। श्वेता सिन्हा जी आपका हार्दिक आभार।
आज का दिन शायद संयोगों का ही दिन है, आज पलाश ने अपने आठ वर्ष पूरे कर लिये।आज मेरे लिये खास इस दिन पर उन सभी बडों को नमन जिन्होने पलाश को अपना आशीर्वाद दिया। सभी ब्लाग मित्रों को धन्यवाद, जो समय समय पर पलाश को अपने अमूल्य सुझाव देते रहे।
आप सभी से इसी तरह चिरकाल तक यूं ही स्नेह एवं आशीष की आकांक्षा के साथ एक बार पुनः पलाश के सुधीपाठकों खास कर विदेशी पाठकों का जो हिन्दी और पलाश के साथ हैं, उन सभी का आभार
"पलाश"
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