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बुधवार, 21 जून 2017

दीवार नही उठानी है


मै तो मुसाफिर हूँ, रास्ते घर हैं घर मेरा
मुझे बसने के लिये, दीवार नही उठानी है

मेरे दोस्त कुछ फूल भी है, कुछ कांटे भी
मेरी जिन्दगी अखबार नही, बहता पानी है

रात से दिन कब हुआ है, चांद के जाने से
यहाँ अंधेरा भी, कुछ महलो की निशानी है

बहुत हो रहे हैं चर्चे, गांव में तरक्कियों के 
फिर किसी खेत की मिट्टी, ईट हो जानी है

न बचपन खुश, न बुढापे को सुकून ओ चैन
जाने किस काम मसगूल, देश की जवानी है

इज्जतो आबरू से खेल, इस कदर आम हुआ
कैसे कहे ये मुल्क, तहजीबों की राजधानी है

पलाश लिखती है इतिहास, उजडे जज्बातों का  
जहाँ जिन्दगी कभी शायरी तो कभी कहानी है

गुरुवार, 15 जून 2017

भूले अहसास.......


उडते पक्षी को देखा तो, याद मुझे भी आ गया
मेरी खातिर भी है, ये नील गगन ये हरा चमन

भूल बैठा था खुद को, दुनिया के इस मेले में
जीने की राह बता गया, इक नन्हा रोता बच्चा 

बुरी सबसे लगती थी किस्मत अपनी मुझे सदा,
हर शिकवा मिट गया जब निर्भया को याद किया

कीमत न समझी कभी, हजार, दो हजार की
वक्त बता गया ये तो महीने भर की रोटी थी

कुछ भी तो नही किया, ये कहा था जन्मदाता से
पिता बन अहसास हुआ, उफ क्या मैने कह डाला

कहाँ करता है कोई कुछ किसी की, खुशी के लिये
खुद को खुश रखने से भला, किसने फुरसत पायी
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