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बुधवार, 22 अगस्त 2018

कुछ यूं ही



बडी खामोशी से हमने चुन ली खामोशी
बेअदबी ही अदब जबसे जमाने में हुआ

किससे करे शिकायत किसकी करे शिकायत
दामन में दागों का फैशन जरा जोरों पे है

खुदा का शुक्र जो बक्शा भूल जाने का हुनर
कुछ तो बच गया जिगर लहू लुहान होने से

तबाहियों के मंजर पे जाता दिखता है जमाना
बर्बादियां जब तरक्की की नुमांइन्दगी करती है

बडे शौक से दफन किये जाइये तहजीबो उसूल
नूर परख पाना हर किसी के बस की बात नही

जिधर भी देखा उधर मुखौटे ही मिले
एक मुद्दत से हमने चेहरा नही देखा

तालियों की गडगडाहटें बता देती हैं
खुशी का मंजर है या खुशामद का हुजूम

कुदरत गर्म औ लहू का सर्द मौसम हुआ 
कुछ बारिशें है जरूरी इन रेगिस्तानों में
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