पलाश सिर्फ अपनी डाल पर लगता है और खिल कर धरती पर गिर जाता है। वह सिर्फ अपने लिए अपनी डाल पर ही सीमित रहता है। और डाल से अलग होते ही अपने अस्तित्व को समाप्त कर देता है। यही है उसका पूर्ण समर्पण उस डाल के प्रति जिसने उसको जीवन दिया ।
मंगलवार, 25 अगस्त 2020
मुस्कुराते रहो
सोमवार, 24 अगस्त 2020
सगे- सम्बंधी
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मिल जाता है
जन्म के साथ ही
बहुत कुछ By Default
लडकी के हिस्से आती है
सहनशीलता, ममता, त्याग
और घर की इज्जत
लडके को मिल जाती है
घर जायजाद की चाभी
कुछ भी करने की आजादी
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समय के साथ, पलते बढते
है दोनो
और इस बढते बचपन से
कुछ और मिलता है By Default
अब तुम बडी हो रही हो,
अब तुम बच्ची नहीं रही
ये लडको सी घूमती फिरना
सही नही
जैसे जुमलों की पोटली
मिलती है
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समय चक्र घूमता रहता है
देता रहता है समय समय
पर
कुछ और By Default
युवावस्था की दहलीज भी
खाली हाथों नही मिलती
देती है वो भी
हर वक्त सतर्क रहने की
जिम्मेदारी
समाज की घूरती निगाहें,
वक्त पर घर आने की पाबंदी
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और लडकों को मिल जाता
है लाइसेंस
मौज मस्ती के नाम पर
कुछ भी करने का
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विदाई भी जानती है अपना
कर्तव्य
रिश्तों के नये संसार
के साथ
मिलता है परायापन
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दो घरों के नाम पर
मिलता नही एक भी घर
हाँ मिल जरूर जाते है
कुछ व्रत By Default
सदा सुहागन रहो
जोडी बनी रहे
तुम्हारा सुहाग अमर रहे
जैसे हर आशीर्वाद के साथ
मिलता है
आशीर्वाद By Default
घर में आता है जब
नन्हा मेहमान
सारा आंगन चहक उठता है
सबको देता है अपार खुशी
माँ को विशेष रूप में देता
है
निजी कार्यकलापों की
जिम्मेदारियां
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स्त्री चाहे घरेलू हो
या कामकाजी
रसोई मिलती है उसे
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सडक पर भिडती है
अचानक से दो गाडियां
एक से निकलती है औरत
दूसरे से उतरता है आदमी
भीड से आती है आवाज
उफ ये औरतें क्यों
चलाती हैं गाडियां
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देर रात घर लौटे बेटे
को
सहानुभूति
और
स्त्री को मिलती है
प्रश्नों से भरी
निगाहें
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स्त्री को लडना है
भिडना है
टकराकर आगे निकलना है
इसी By Default से
कि जानती है वो
आखिरकार शक्ति का बिम्ब
है वो
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और बदलना है उसे ही ये
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बुधवार, 19 अगस्त 2020
क्या देखें
समझ नहीं आता हम किधर देखें|
तड़पता जिगर या तेरी नज़र देखें||
मिलन रुखसती तो दस्तूर जग का|
मुड़ मुड़ कर क्यों सूनी डगर देखें||
धूप छांव दोनों ही हैं मुदर्रिस मेरे|
कैसे न फिर हम डूबी सहर देखें||
खो जायें मदहोश जुल्फ़ों के तले|
या कयामत सा हंसीन कहर देखें||
मिले अक्सर ही लोग जरुरतों से|
हमने ओहदों के बड़े असर देखें||
कैसा वादा कर गया बूढ़ी आंखों |से
वापसी तेरी हर घड़ी हर पहर देखें||
पराई मिट्टी में जड़े नहीं जमा करतीं|
लौट कर इक बार अपने शहर देखें||
खिल जाते हैं मोहब्बत से टूटे रिश्ते|
छोड़के जरा जुबां से अब जहर देखें||
मुनासिब नहीं ढूंढूना खामी औरों में|
करके थोडी लोगों की कदर
देखें||
न मिल सके जब सुकूं दौड भाग
से|
कहती पलाश तब, जरा ठहर देखें||