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मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुस्कुराते रहो



प्यार के गीत गाते रहो
हर हाल मुस्कुराते रहो ॥

जीत हार से होकर परे ।
जश्न ए खुशी मनाते रहो ॥

छोड़ परेशानी जमाने की ।
तराने नये गुनगुनाते रहो ॥

गिरा दीवारें जात पात की ।
गिरों को गले से लगाते रहो ॥

बढ़ता चल,चलना ही जिंदगी ।
ठहरों को बात ये बताते रहो ॥

चमकना तन ही काफी नहीं ।
मैले मन का भी मिटाते रहो ॥

कुछ दूरियां ले आती नजदीकी ।
नुस्खा-ए-पलाश आजमाते रहो ॥

सोमवार, 24 अगस्त 2020

सगे- सम्बंधी

आखिर क्या है सम्बंध 
सगे- सम्बंधी में
या बिना संबंध के ही
रहते हैं एक साथ
जैसे रहते हैं कई बार लोग
या दोनों है एक दूसरे के पूरक
क्या इस युग्म में समाहित हैं
वो संबंध भी जिनके मध्य
नहीं है कोई संबंध, संबंध होकर भी
क्या ये मिलकर बनाते हैं परिधि
जिसमें समा सकते हैं
सारे रिश्ते
इक ऐसी परिधि
जिसमें कुछ रिश्ते बंधे तो हैं
सम्बन्ध की डोर से
मगर हैं
भावहीन
जिनके जीवित होने की न है प्रसन्नता
न मृत हो जाने का भय
भावहीन सम्बन्ध झूलते रहते हैं
जीवन और मृत्यु के बीच
अज्ञात सा है इस परिधि का 
केन्द्र बिन्दु
बहुत खोजने पर भी
नहीं दिखता कहीं
मित्रता का भाव
न परिधि पर न परिधि के अन्दर
अवश्य ही मिलेगा
यह कहीं उन्मुक्त आकाश में
विचरता
जो स्वतंत्र होगा
हर दिखावटी बंधन से
जो देगा शरण
सगे-संबंधों से छले
थके मन को
हां यही है केन्द्र बिन्दु
हर सच्चे संबंध का
होकर भी परिधि से बाहर

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मिल जाता है

जन्म के साथ ही

बहुत कुछ By Default

लडकी के हिस्से आती है

सहनशीलता, ममता, त्याग 

और घर की इज्जत 

लडके को मिल जाती है

घर जायजाद की चाभी

कुछ भी करने की आजादी

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समय के साथ, पलते बढते है दोनो

और इस बढते बचपन से

कुछ और मिलता है By Default

अब तुम बडी हो रही हो,

अब तुम बच्ची नहीं रही

ये लडको सी घूमती फिरना सही नही

जैसे जुमलों की पोटली

मिलती है

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समय चक्र घूमता रहता है

देता रहता है समय समय पर

कुछ और By Default

युवावस्था की दहलीज भी

खाली हाथों नही मिलती

देती है वो भी

हर वक्त सतर्क रहने की जिम्मेदारी

समाज की घूरती निगाहें,

वक्त पर घर आने की पाबंदी

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और लडकों को मिल जाता है लाइसेंस

मौज मस्ती के नाम पर

कुछ भी करने का

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विदाई भी जानती है अपना कर्तव्य

रिश्तों के नये संसार के साथ

मिलता है परायापन

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दो घरों के नाम पर

मिलता नही एक भी घर

हाँ मिल जरूर जाते है

कुछ व्रत By Default

सदा सुहागन रहो

जोडी बनी रहे

तुम्हारा सुहाग अमर रहे

जैसे हर आशीर्वाद के साथ

मिलता है पति को 

आशीर्वाद By Default

घर में आता है जब

नन्हा मेहमान

सारा आंगन चहक उठता है

सबको देता है अपार खुशी

माँ को विशेष रूप में देता है

निजी कार्यकलापों की जिम्मेदारियां

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स्त्री चाहे घरेलू हो या कामकाजी

रसोई मिलती है उसे

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सडक पर भिडती है

अचानक से दो गाडियां

एक से निकलती है औरत

दूसरे से उतरता है आदमी

भीड से आती है आवाज

उफ ये औरतें क्यों चलाती हैं गाडियां

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देर रात घर लौटे बेटे को

सहानुभूति

और

स्त्री को मिलती है

प्रश्नों से भरी निगाहें

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स्त्री को लडना है भिडना है

टकराकर आगे निकलना है

इसी By Default से

कि जानती है वो

आखिरकार शक्ति का बिम्ब है वो

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और बदलना है उसे ही ये

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बुधवार, 19 अगस्त 2020

क्या देखें

 

समझ नहीं आता हम किधर देखें|

तड़पता जिगर या तेरी नज़र देखें||

मिलन रुखसती तो दस्तूर जग का|

मुड़ मुड़ कर क्यों सूनी डगर देखें||

धूप छांव दोनों ही हैं मुदर्रिस मेरे|

कैसे  फिर हम डूबी सहर देखें||

खो जायें मदहोश जुल्फ़ों के तले|

या कयामत सा हंसीन कहर देखें||

मिले अक्सर ही लोग जरुरतों से|

हमने ओहदों के बड़े असर देखें||

कैसा वादा कर गया बूढ़ी आंखों |से

वापसी तेरी हर घड़ी हर पहर देखें||

पराई मिट्टी में जड़े नहीं जमा करतीं|

लौट कर इक बार अपने शहर देखें||

खिल जाते हैं मोहब्बत से  टूटे रिश्ते|

छोड़के जरा जुबां से अब जहर देखें||

मुनासिब नहीं ढूंढूना खामी औरों में|

करके थोडी लोगों की कदर देखें||

न मिल सके जब सुकूं दौड भाग से|

कहती पलाश तब, जरा ठहर देखें||

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