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सोमवार, 30 दिसंबर 2019

दाग अच्छे हैं


नही कोई हिचकचाहट
नही कोई शमिन्दगी
नही झुकती मेरी निगाहें
कहने से, मै बेदाग नही

कुछ दाग दिख जायेगें
हर एक नजर को
कुछ दाग बतायेगें
मेरी कमजोरियों को

कुछ दाग हैं ऐसे भी
जो दिखते ही नही
कुछ दाग हैं ऐसे भी
जो मिटते भी नही

कई दाग मेरे लिये
है जीने का हौसला
कई दाग मेरे लिये
हैं संघर्ष का फैसला

हर दाग समेटे है
खुद में एक कहानी
हर दाग किसी याद की
मीठी कडवी निशानी

बचपन के गलियारों में
कुछ दाग मुझे ले जाते
कुछ दाग मगर ऐसे भी
जो दर्द हरा कर जाते

इन दागों को अब मुझे
जीवन का अंग बनाना है
कलंक का ये चिन्ह नही
लोगो को समझाना है

सौन्दर्य को नये सिरे से
करना है मुझको परिभाषत
बेकसूर दाग भी तो
सुन्दरता में हों सहभागित

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

रंग



मै भी देखता हूँ भला कैसे नही प्यार करेगी मुझे। देखना तुम लोग एक दिन इसे तुम सबकी भाभी ना बनाया तो मेरा नाम भी गिरधारी लाल नही। कॉलेज की कैंटीन में गिरधारी अपने दोस्तों के बीच अपने दोस्तों को कम कुछ दूर से निकलती हुयी रीमा और उसकी सहेलियों को ज्यादा सुना रहा था।
चार – पाँच महीने पहले रीमा ने यूनिवर्सिटी मे आर्ट्स में दाखिला लिया था, और गिरधारी कानून की पढाई कर रहा था। वैसे तो गिरधारी को बुरे लडको को श्रेणी में नही रखा जा सकता किन्तु शायद यह उम्र के उस मोड का ही दोष था कि रीमा के बार बार मना करने के बाद, गिरधारी का मन कम पर अभिमान ज्यादा आहत हुआ था। और अब वो किसी भी प्रकार से उसको पाना चाहता था।
प्रियंका, रीमा की बचपन की सहेली थी, वो जानती थी कि रीमा गिरधारी जैसे लडकों से डरने वालों में से नही थी, मगर हर गलत बात का विरोध करने वाली रीमा को वो बिल्कुल शान्त देख रही थी। आज उससे जब रहा नही गया तो उसने पूँछ ही लिया- रीमा ये बताओ तुम इस लडके को जवाब क्यों नही दे देती, दिन पर दिन वो बढ- चढ कर बोल रहा है, तो रीमा ने हल्का सा मुस्करा कर बस इतना कहा – जानती हूँ मेरी प्यारी सखी तुमको मेरी बहुत चिन्ता है , मगर तुम बिल्कुल परेशान ना हो, मै ऐसे किसी भी लडके को तुम्हारा जीजा नही बनाउंगी।
होली की छुट्टियों के बाद आज जब दोनो सहेलियां कॉलेज आ रही थीं तो प्रियंका का मन बहुत डर रहा था, एक तो कई दिन बाद वो रीमा को देखेगा वो भी होली के बाद, कही कुछ अनर्थ ना कर दे।
मगर ये क्या, गिरधारी तो कही दिखा ही नही, और फिर अगले उसके अगले और ना जाने कितने अगले दिनों तक कॉलेज में कही नही दिखा।
एक दिन प्रियंका बोली- रीमा होली के बाद से तो वो दिखा ही नही, उसके दोस्त तो दिखते है पर वो नजर नही आता, उसको कही कुछ हो तो नही गया। रीमा बोली- क्यों परेशान होती हो, हमे क्या लेना देना।
मगर फिर भी प्रियंका के मन में कौतूहल जन्म ले चुका था, एक दिन क्लास से जल्दी निकल कर कैंटीन की तरफ आयी ये सोच कर कि उसका कोई दोस्त दिखे तो पूंछू तो कहाँ गये मियां मजनूं कि तभी उसकी नजर लॉ की क्लास में पढाई कर रहे गिरधारी पर पडी। उसे तो यकीन ही नही आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है, ये कॉलेज आ रहा है और पढाई भी कर रहा है।
वापस वो क्लास की तरफ ये सोच कर मुड गयी कि रीमा को भी ये दुर्लभ दॄश्य दिखाना चाहिये। किन्तु जैसे ही उसने सारी बात रीमा को बताई उसने कहा- ठीक ही तो है कॉलेज में पढाई ही तो करनी चाहिये।
प्रियंका को उसके जवाब से आश्चर्य हुआ फिर अगले ही पल बोली अब ये बताओ आखिर क्या तुमने उससे कुछ कहा है, या फिर मुझे ये उससे ही जा कर पूंछना होगा कह कर प्रियंका जाने के लिये मुडी तभी रीमा ने हाथ पकड कर कहा – अच्छा सुनो, होली वाले दिन ये महाशय घर तक आये थे, मालूम नही उसको यह पता था कि इस समय कोई घर पर नही या फिर कोई इक्तेफाक हुआ था। गेट खोला तो हाथ में रंग लिये खडा था, पता नही कुछ संस्कार बचे थे या नाटक कर करा था , बोला- हम आपको रंग लगाने आये है। एक पल को तो मुझे भी कुछ समझ नही आया, रंग लगवा लेने का तो सवाल ही पैदा नही होता और मना करने पर बहुत कुछ हो सकता था। बहुत सोच समझ कर बहुत ही शान्त लहजे में मैने कहा- मुझे कोई परेशानी नही रंग लगवाने से मगर क्या आप जानते हो कि होली का मतलब क्या होता है , रंगों का मतलब क्या है फिर थोडा रुक कर बोली- रंग का अर्थ है एक रंग में रंग जाना, समान हो जाना, बाहरी और भीतरी भेद का मिट जाना, क्या आपको लगता है आप अपने मन का हर मैल धो कर हाथ में सच्चाई का रंग ले कर आये हो। आपने आज तक मेरे साथ पिछले सारे दिनों जैसा व्यव्हार किया क्या उस रंग से मुझे रंग कर अपने अभिमान की संतुष्टि कर सकेंगे। मुझे भी पता है प्रेम करना या प्रेम हो जाना गलत नही यह तो ईश्वरीय गुण है मगर प्रेम में ना छल का स्थान है ना बल का, मगर आशक्ति को प्रेम कहना आपका निरा भ्रम है। मै अब आप पर छोडती हूँ कि आपको किसे रंग लगाने की आवश्कता है, मेरे तन को या अपने मन को।
जानती हो मेरी बातें सुन कर पहले तो कुछ क्षण वह मूर्तिवत खडा रहा फिर वो चुपचाप मेरे पैरों के पास सारा रंग रख कर चुपचाप चला गया। मै जानती हूँ अब वो सिर्फ अपने मन की सच के रंग मे रंग रहा है। अब उसे किसी की जरूरत नही। वो अब सच में गिरधारी है। अब उसे किसी रीमा पर आश्क्ति नही होगी।  

बुधवार, 13 नवंबर 2019

आखिरी खत



सुनो, सुन तो रहे हो ना
मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है
छोड दो ना थोडी देर देर के लिये
ये लैपटाप, ये मोबाइल, ये कागज
याद भी है तुम्हे
कब से तुम्हारे पास तो हूँ
मगर साथ बिल्कुल भी नही
कभी मेरा चेहरा देखकर
होती थी तुम्हारी सुबहें
अब रात भर, मै नही
साथ होती हैं, तुम्हारी फाइलें
मगर आज कुछ पल के लिये ही सही
बन जाओ मेरे सिर्फ मेरे
हाँ हाँ जानती हूँ
बहुत व्यस्त हो तुम
एक एक मिनट है
बहुत कीमती
जैसे कभी हुआ करता था
कीमती एक एक पल मिलन का
कैसे बचाते थे एक एक घडी
और चाहते थे अधिक से अधिक
मेरे साथ होना, मेरे पास होना
दूरियों में भी होते थे
हम बहुत नजदीक
सुन लेते थे एक दूसरे की धडकनें
तुम्हे याद है वो पल
मिले थे जब तुम हमसे
क्या याद है तम्हे
अपना पहला संवाद
क्या याद वो पहली धडकन
दिया था जिसने बेचैनी को सुकं
क्या याद है वो पीपल
जिसकी छनती धूप में
हमारी परछाइयां
हो गयी थीं एक
याद कर सको तो याद करके देखो
वो सारे लम्हे, वो सारी बातें
यकीं है मुझे आज भी
गुदगुदा देंगें ये तुम्हारा मन
खिल जायेगी फिर से वो हसी
जिसे तुमने रख दिया है कही तहा कर
फिर से चाहेगा मन जीना
जिसे कहते है सचमुच में जीना
क्या हुआ जो खडे हैं हम तुम
ढलती शाम के साथ
क्या हुआ जो दे रहीं हैं दस्तक
झुर्रियां चहरों पर
रहने दो ना उन्हे
सीमित तन तक
मन तो है ना
आयु के बन्धन से मुक्त
तुमने ही तो सुनाया था मुझे
कालेज के विदाई समारोह में
न उम्र की सीमा हो
ना जन्म का हो बन्धन…….
पूंछोगे नही
आखिर का हुआ है आज 
जो पलटना चाह रही हूँ
अतीत के स्वर्णिम पन्ने
क्या मैं भूल रही हूँ अपनी उम्र
नही बिल्कुल भी नही
मगर चाह्ती हूँ कि 
तुम्हे याद दिला दूँ
हर वो पल जो भूल गये हो तुम 
अपने जाने से पहले
कही ऐसा न हो 
जब चाहो तुम यह सब याद करना
और तुम्हे कुछ याद ही न आयें
                                            --------- तुम्हारी प्रेमिका, तुम्हारी पत्नी 

शनिवार, 9 नवंबर 2019

बात हाथों की




हाथ ने बढाया हाथ
हाथ आया हाथ में
शर्म से फिर झूठ-मूठ
हाथ खींचा हाथ ने

चाहता हूँ रहे सदा, 
ये हाथ तेरे हाथ में
कही ये बात हाथ से
चुपके से तब हाथ ने 

हाथ की ये हाँ थी या
हाथ की थी ये अदा
हाथ की कुछ गर्मियां 
रख दी उसने हाथ में

हौसले हाथ के कुछ 
और थोडा बढ चले
दबा के फिर हाथ को
गुस्ताखी करी हाथ ने

कह सकी न धडकने
हाथ की, कुछ हाथ से
हाथ में ले एक दिल 
दिल एक रखा हाथ ने

कही बात दिल की कुछ
इस तरह से हाथ नें
और समझे लोग ये
मिलाया हाथ, हाथ ने

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

खास हो गया..... something special happened......

उसके सुर्ख होंठों ने
छुआ जो मेरे नाम को
आम से ये नाम भी
आज खास हो गया

हम वही हैं आज भी
वही लकीरें हाथ में
हाथ आया हाथ में 
नसीब खास हो गया

दिन वही है उग रहा
शाम वो ही ढ्ल रही
डूबे तेरी चाँदनी में
चाँद खास हो गया

वही जमीं वही शहर
वही कदम वही डगर
साथ जब से वो चला
सफर ये खास हो गया

तलाश खत्म हो गयी
ख्यालों का नगर बसा
जुदा हुआ मै भीड से
शख्स खास हो गया

नजर को मेरी तू मिला
असर हुआ है कुछ नया
चमन हुये हो तुम मेरे
भ्रमर मै खास हो गया

शनिवार, 28 सितंबर 2019

क्या होगा


ठहरे हुये पानी में
वो आग लगा देते हैं
बहती हुयी लहरों का
अंजाम भला क्या होगा

झुकती हुयी नजरों से
वो कयामत बुला लेते है
ऊठती हुयी निगाहो का
अंदाज भला क्या होगा

उलझी हुयी जुल्फो से
वो सुबह को शाम करते है
भीगे हुए गेसुओं से
मौसम भला क्या होगा

हल्की सी एक झलक से
वो तारों को रौशन करते हैं
अंजुमन में उनके आने से
चांद का भला क्या होगा

आहट होती है आने की
और बहारें पानी भरती है
ठहरेंगें जब वो गुलशन में
कयामत का भला क्या होगा

शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

अच्छी नही



निगाहों को पढने दो
निगाहों की गुफ्तगू
दखलंदाजी जुबान की
हर जगह अच्छी नही

घुलने दो इश्क को
सांसों में इश्क की
बेताबियां हुस्न की
हर जगह अच्छी नही

सुनने दो खामोशी को
खामोशियों की कही
गुस्ताखियां निगाह की
हर जगह अच्छी नही

मचलने दो इशारो को
इशारों की गिरफ्त में
निगेबानियां तहजीब की
हर जगह अच्छी नही

बहने दो ख्यालों को
ख्यालों के समन्दर में
सांकलें रिवायत की
हर जगह अच्छी नही

पडने दो इश्क पर
रौशनी जरा हुस्न की
मौजूदगी चिरागों की
हर जगह अच्छी नही

रुकने दो लम्हों को
रूह के आगोश में
पाबंदियां वक्त की
हर जगह अच्छी नही

तुलने दो अहसासों को 
चाहत के पैमाने में 
नजदीकियां मिजाज की
हर जगह अच्छी नही

कुछ कहो न तुम हमें
चुप रहे हम भी जरा
इश्क पर छींटाकशी
किसी तरह अच्छी नही

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

मै ही, हाँ सिर्फ मै ही हूँ-जिम्मेदार


सोचती हूँ, अब मान ही लूँ
कि मै ही, हाँ सिर्फ मै ही हूँ
जिम्मेदार
मेरे आस पास
घटती हर उन दुर्घटनाओं का
जिनको भले ही कोई उगाये
खरपतवार मै ही हूँ
सच ही तो हैं

आखिर कहाँ है दोषी
वो नजरें
जो किसी एक्स-रे मशीन से कमतर नही
मशीन का तो काम ही है – काम
मुझे खुद ही ओढनी चाहिये
सिर से पांव तक
अभेद्य लौह ओढनी

कहाँ है दोषी
वो अधिकारी
जिसकी पर्सनल असिसटेंट
बनने का नियुक्ति पत्र मैने स्वीकार किया 
पर्सनल का अर्थ समझे बिना
खोजने चाहिये थे मुझे 
पर्सनल के पर्यायवाची

कहाँ है दोषी
वो प्रोफेसर
जिसे मैने ही बनाया था
अपना गाइड
कब कितना कैसे  
किया जायगा गाइड
ये पढना चाहिये था मुझे
यूनिवर्सिटी के अलिखित ऑर्डिनेन्स

कहाँ है दोषी
वो डॉक्टर
जिसे स्पेस्लिस्ट समझ गई थी
अपनी बीमारियों का इलाज लेने
मालूम करने चाहिये थे मुझे
उसके स्पेसलाइजेसन्स

कहाँ है दोषी
वो सारे सम्बन्धी
जो मिल गये मुझे जन्म के साथ
गढने को नित नये सम्बन्ध
सोचना चाहिये था मुझे
आने से पहले इस दुनिया में

तो लेनी ही चाहिये मुझे जिम्मेदारी
क्योकि
दोषी है- माँ
जिसने जन्म दिया
दोषी है- सपने
जिसने पहचान खोजी
दोषी है – आंकाक्षायें
जिसने कुछ करना चाहा
दोषी हैं- वस्त्र
जो अभेद्य नही
दोषी है - समझ
जो नही सीखी चुप रहना 

करती हूँ
आज प्रत्यार्पण और
मांगती हूँ समाज से
संपूर्ण  स्त्री समाज के लिये
उसके दोषो की सजा
मॄत्यु दंड
ताकि गलती से भी
कही किसी तथाकथित 
मासूम निर्दोष पुरुष को
न बना दिया जाय
दोषी

सोमवार, 29 जुलाई 2019

नही करते



माना कि है एक बरसात, आंखों में तेरी
मगर हर किसी आंगन बरसा नही करते

सुना है बाजार में उतरी है, चीजें कई नई
मगर हर किसी को जरूरी कहा नही करते

आयेगें कई तुमसे कुछ सुनने की आस में
मगर हर कही हाले दिल, बयां नही करते

उसने दे तो दिये कांधे तुझे सहारे के लिये
मगर हर इक ठौर पलाश ठहरा नही करते

मिलेंगें बहुत तुमसे, अजीज रहनुमा बनकर
मगर हर किसी को तबज्जो दिया नही करते

माना तेरी मेजबानी का, सारा जमाना कायल
मगर हर शख्स से हमप्याला हुआ नही करते

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

ख्यालों में



वक्त काफी गुजरता है उनके ख्यालों में
कोई साथ रहने लगा, शहर-ए-ख्यालों में
रातें करवटें औ ख्वाब बदल रहे आजकल
वो जवाब बन आने लगा, मेरे सवालों में
जिक्र करना भी है, औ छुपाना भी सबसे
बेसबब नही तेरा आना, मेरी मिसालों में
चंद रोज की हैं मुलाकातें, उनकी अपनी
महसूस हुआ, जो होता नही है सालों में
रखते तो हैं ऐहतियात, इश्क पर्तो में रहे
उन्हे सोचा और आ गया दिल बवालों में
बैचैनियां तडपती है और सुकून मिलता है
कुछ अलग सा है ये हाल, गुजरे हालों मे
वो घडी कोई नही, कि हम नशे में न हो
अजब कशिश है उन निगाहों के प्यालों में
वक्त काफी गुजरता है उनके ख्यालों में
कोई साथ रहने लगा है शहर-ए-ख्यालों में

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

क्या छोडूं और क्या बांधू

नवजीवन का आगमन, कई प्रश्न भी लेकर आया है
कुछ दुविधा में मन मेरा, क्या छोडूं और क्या बांधू

क्या छोडूं उस चिडियां को, जो फुदकती आंगन में
या छोडूं अल्लहडपन को, जो बरसता था सावन में
क्या कुछ काम के ये होंगे, या कर्कट साबित होगे
या बरसों बक्सों मे बन्द, बस आभासी साथी होंगें
नवखुशियों का आगमन, जटिल पहेली भी लाया है
कुछ दुविधा में मन मेरा, क्या छोडूं और क्या बांधू

किन यादों को धरती के, आंचल में दबा कर तज दूँ
किन स्मॄतियों को हदय के, पन्नों में अंकित कर लूँ
क्या विरक्त हो जायेंगी, या नवप्रभा भोर की देखेंगी
क्या मेरी बचपन गाथा में, अनुरक्ति किसी की होगी
नवप्रभात का आगमन, कुछ संशय भी संग लाया है
कुछ दुविधा में मन मेरा, क्या छोडूं और क्या बांधू
  
मुक्त करूं कुछ बंधुजनों को, या भावों को ढीला कर दूँ
या नयनों में भर नाते, क्या दायित्वों पर ताला चढ दूँ
मन विमुक्ति हो जायेगा, या चिरकाल ऋणी रह जायेगा
भावनाओंं के भंवर का भला, क्या समाधान हो पायेगा
नवबंधन का आगमन, कृतध्नता का भार भी लाया है
कुछ दुविधा में मन मेरा, क्या छोडूं और क्या बांधू
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