प्रशंसक

बुधवार, 25 अगस्त 2010

माँ

सब कुछ पाया है जिससे, 
उसको भला क्या दे हम । 
जिसका मै हूँ अंश अभिन्न ,
कैसे करू उसका अभिनन्दन ॥ 
जिसका सब कुछ मै  जो मेरा अस्तित्व ,
वो धडकन मेरी   मै जिसकी काया ।
जननी है जो ,  वो मेरी पूजा । 
है वो माँ मेरी , मै उसकी छाया  ॥
ये पुण्य ही तो है मेरे , 
जो मै उसके आँगन आई । 
गोद मै तेरे बड़ी हुई , 
जीवन की खुशियाँ पाई ॥ 
ईश्वर से बस इतना चाहूँ, 
सदा आपका साथ रहे । 
मिले खुशी या गम के पल हो, 
सिर पर तेरा हाथ रहे ॥
आप हमारा जीवन हैं , 
हम है सांसे आपकी ॥
आधारशिला हो आप हमारी , 
हम है इमारत आपकी ॥ 

शनिवार, 21 अगस्त 2010

फितरत

इंसा की फितरत तो देखो
जो मिलता है कम लगता है
इक ख्वाइश पूरी होती है
दूजी को रोने लगता है

कल तक जो मेरे साथी से
वो आज हमारे दुश्मन है
एक हाथ से हाथ मिलाते है
पर  रक्खे दूजे में खंजर है

शब्द शहद से मधुर हैं लेकिन
भावों में  स्वार्थ का राग छिपा है
इंसा की फितरत देख देख कर
गिरगिट भी शर्मसार हुआ  है


सब कुछ पाने की हसरत में
हम हर पल कितना कुछ खोते हैं
लाख को करोड बनाने के लिये
 मूलधन भी हम खो देते है

गुरुवार, 19 अगस्त 2010

राखी

उम्र में छोटे होकर भी
तुम सदा ही मेरी ढाल बने
जब जब बिखरा साहस मेरा
तुम मेरा विश्वास बने

कितनी अदभुद राखी थी वो
जब तुम्हे गोद में थामे थी
बडी लगन से बडे जतन से
वो पहली राखी बाँधी थी

मुझे याद है वो दिन अब भी
जब मेरी उँगली पकड तुम चलते थे
मेरी पेंसिल और किताबों को
तुम अपने खिलोने समझते थे

इक उस दिन ही पापा जी से
तुम पैसे माँग के लाते थे
बडे गर्व से जेब में रखकर
पाटे पर पलथी जमाते थे

कब हम तुम इतने बडे हुये
कब समय के हाथो मजबूर हुये
इक आँगन की छाँव से कब
हम तुम इतने दूर हुये

पर खुश हो जाती हूँ देख के मै
जब तुम परदेश से आते हो
पूरे बरस अपने हाथों में भाई
तुम भेजी हुयी राखी सजाते हो

माना आज नही मुंकिन की
आकर सजाऊँ मै तेरी कलाई
पर ना समझना भेज के राखी
बस जग की है मैने रीत निभाई

राखी के कच्चे धागों में
पिरो दिया है अपना प्यार
देती हूँ आशीष तुम्हे ये
खुशियाँ खेले तेरे द्वार
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