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शनिवार, 23 जून 2018

हिंदी प्रेम




खाना खाने के बाद, बच्चे टी वी देखने में मस्त हो गये और पत्नी जी किचन का काम समेटने लगी। अवस्थी जी मोबाइल ले कर बाहर लॉन में निकल आये। अवस्थी जी चार साल पहले ही बैंक में प्रोबेशनरी ऑफीसर के पद पर नियुक्त हुये थे। और करीब एक साल पहले आपका ट्रांसफर दिल्ली की लाजपत नगर ब्रांच में हुआ है । अवस्थी जी यूं ही फेसबुक चेक कर रहे थे तभी मिश्रा जी का कॉल आया, सामान्य शिष्टाचार के बाद बोले- सर जी, इधर काफी दिन हुये, हम लोगो ने कोई हिन्दी गोष्ठी या सम्मेलन नही कराया, मै क्या सोच रहा था कि अपने पास तो काफी फंड भी बच रहा है और मार्च तो इंड पर ही है, अगर आप कहे तो कोई कार्यक्रम करा ले?
अवस्थी जी थोडा मुस्कुराये और बोले- क्या मिश्रा जी, आपने इस बात के लिये हमे फोन किया, हमे तो लगा कुछ इंट्रेसटिंग बात आप कहेंगे। आप भी न, कहां कहां से ढूंढ लाते हो ऐसे फालतू के विचार, कुछ और सोचियेगा, और फिर थोडा अधिकारियों वाला रोब चेहरे और आवाज में लाते हुये बोले-मिश्रा जी फंड खर्च की चिंता आपका विषय नही।
बेचारे मिश्रा जी ने तो सोचा था सर खुश हो जायेंगे, मगर यहां तो बात पूरी उल्टी ही पड़ गयी। धीमी सी आवाज में अपने आपको बचाते हुये बोला- वो तो सर मुझे लगा आपको हिंदी से विशेष लगाव है तो बस इसीलिये बोल दिया। मिश्रा जी की बात को लगभग अनसुना सा करते हुये अवस्थी जी बोले-  क्या मिश्रा जी– इतने पुराने होकर भी नही समझे, अरे मेरे हिंदी प्रेम को केवल हिंदी दिवस तक ही रहने दीजिये, और ठहाका मारते हुये हंस कर फोन काट दिया।
फोन पकड़े बेचारे मिश्रा जी ने सोचने लगे, पिछले वर्ष हिंदी दिवस पर हिंदी के प्रति उनका लगाव तो देखते ही बनता था, अपने भाषण में उन्होने कहा भी तो था, “मिश्रा जी, जो कि हमारे हिंदी विभाग के संचालक है उनसे मैं व्यक्तिगत तौर पर अनुरोध करता हूं कि वो हिंदी भाषा को प्रोन्नत करने के ऐसे कार्यक्रम ना केवल हिंदी दिवस अपितु समय समय पर आयोजित करते रहा करें”।
लगभग साठ की दहलीज को पार करने वाले मिश्रा जी को सच में आभास हो रहा था कि हिंदी और उनकी स्थिति में कुछ ज्यादा अंतर नही। और फिर वो कैसे भूल गये कि अवस्थी सर इंडिया के सपूत है ना कि भारत माता के।  

बुधवार, 20 जून 2018

करती हूँ आह्वाहन मै



करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से
देखो जरा निकलकर दुनिया, फेसबुक की दीवारों से

बूढ़ी माँ लाचार पिता, हर पल राह तुम्हारी तकते हैं
धन दौलत की चमक नही, तेरे चेहरे को तरसते है
थोडा उनके साथ रहो, निकल दिखावे के बाजारों से
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

कीमत नही चुका पाओगे, धरती मां के आंचल का
बस बातों से हरा न होगा, बंजर सीना जंगल का
पैसा छोड कुछ पुण्य कमाओ, पेडं लगा वीरानों में
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

काम बहुत है करने को, जो वाकई उन्नत देश करे
राजनीति की उठा पटक में, अपनो से तू क्लेश करे
वक्त अभी है दूर हो जाओ, मक्कारों और गद्दारों से
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

सोचो क्या थे पूर्वज अपने, और कहाँ हम पहुंचे हैं
कुंये बाग लगाते थे वो, हम बिसलेरी पानी पीते हैं
कितनी नस्लें और जियेंगीं, तापमान कें अंगारों में
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

देखो जरा निकलकर दुनिया, फेसबुक की दीवारों से
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

मंगलवार, 19 जून 2018

प्यार मोहब्बत बदल गया




जाने कब कैसे बदले
अपने, रिश्तेदारों में
प्यार मोहब्बत बदल गया
देखो कैसे व्यवहारों में

छोटी छोटी बातों पर
जिनसे कल तक लडते थे
मार पीट झगडे करके भी
संग घूमते खाते खेलते थे
जीवन चक्र कुछ यूं घूमा
हम आ बैठे नातेदारों में
प्यार मोहब्बत बदल गया
देखो कैसे व्यवहारों में

झूठ मूठ के घर बनाकर
घर घर खेला करते थे
एक गुल्ल्क में डाल के पैसे
दिनभर खनकाया करते थे
पैसा ऐसा बीच में आया
अपने हुये बकायेदारों में
प्यार मोहब्बत बदल गया
देखो कैसे व्यवहारों में

छोटा भैया, चांद से प्यारा
सबसे अच्छा लगता था
पल भर में हर फरमाइश में
पूरी करने का जी करता था
बेटे जैसा वो भैया खोया
नये रिश्तों की दीवारों में
प्यार मोहब्बत बदल गया
देखो कैसे व्यवहारों में

छूट गया घर आंगन मेरा
दो पल में एक विदाई से
उठती नही टीस मिलने की
बरसों बरस की जुदाई से
नही चाहिये कुछ अब जो
बदले, रिश्ते हिस्सेदारों में 

प्यार मोहब्बत बदल गया
देखो कैसे व्यवहारों में

गुरुवार, 7 जून 2018

अंतिम विदा



सोचा न था कभी मैने
होगा कष्टकारी इतना
उनसे अंतिम विदा लेना
उनसे दूर चले जाना

अब जब जाने की वेला में
बस दो क्षण ही शेष रहे
जीवन के कुछ स्वर्णिम पल
इन आंखों में तैर रहे

गुस्से में अक्सर कह देता था
अब साथ नही रहना मुझको
हे ईश्वर मुझ पर दया करो
अब अपने पास बुला भी लो

उधर द्वार पर यमदूत मुझे
ले जाने को आतुर दिखते
इधर शोकाकुल पत्नी के 
नैनों से निर्झर नीर बहे

है याद मुझे वो दिन आता
जब बिछडे थे हम भगदड में
और बच्चे सी रो वो बोली थी
न छोडना कभी अब जीवन में

हे ईश्वर तुम ही मदद करो
न साथ मेरा, उसका तोडो
हम जन्मों जन्मों के साथी है
यूं विरह में न, उसको छोडो

अंतिम इच्छा समझ मेरी
अंतिम मुझ पर उपकार करो
मै आधा हूं, आधी वो है
दोनो पर अपना हाथ धरो
दोनो पर अपना हाथ धरो

बुधवार, 6 जून 2018

अजनबी हूं




पल दो पल के लिये आया हूं, तेरे शहर में यारों
कुछ ऐसा बोकर जाऊंगा, तुम्हे याद बहुत आऊंगा

कई चेरहे कुछ फीके, कुछ उदास नजर आते है
मुस्कुरा सके दो पल, ऐसी बात दे कर जाऊंगा

माना अजनबी हूं अभी, मगर यकीं है मुझको
जाते हुये रोकोगे, ऐसे जज्बात सी कर जाऊंगा

तेरे दिल के कई जख्म, मुझे मेरे जैसे ही लगे
कुछ सुकूं में आये तू, ऐसी सौगात देकर जाऊंगा

सिलसिले मोहब्बत के, बने न बने कोई गम नही
आरजू मिलने की हो, वो मुलाकात देकर जाऊंगा

यूं तो हक नही मुझे, तुमपर कोई हक जताने का
मुझे मजहब में न टांकना, ये फरियाद करके जाऊंगा
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