सुबह उठने के साथ
करने लगती हूं तैयारी
घर छोडने की
हाथ मुंह धुलते धुलते
वही उतार कर रख देते हूं
मन की थकन
जो नही मिटी सो कर भी
बैग पैक करते करते
पैक कर देती हूं
रात बीती सारी बातें
तकिये के नीचे धीरे से
धर देते हूं सारी चिन्तायें ये कह कर
शाम को फिर मिलूंगी तुमसे
तब तक तुम थोडा आराम कर लो
रसोई में टिफिन लगाते चाय बनाते
नोट करती जाती हूं
डिब्बे कनस्तरों की डिमांड
ऊपर की रैक में रखा
चाय की पत्ती का डिब्बा कहता है
याद है न शाम को मेरे लिये कुछ लाना है
वरना शाम को मुझसे न कहना
सर दर्द हो रहा है
तभी बगल में बैठा
चीनी का डिब्बा भी बोल पडता है
मै भी हूं, मुझे भी मत भूलना
सबकी बाते नोट करते करते
तैयार होकर दरवाजे से निकलते पैर
रूक जाते है
दिल कहता है
एक बार और देख तो लूं
अपने जिगर के टुकडे को
जो रो धोकर चुका है
आया की गोद में है
और टकटकी लगाये कह रहा है मुझसे
क्यो जाती हो मां रोज यूं मुझे छोडकर
कुछ भी तो नही चाहिये मुझे
तुम्हारे दूध और गोद से सिवा
और मै उसकी बेबसी और अपनी मजबूरी को
वही दरवाजे पर रख चल देती हूं
उसकी और अपनी जरूरतें पूरी करने
की पेट ममता नही समझता
और मां के साथ पिता की भूमिका भी निभानी है
अपनी लाडले केलिए
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संस्कृत श्लोक का अर्थ - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-05-2018) को "वृक्ष लगाओ मित्र" (चर्चा अंक-2993) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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पर्यावरण दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
कोमल मार्मिक अभिव्यक्ति सत्य कहा दिल को कितना मजबूत करना पड़ता है
जवाब देंहटाएंWell penned
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