पल दो पल के लिये आया
हूं, तेरे शहर में यारों
कुछ ऐसा बोकर जाऊंगा,
तुम्हे याद बहुत आऊंगा
कई चेरहे कुछ फीके,
कुछ उदास नजर आते है
मुस्कुरा सके दो पल, ऐसी बात दे कर जाऊंगा
माना अजनबी हूं अभी,
मगर यकीं है मुझको
जाते हुये रोकोगे, ऐसे
जज्बात सी कर जाऊंगा
तेरे दिल के कई जख्म,
मुझे मेरे जैसे ही लगे
कुछ सुकूं में आये
तू, ऐसी सौगात देकर जाऊंगा
सिलसिले मोहब्बत के,
बने न बने कोई गम नही
आरजू मिलने की हो,
वो मुलाकात देकर जाऊंगा
यूं तो हक नही मुझे, तुमपर कोई हक जताने का
मुझे मजहब में न टांकना, ये फरियाद करके जाऊंगा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.06.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2994 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
Waaah, bahut khoob!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन उपग्रह भास्कर एक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंआशा और विश्वास से भरी सुंदर पंक्तियाँ...
जवाब देंहटाएंवाह लोक हित के उच्च भावों से सजी सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंBahotkhub
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