अल्बर्ट स्मिथ,
अमेरिका की एक जानी मानी यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर थे। एक बार अपनी
क्लास में वह सत्य, ज्ञान और धर्म पर अपना व्याख्यान दे रहे थे। अचानक उन्हे रोकते हुये
उनके एक विघार्थी ने कहा- सर आप जो भी कह रहे हैं उसमें भाव नही आ रहा, ऐसा लग रहा
है जैसे आप सिर्फ किताबी ज्ञान दे रहे हैं। आपने कभी इसे अनुभव नही किया। कभी आप जापान
के सन्त चितोस को सुनियेगा, उनकी बातों में भाव होता है, उनकी हर बात सच लगती है।
अल्बर्ट बहुत
ही समझदार और धैर्य वाले व्यक्ति थे, उन्होने विधार्थी की बातों पर विचार किया,
और कालेज की छुट्टियों में जापान जाकर चितोस से मिलने का निश्चय किया।
चितोस एक
ऊंची पहाडी पर एकान्त में रहते थे। लोगों से उनका पता पूछते पूछते एवं दुर्गम रास्तों
से होते अल्बर्ट अन्ततः चितोस की कुटिया तक आ पहुंचे। उन्होने चितोस को आवाज लगाई।
दरवाजे पर एक दुर्बल व्यक्ति आया जिसका रंग कुछ काला और चेहरा चेचक के दागों
से भरा था, कुल मिलाकर कहा जाय तो वह व्यक्ति पूर्णतः आकर्षणहीन था। अल्बर्ट ने कहा- मुझे चितोस
से मिलना है, दरवाजे पर आये व्यक्ति ने विनम्रता से कहा- मेरा नाम ही चितोस है,
कहिये मै आपके लिये क्या कर सकता हूँ। यह सुनकर अल्बर्ट को आने का पूरा उश्देश्य ही
विफल लगने लगा, वह सोचने लगा क्यो यहाँ आकर समय खराब किया, भला यह बदसूरत सा दिखने वाला, कमजोर सा व्यक्ति मुझे क्या बतायेगा।
फिर भी यह सोचकर की कि आ गया हूँ तो पूंछ ही लेता हूँ, अल्बर्ट ने कहा- मै अमेरिका
की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र का प्रोफेसर हूँ, मेरे एक विघार्थी ने कहा
कि आप जानते है कि सत्य ईश्वर और धर्म क्या है। मुझे जल्दी से बता दो और मै जाऊँ, अभी
बहुत दूर वापस जाना है।
चितोस ने
कहा- बताता हूँ, पहले आप अन्दर तो आइये, आप बहुत थके हुये से लग रहे है, आइये एक कप
चाय पीजिये।
अल्बर्ट ने
कहा- नही मै ठीक हूँ, आप बस बता दीजिये, मुझे वापस भी जाना है। मगर पुनः चितोस के आग्रह पर अल्बर्ट अन्दर
चले गये, वो अनुभव करने लगे कि वाकई वो थके हैं और एक कप चाय की उन्हे बेहद जरूरत थी।
तभी चितोस
चाय की केतली और कप लेकर आ गये। उन्होने अल्बर्ट को कप प्लेट पकडाई और कप में चाय डालने
लगे। जब अल्बर्ट ने देखा कि चाय, कप में पूरी तरह भर चुकी है और प्लेट से बस निकलने ही वाली है तो कुछ नाराजगी से बोले- ये क्या, आप देख नही रहे कि कप भर गया है इसमें और चाय
नही आ सकती।
चितोस ने
कहा- आपने सही कहा, क्या आपने यहाँ आने से पूर्व ध्यान दिया कि आप खाली नही हैं।
अल्बर्ट भी
एक समझदार व्यक्ति थे, वे चितोस की बात का अर्थ समझ गये कि जब हम किसी के पास कुछ सीखने
जाय तो मन मे ग्रहण करने का भाव भी होना चाहिये। अल्बर्ट उठ खडे हुये और माफी माँगते
हुये बोले- मै जाता हूँ और जब खाली हो जाऊंगा तब आपके पास अपने उत्तर के लिये वापस
आऊंगा। चितोस ने उन्हे प्रेमपूर्वक रोका और कहा- मित्र मेरा विश्वास कीजिये आप जब खाली हो जायेंगे,
तब आपको मेरे पास आने की आवश्यकता भी नही रहेगी।
वाह...
जवाब देंहटाएंअद्भुत ज्ञान..
अंतिम पंक्तियों मे सार है..
किसी को भी संतोष नहीं है
सब असंतुष्ट हैं...
सादर
सीखने योग्य, प्रेरक प्रसंग।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक प्रसंग।
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