उस समय लोग
बुद्ध को भगवान समझने लगे थे, लोग उनकी बातों को सुनते और उनके कहे अनुसार आचरण करते
थे। एक गाँव में एक लकडहारा बुद्ध से ईर्ष्या रखता था, सभी से उनकी बुराई करता, और
कहता सब उनकी पूजा करते हैं इसलिये वो शान्त रहते हैं मै जब चाँहू उनसे लडाई कर सकता
हूँ उनको क्रोध दिला सकता हूँ।
एक दिन वह
खुद को सत्य सिद्ध करने के उद्देश्य से वहाँ गया जहाँ बुद्ध रहते थे। वहाँ उसने देखा
कि भगवान बुद्ध तपस्या में लीन हैं। कुछ देर तक तो वह उनकी आंखे खुलने का इन्तजार करता
रहा, फिर जब उससे रहा नही गया तो वह बुद्ध के निकट गया और उनके चेहरे पर थूक दिया और
फिर कुछ दूर खडा हो गया। वह सोच रहा था कि जरूर मेरे ऐसा करने से वह आंख खोलेंगे और
गुस्सा करेगें तब मै उनसे लडाई करूंगा और सारे गाँव वालो को शोर से बुला कर दिखाऊंगा
कि बुद्ध को भी क्रोध आता है।
कुछ देर इन्तजार
करने के बाद जब बुद्ध ने आंख खोली और अपने अंगवस्त्र से थूक साफ करते हुये बोले- तुम्हे
और कुछ कहना है। लकडहारा बडे आश्चर्य में पड गया क्योकि वह ऐसे व्यवहार की कल्पना भी
नही कर सकता था। फिर भी लडाई करने के उद्देश्य से गुस्सा करते हुये बोला- मैने आप पर
थूका है, आपको गुस्सा नही आ रहा। और आप कह रहे हो और कुछ कहना है।
बुद्ध बोले-
हाँ, मैं पूँछ रहा हूँ, तुम कुछ और भी कहना चाहते हो क्या?
लकडहारा कुछ
समझ नही पाया कि अब उसको क्या कहन चाहिये, बिना कुछ और कहे वहाँ से चला गया। गाँव आ
कर उसने जब लोगो को यह बताया कि आज उसने बुद्ध पर थूका है तो लोगो ने उसे समझाया कि
यह उसने बहुत गलत किया है, वो बहुत महान हैं, अब भगवान उसे इसकी सजा देंगें, और भी
कई प्रकार से लोगो ने उसको डराया। लोगों की बातें सुनकर वह बहुत डर गया और सारी बारात
वह यही सोचता रहा कि सच में उससे कुछ गलत हो गया है, मुझे जाकर माफी मांग लेनी चाहिये,
वरना भगवान उसे सजा देंगें।
अगली सुबह
वह बहुत जल्दी उठा और बुद्ध के पास गया। बुद्ध तपस्या में लीन थे। वह खडे होकर उनकी
प्रतीक्षा करने लगा। जब बहुत देर हो गयी और बुद्ध ने आँख नही खोली तो वह बुद्ध के पैरों
में जा कर गिर गया, उसे अपनी गलती का अहसास था, उसकी आंखों से आँसू निकल पडे। आसुओं
के आभास से बुद्ध ने नेत्र खोल दिये और बोले- तुम्हे और कुछ कहना है।
लकडहारा फिर
कुछ नही समझ पाया, बोला - आपने कल भी यही कहा था, आज भी यही कह रहे हैं, मैने तो कल
भी कुछ नही कहा था, आप पर थूक कर चला गया था, आज भी कुछ नही कहा, बस आपके चरणों में
आकर गिर गया। मगर आपने मुझसे कुछ कहा ही नही।
बुद्ध बोले-
कल तुम्हे जो भाषा आती थी तुमने उस भाषा में मुझसे बात की थी, और आज भी ऐसा ही किया।
तुम मुझसे कुछ्ह कहना चाहते थे, मगर मुझे तो तुमसे कुछ भी नही कहना था।
मै तुम्हारे
अनुसार अपना आचरण तय नही कर सकता कि जब तुम चाहो मेरे हदय में तुम्हारे लिये घॄणा हो,
जब तुम चाहो मै तुम पर करुणा करूं।
अपने आचरण
का निश्चय मैं स्वयं करूंगा, कोई अन्य नही।
सच, हम अक्सर
अपने जीवन में प्रतिक्रिया करते हैं, जो जैसा हमसे चाहता है वैसा हम करते हैं। उसमें
हमारा निर्णय नही होता। हमारा अपना निर्णय जब होता है तब प्रतिउत्तर होना चाहिये न
कि प्रतिक्रिया।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-08-2017) को "'धान खेत में लहराते" " (चर्चा अंक 2694) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही कहा....
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको !