सलिल
और अनीता की शादी को करीब आठ साल हो चुके थे किन्तु आंगन आज तक सूना था, कोई ऐसा डॉक्टर
नही बचा था जिन्हे दिखाया न गया हो, कोई ऐसा मन्दिर नही था जहाँ मन्नत न मांगी गयी
हो। जब सभी आशाओं ने दम तोड दिया तब दम्पति ने एक बच्चा गोद देने का निश्चय किया। आज
इसी उद्देश्य से दोनो "अपना घर" अनाथाश्रम में आये थे। इस अनाथाश्रम में करीब पचास साठ
बच्चे थे, अनाथाश्रम की संचालिका इरा ने उन्हे बच्चों से मिलवाया, दोनो कुछ
समय बच्चों के साथ समय बिता यह कह कर वापस आ गये कि आपको दो चार दिनों में बताते
है कि हम किस बच्चे को गोद लेंगें।
करीब
एक हफ्ते बाद वह बच्चा लेने के लिये वापस अपना घर आये। उन्होने एक बच्चा जो करीब चार
साल का था उसको लेने का निश्चय किया था। उन्होने संचालिका इरा से कहा- हम लोग करीब
एक हफ्ते पहले आये थे, बच्चे देखकर गये थे, हम दोनो ने काफी सोचा और फिर रोहित को ले
जाने का निश्चय किया है, आप हमे बच्चा लेने का प्रासेस बता दीजिये।
इरा
ने कहा- माफ कीजिये हम आपको रोहित क्या अपने किसी भी बच्चे को नही दे सकते। सलिल और
अनीता ये सुनकर हैरान थे, अनीता ने कहा- नही दे सकते, हम आपका मतलब नही समझे, पिछले
हफ्ते तो आपने कुछ नही कहा था, आखिर क्यों नही दे सकती।
इरा
ने कहा- मै उन लोगों को बच्चा नही देती जो बच्चे को देखकर या सोच समझकर ले जाते है,
मेरे बच्चे कोई वस्तु नही। मै ऐसे किसी भी माता पिता को अपना बच्चा नही सौंपती। शायद
आपने हमारे बारे में सुना नही है, यहाँ जब कोई माता पिता बच्चा लेने आते है तो
हम सारे बच्चों के नाम की परचियों में से एक परची चुनने को उन्हे कहते हैं, हमारे यहाँ बच्चों का चुनाव करने का प्रावधान नही है, अनीता जी, ममता का न रूप होता है न रंग, न उम्र होती है न धर्म। फिर थोडा रुक कर इरा जी ने अनीता को प्रश्नात्मक निगाह से देखते हुये कहा - ममता और जरूरत के अन्तर को तो आप भी समझती होंगी। मेरे बच्चे किसी की जरूरत को पूरा करने
के लिये नही, हाँ ममता के आकांक्षी जरूर हैं, और हम अपने बच्चों को सही हाथों में सौपने के प्रति बेहद सावधान रहते हैं। मेरे अनाथाश्रम का नाम यूं ही अपना घर
नही, वास्तव में ये मेरे बच्चों का अपना घर है।
इरा जी को सुनकर सलिल
और अनीता को अपनी भूल का अहसास हो चुका था। इरा जी से माफी मांगते हुये अनीता ने विनम्र
स्वर में कहा- हम अपनी सोच पर शर्मिन्दा है, आपने आज जो सिखाया है, वो हमे आजीवन
याद रहेगा, मै बस आप्आसे विनती कराती हूँ अपनी बगिया का एक फूल हमें सौंप दीजिये, हम आपको विश्वास दिलाते हैं आपके फूल को आपसा ही प्यार देंगे। प्लीज हमे माफ कर दीजिये,
कहकर अनीता ने इरा जी के सामने अपना आंचल फैला दिया, इरा जी भी एक अनुभवी सेवानिवॄत्त प्राध्यापिका थी,
व्यक्ति को परखने में उनसे चूक होने का प्रश्न
ही नही था। उन्होने अनीता को गले लगा लिया और मुस्कुराते हुये बोली- आओ चुन लो एक परची और पूरा करो बच्चा गोद लेने का प्रॉसेस।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-11-2018) को ."एक फुट के मजनूमियाँ” (चर्चा अंक-3161) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'