आज इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि वह पॉलीथीन का रोज प्रयोग नहीं करता (मैं भी करती हूँ)। आज इस पॉलीथीन ने हमारी जिन्दगी में अपनी अहम जगह बना ली है । यह जानते हुए भी कि यह हानिकारक है, हम बडी सहजता से इसका प्रयोग करते हैं ।
प्राकृतिक विपदायें हमारी किसी एक या दो दिन की भूल का परिणाम नहीं होती, बरसों बरस तक प्रकृति चुप चाप सब सहन करती है , और फिर एक दिन हमें उत्तर देती है , एक ऐसा उत्तर जिसे हम ही नहीं हमारी आने वाली पीढियां भी भुगतती हैं ।
यूँ तो बुरी आदतों को हमें एक ही दिन मे त्याग देना चाहिये , मगर फिर भी यह हर किसी के लिये इतना आसान नहीं होता ।जरा सोच कर देखिये कि क्या वाकई में हम पॉलीथीन के बिना एक दिन भी अपनी जिन्दगी सामान्य रूप से नहीं जी सकते । आप में से बहुत लोग कहेंगे – हाँ , हम आप की बात से सहमत भी हैं , आज बेहद मुश्किल है ऐसा करना , लेकिन क्या यह भी नामुंकिन है कि हम रोज पॉलीथीन के एक प्रयोग से स्वयं को रोके ।
हम यदि रोज एक प्रयोग को भी रोकते हैं ,और अपने बच्चों , मित्रों को , पडोसियों को भी ऐसा करने को कहे तो हम दिन मे कम से कम पॉलीथीन के १० प्रयोग तो रोक ही सकते हैं (आप पर निर्भर करता है,कितना आप रोक सकते हैं) , मतलब महीने में ३०० पालीथिन का कम प्रयोग ।आप सोचेगे इससे क्या होगा , माना मेरे अकेले से, कुछ नही होगा , लेकिन यदि आप साथ दें तो यह ३०० से ३००० या ६००० भी हो सकती है या और ज्यादा भी ….
पाठक और लेखक के बीच एक मधुर रिश्ता होता है , और उसी रिश्ते के अधिकार से आज हम आप सभी से यह वादा चाहते हैं कि “आप रोज एक पॉलीथीन को ना कहेगें ”। कैसे करेगें यह मैं आप पर छोडती हूँ पर उम्मीद करती हूँ कि आप इसे पूरी ईमानदारी से निभायेगें ।इस छोटी सी आवाज को बुलन्द करने में आप सभी के सहयोग की अपेक्षा है । और मेरे इस यज्ञ में आपकी आहुति की जरूरत भी ।
आज मुझे इस ब्लाग पर टिप्पणी नहीं , वादा चाहिये ।
विचार के विस्तार और अमल में हम सभी की भलाई निहित है ।
प्रकृति हमारा जीवन है
इसका नाश हमारी मृत्यु
आओ बने हम मित्र इसके
धरती का शत्रु हमारा शत्रु
प्रकति हमारा जीवन है
जवाब देंहटाएंइसका नाश हमारी मृत्यु
आओ बने हम मित्र इसके
धरती का शत्रु हमारा शत्रु
बस इतना समझ ले मानव तो बात ही क्या है…………जब तक पोलिथिन बननी बंद नही होंगी इनका प्रयोग भी चलता रहेगा।
आपकी बात में बहुत दम है, नित एक पॉलीथिन को न कहें हम।
जवाब देंहटाएंप्रकृति प्रेम और आहवान को नमन!!
जवाब देंहटाएंप्रकति हमारा जीवन है
इसका नाश हमारी मृत्यु
आओ बने हम मित्र इसके
धरती का शत्रु हमारा शत्रु
सभी झोला लेकर जांय सब्जी खरीदने। अगर भूले से कोई पॉलिथीन आ जाय तो उसे दुकानदार को लौटा दें। मैं तो ऐसा ही करने का प्रयास करता हूँ।...काम की पोस्ट।
जवाब देंहटाएंbahut sach............sayad ham aisa kar payen..!
जवाब देंहटाएंप्रकति हमारा जीवन है
जवाब देंहटाएंइसका नाश हमारी मृत्यु
आओ बने हम मित्र इसके
धरती का शत्रु हमारा शत्रु
आपका लेख और उक्त पंक्तियाँ पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आपका प्रेम दर्शाती है. वाह
agreed what you said on.
वादा रहा ।
जवाब देंहटाएंटिप्पणीपुराण और विवाह व्यवहार में- भाव, अभाव व प्रभाव की समानता.
Prasansneey evam anukarneey.
जवाब देंहटाएं---------
पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हैं..पर इस बीमारी का एक ही इलाज़ है कि इनका बनाना ही बंद किया जाए.
जवाब देंहटाएंइस हद तक तो बन्द नहीं कर सका हूं, लेकिन प्रयास यही करता हूं कि पालीथिन न लूं..
जवाब देंहटाएंi promise u di... i will try...
जवाब देंहटाएंपर्यावरण को मनुष्य के धरती पर रहने लायक रखना है तो ऐसे यज्ञ में आहुति देनी ही होगी .हम तैयार है ..
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट लेकिन हम नहीं सुधरंगे .... चलिए कोशिश कर लेते है
जवाब देंहटाएंमानव ने प्रकृति का अंधाधुंध प्रयोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया है ..लेकिन उसने इसके विपरीत प्रभावों के बारे में कभी नहीं सोचा ...अब जब हम विनाश के कगार पर पहुँच चुके हैं तो हमें इस दिशा में गंभीरता से सोचना चाहिए ..ताकि आने वाली पीढियां शांति से जीवन जी सकें ...आपका आभार अपर्णा जी ..इस सार्थक विषय पर पोस्ट लिखने के लिए ..!
जवाब देंहटाएंसुंदर आव्हान ...साथ हैं आपके...
जवाब देंहटाएंजी ....
जवाब देंहटाएंटिप्पणी नहीं...
वादा करता हूँ
प्रयास रहेगा कि यह अभियान सफल हो
dkmuflis.blogspot.com
जवाब देंहटाएंवन्दना जी
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी
सुज्ञ जी
देवेन्द्र जी
जाकिर अली साहब
सुशील जी
दानिश जी
सुषमा (तुम्हे मै जी नही कहूँगी)
मोनिका जी
आशीष भैया
केवल जी
कैलाश जी
कुशमेश सर
आप सभी का इस यज्ञ मे आहुति डाल कर मेरा प्रसास सफल बनाने में सहयोग करने के लिये धन्यवाद।
आपकी बात मान ली......
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा लेख लिखा है अपर्णा ! वायदा नहीं मगर कोशिश अवश्य करूंगा कि अपर्णा की इस लेख को सम्मान दे सकूं ! शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंहम वादा करते हैं।
जवाब देंहटाएंI have abandoned using it for last 5 years .
जवाब देंहटाएंअपर्णा जी,
जवाब देंहटाएंमैंने अपने पिछले ४ साल हिमाचल प्रदेश में बिताये हैं जहाँ पौलिथिन पूरी तरह से तो नहीं लेकिन ९० % बंद ही है.....
बड़ा अच्छा लगता था वहां, वैसे मैं जब भी मार्केट जाता हूँ तो अपने साथ एक थैला ज़रूर रखता हूँ ताकि पौलिथिन की ज्यादा जरूरत न पड़े, और छोटे सामानों के लिए तो मैं वैसे भी नहीं लेता....
आपका ये प्रयास अच्छा लगा...
मैंने तो न जाने कब से ही इस पर पालन करना शुरू कर दिया है....
निस्संदेह कुछ समिधाएँ मेरी भी ! सुन्दर पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रयास है... मैं तो हमेशा ही कोशिश करता हूँ कि पोलिथीन का प्रयोग ना करूँ... आगे से और भी ज्यादा कोशिश करूँगा...
जवाब देंहटाएंवादा रहा
जवाब देंहटाएंहम नहीं सुधरंगे
जवाब देंहटाएंmai aapki baat ka hamesha khyal rakhunga.......sartak post ke liye badhai
जवाब देंहटाएंaapne bahut accha aalekh likha hai .. ek acchi shuruwaat hi ek disha deti hai .
जवाब देंहटाएं-------------------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
प्रकृति हमारा जीवन है
जवाब देंहटाएंइसका नाश हमारी मृत्यु
आओ बने हम मित्र इसके धरती का शत्रु हमारा शत्रु
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सुन्दर सन्देश देती बढ़िया पोस्ट!
होली की शुभकांमनाएँ!
logon ko jagruk karti sunder post.....
जवाब देंहटाएंmaine ye pran le hi rakha hai ki jaha tak munasib hoga mai is haanikarak vastu ka upyog nahi karungi aur na hi karne dungi...
जवाब देंहटाएंpost bahut hi badhiya hai... jaagruk hai...
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