तन्हा तन्हा सी रहती है तन्हाई मेरी
रात भर जागती रहती है तन्हाई मेरी
खुद में हंसती है कभी, कभी रो लेती है
ख्वाब कुछ बुनती, रहती है तन्हाई मेरी
दो कदम उजालों में कभी, कभी सायों में
शामों सहर सफर में, रहती है तन्हाई मेरी
सुर्खी अख्बार की, कभी खामोश गजल
कहानी किस्सों में, रहती है तन्हाई मेरी
रूठ जाती कभी, कभी मचल भी जाती है
आजकाल नाराज सी, रहती है तन्हाई मेरी
लोग मिलते है कभी, कभी बिछड जाते हैं
साथ हर पल चलती, रहती है तन्हाई मेरी
अच्छी रचना शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'