क्यों
नही मिटता मुझसे अन्तर तेरे होने और ना होने का
जबकि
आज तू पास होकर भी पास नही है
जानती
हूँ कल तू दूर जा कर भी दूर नही होगा
आज जो पीडा है मन में कल निश्चित ही नही होगी
क्यों
नही मिटता मुझसे उम्मीदों का पन्ना
रोज
नयी सुबह के साथ लिखती हूँ चंद पल
वो
पल जब तू पास भी हो और साथ भी
फिर
शाम ठलते ठलते काली स्याही से मिट जाती है लिखावट
क्यों
नही मिटती ये जलन जो सुलगा रही है मेरे एकमात्र मन को
क्या
कोई सागर नही जो तृप्त कर सके मुझे
या
फिर ये प्यास इतनी बढ जाय कि प्यासे रहने का अहसास ना हो
या
मिल जाय मुझे हुनर औरों की बेबसी बाँट कर प्यास बुझाने का
क्यों
नही मिटती तृष्णा तेरे साथ अपना वजूद जोडने की
दिखता
है मुझे कि मै ना तो उसका साया हूँ ना परछाई
मै
उसके लिये सिर्फ धूप हूँ, कडी धूप, चेहरा झुलसाती धूप
जो
तलाश रही है एक ऐसी शाख जो उसके तन को छाँव दे
क्यो
मिटता जा रहा है मुझसे मेरी खुशियों घरौंदा
क्यो
नही बना पा रही खुद को एक मजबूत दीवार
क्यों
नही नयी ऊर्जा से बना लेती नया आकाश
क्यों
नही उड जाती ले कर नयी आशाओं के पंख
आज सोचती हूँ क्यो थी मै ऐसी
क्यों नही पहचान सकी थी अपनी आग
आज मुझे मेरे होने पर मान भी है और थोडा सा अभिमान भी
आज मिटा कर रख दी हर वो चीज जो मुझे मिटाती थी
जला दी है वो आग जो हर घडी मुझे जलाती थी
मिल गयी है मुझे एक नयी रश्मि नयी सुबह के साथ
और तय करनी है मुझे मेरी मंजिल रात से पहले
Very energetic line and nice composition......
जवाब देंहटाएं"मिल गयी है मुझे एक नयी रश्मि नयी सुबह के साथ
और तय करनी है मुझे मेरी मंजिल रात से पहले"
आपकी लिखी रचना बुधवार 30 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आशा और उम्मीद लिए ... भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंआज मिटा कर रख दी हर वो चीज जो मुझे मिटाती थी
जवाब देंहटाएंजला दी है वो आग जो हर घडी मुझे जलाती थी
मिल गयी है मुझे एक नयी रश्मि नयी सुबह के साथ
और तय करनी है मुझे मेरी मंजिल रात से पहले
.. नयी सुबह जरूर होती हैं ... बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले'
.,...बहुत सुन्दर..
Bahut achchi lagi....ye prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव और यथार्थ दर्शाती पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंक्यों नही मिटती ये जलन जो सुलगा रही है मेरे एकमात्र मन को
जवाब देंहटाएंक्या कोई सागर नही जो तृप्त कर सके मुझे
या फिर ये प्यास इतनी बढ जाय कि प्यासे रहने का अहसास ना हो
या मिल जाय मुझे हुनर औरों की बेबसी बाँट कर प्यास बुझाने का
क्यों नही मिटती तृष्णा तेरे साथ अपना वजूद जोडने की
दिखता है मुझे कि मै ना तो उसका साया हूँ ना परछाई
मै उसके लिये सिर्फ धूप हूँ, कडी धूप, चेहरा झुलसाती धूप
जो तलाश रही है एक ऐसी शाख जो उसके तन को छाँव दे
सुन्दर भाव