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शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021

टेक केयर

क्या हुआ पिता जी, आवाज से तो आपकी तबियत बहुत खराब लग रही है, अरे ! एक कॉल कर देते आप, मै या यामिनी जाते माना कि रोज रोज ऑफिस बहुत दूर पडने की वजह से मैने यहां फ्लैट लिया, मगर अब इतना भी दूर नही कि एक ही शहर में रहते हुये भी ना सकूं। मैं कई दिन से आपको फोन करने की सोच रहा था, मगर काम कुछ इतना गया कि ......

पिता जी - हां , बेटा मै समझता हूं।

राजीवआपने किसी डॉक्टर को दिखाया क्या?

पिता जी- हां, कल गया था, वो अपने डॉक्टर मुखर्जी को दिखाया है, कह रहे थे, कुछ खास नही है, बस थोडी सी खांसी जुकाम है, ठीक हो जायगा। तू चिंता मत कर। 

राजीव - अच्छा तो अब मै आपकी चिंता भी ना करूं। कल फ्राईडे है, हम लोग शाम को जायेंगें।

शर्मा जी, मां नही पिता थे, इसलिये उन्होने एक पिता के जैसे ही अपने बेटे बहू का इंतजार किया। फाईडे की रात तक ना बेटा आया ना   बेटे का कोई फोन।

शनिवार की सुबह करीब १० बजे, यामिनी का फोन आया- प्रणाम पापा, वो दरअसल कल ये ऑफिस से बहुत देर से आये थे, तो कल हम लोग नहीं निकल पाये, बस अभी थोडी देर पहले निकले हैं, अगर ज्यादा ट्रैफिक नही मिला तो ढेड दो घंटे में जायेंगें। और आपने अपनी दवाइयां ली।

शर्मा जी- हां, हां बहू सब ले ली, चिंता मत करो, आराम से आना।

राजीव और यामिनी कुछ शॉपिंग करते हुये करीब तीन बजे घर पहुंचे, शर्मा जी खाना खा कर एक नींद ले चुके थे।

घर आकर, राजीव पिता जी का हाल चाल लेने लगा, और यामिनी रसोई में चाय बनाने लगी।

राजीव और शर्मा जी कुछ पुराने किस्से याद करने लगे और यामिनी ने रात का खाना तैयार करके रख दिया।

तभी यामिनी ने राजीव को इशारे से किचन की तरफ बुलाया- और कितनी देर रुकेंगें, मैने खाना बना दिया है, अभी निकलेंगें तो भी पहुंचते पहुंचते दस हो ही जायगा।

यामिनी ने अपनी समझ में यह बात बहुत धीरे से कही थी, या बुढापे में शर्मा जी की कर्ण क्षमता बढ गई थी, उन्होने अपने बेटेबहू के इस संक्षिप्त वार्तालाप को ना चाहते हुये भी सुन लिया था।

राजीव थोडी देर में कमरे में लौट आया, और मेज पर रखे अखबार को पढने लगा या पढने का उपक्रम यह तो या तो वो बता सकता था या विधाता, मगर शर्मा जी को उसका एक एक पल रहना भी एक अहसान का प्रतीत हो रहा था।

कुछ क्षणों तक एक अजीब सा सन्नाटा कमरे में पसरा रहा, इतना सन्नाटा तो शर्मा जी तब भी महसूस नहीं करते थे जब वो इतने बडे घर में अपनी यादों से साथ रहते थे।खामोशी को तोडते हुये शर्मा जी ही बोले- तुम लोग आज यही रह रहे हो क्या?

राजीव कुछ हडबडाते हुये बोला- ऐसा कुछ सोच कर तो नहीं चले थे, मगर आपको जरूरत हो तो रुक ही जायेंगें।

शर्मा जी – अरे नही बेटा, मुझे ऐसी कोई जरूरत नहीं, तुम भी तो हफ्ते भर के थके हो, मै तो कहता हूं घर जाकर आराम करो। मै एक दम ठीक हूं।

तभी यामिनी रसोई की तरफ से आकर सोफे पर बैठते हुये बोली- पापा मैने आपके लिये खाना बना दिया है, आप खा लीजियेगा। फिर राजीव की तरफ देखते हुये बोली- पापा जी ठीक ही तो कह रहे है, चलते है ना, और फिर दूर ही कितना है, फिर जायेंगे अगले हफ्ते।

पांचदस मिनट में औपचारिकता निभाते हुये दोनो गाडी में बैठ गये और चलते हुये राजीव ने कहा - पापा प्लीज  टेक केयर , आप ना बिल्कुल भी अपना ख्याल नहीं रखते। अगली बार जब आऊं तो आपकी ये खांसी गायब मिलनी चाहिये।   

शर्मा जी गेट बंद कर वापस कमरे में आकर लेट गये। और सोचने लगे काश राजीव की मां ने मुझे कभी बताया होता कि कैसे रखते है अपना ख्याल, वो तो सारी जिंदगी मेरा ही ख्याल रखते रखते निकल ली, अब तो बस मैं वो कर लेता हूं जिससे उसकी आत्मा को ये ना लगे कि वो अब मेरे पास मेरा ख्याल रखने को नही है। 

लेटे लेटे आंखें बंद किये, धीरे धीरे मन ही मन अपनी पत्नी से बुदबुदाते हुये बोले - राजीव की मां, अच्छा किया ना जो तेरे बेटे को यह नही बताया कि मुझे टीबी हो गया है, क्या पता तब वह फोन से ही कह देता- पापा टेक केयर, और मन की पीडा, आंखो की कोर से रास्ता बना निकल ही गयी मगर बडी तीव्रता से शर्मा जी ने उन आंसुओं को बीच रास्ते में ही रोक दिया। पता नहीं स्वर्ग में बैठी अपनी पत्नी से यह आंसूं छुपाने मे शर्मा जी कितना सफल हुये मगर बेटे बहू के सामने आज भी बरगद के पेड से मजबूत बने रहने में जरूर सफल हुये थे। 

तभी पत्नी की आवाज उनके कानों को सुनाई दी - अच्छा चलो, अब खाना खा लेते हैं, दवा भी खानी है, ऐसे लेटे लेटे सो जाओगे, चलो उठो।

शर्मा जी ने आंख खोली और अपनी पत्नी की तस्वीर को प्रेम भरी निगाह से देख रसोई की तरफ धीरे धीरे चल दिये - अपना ख्याल रखने...........

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर,सच और अत्यन्त मार्मिक ।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-10-21) को "दो सितारे देश के"(चर्चा अंक-4206) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा


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  3. बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी !
    पढ़ते पढ़ते आंखों में आंसू आ गयें!

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    1. ब्लॉग पर आगमन एवं सराहना के लिये हार्दिक आभार।

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