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रविवार, 31 दिसंबर 2023

प्रेम और जीवन

 


जब रातों में चुपके से सिरहाने आकर

महबूब ना फेरे बालों में उगलियां

जब प्रियतम ना पढ सकें वो आंखें,

जिनमें बसा हुआ है वह स्वयं

जब ना महसूस हो उसके दूर जाने की

दिल को घडी घडी टीस

जब कहने के लिये, मन की बात

खुद से ही कई कई बार करनी पडे बात

जब तुम्हारे होने के मायने

खत्म हो जाये उसके लिये,

जिसे माना हो तुमने सबकुछ

समझ लेना उस रोज

मर चुका है प्रेम

और प्रेम कभी अकेले नहीं मरता

मरता है उसके साथ

आत्मबल

आत्मविश्वास

मर जाती है चाहत

मर जाते हैं सपने

हां जो जीता है वो होता है

यह मिट्टी का शरीर

वो शरीर जो बस मैदान हैं

जिसमें खेल रहीं हैं सांसें

खेल – बस आने जाने का

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 3 जनवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

    जवाब देंहटाएं

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