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शनिवार, 5 मई 2012

इक ख्वाब खुली आँख का.......


आँखों में बसता है मेरे

आसमां का इक छोटा सा टुकडा

जिसमें देखती हूँ मै

खुद को उडते हुये

उस स्वच्छंद आकाश में

खुद को विचरते हुये

चंचल आतुर मन में

कुछ अनसुलझे सपनें लिये

ढूँढती हूँ बादलों के पार

अपनी आशाओं की इमारत

और तलाशती हूँ उसके

हर कोने में अपनी पहचान

तभी एक अनदिखा चेहरा

उरक सा जाता है बादलों के बीच

और फैला के बाहें, मौन निमन्त्रण दे

करता है कोशिश बांधने की

असमंजस में पड कभी उसकी ओर

कभी उससे दूर मै कदम बढाती

कभी मन मचलता है इस नये

अन्जाने बन्धन में बंधने को

कभी तडपता, विचलित हो जाता

दूर गगन से परे उड जाने को

मगर जितना भी उडती हूँ

आकाश विस्तृत होता ही जाता

और ठहरती जहाँ भी मुझे

खडा नजर वो ही आता

20 टिप्‍पणियां:

  1. आकाश विस्तृत होता ही जाता
    अक्स आँखों में हो आकाश विस्तृत हो ही जाता है

    जवाब देंहटाएं
  2. आज 06/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. अहर्निश तुम्हारा आकाश विस्तृत होता रहे . खुली आँखों से देखे सपने ही पुरे होते है, अति सुन्दर

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  4. भूल सुधार ---
    कल 07/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. bhaut khubsurat khwaab hai khuli aakho ka... behtreen andaaz di....

    जवाब देंहटाएं
  6. मगर जितना भी उडती हूँ

    आकाश विस्तृत होता ही जाता.....

    आकाश के विस्तार के साथ साथ उड़ाने की इच्छा भी तीव्र होती जाएगी ...अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  8. अपने आप कों मुक्त करदेना ही अच्छा है ... किसी भी बंधन में बांध के रुकना है ... जीवन के विस्तार कों पाना ही जीवन है ...

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  9. उड़ने के लिए पंखों की जरूरत नहीं होती
    उड़ान तो हौंसलों से बुलंद होती है |
    तो उस विस्तार कि कोई तो सीमा जरुर होगी तो अपनी गति को बनाये रखो ऐसे हो उड़ान कि तमन्ना दिल में बनाये रखो |
    सुन्दर सार्थक रचना |

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  10. कभी मन मचलता है इस नये
    अन्जाने बन्धन में बंधने को
    कभी तडपता, विचलित हो जाता
    दूर गगन से परे उड जाने को
    मगर जितना भी उडती हूँ
    आकाश विस्तृत होता ही जाता

    बहुत सुंदर.....
    आशा....
    एक सोच...!

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  11. मगर जितना भी उडती हूँ
    आकाश विस्तृत होता ही जाता
    और ठहरती जहाँ भी मुझे
    खडा नजर वो ही आता.

    अति सुन्दर. .अच्छी प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  12. सुंदर भाव संयोजन से सुसजित खूबसूरत रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  13. .कभी मन मचलता है इस नये

    अन्जाने बन्धन में बंधने को...मार्मिक........,आपकी हर कविता मैं सरलता, सत्यता होती है, एसी कवितायें पवित्र मन वाले ही लिख पाते हैं, बधाई हो इतनी सुन्दर रचना के लिये

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