तुम
भी कमाल करती हो सुधा, एक हफ्ते से तुम अस्पताल मे हो और मुझको बताना जरूरी भी नही
समझा , वो तो आज जब छुट्टियों के बाद मैं कालेज गया तब शिशिर ने मुझे बताया कि तुम
बीमार हो । मुझसे अगर कोई गलती हुयी तो बता देती, आखिर किस बात की तुमने मुझे ये सजा
दी कहते कहते महिम का गला रूँध सा गया, आँखे
छलक सी गयी । महिम तुमने कोई गलती नही की, प्लीज ऐसा क्यो सोचते हो , और फिर अगर मै
अगर खुद को सभांल पाने की स्थिति में ना होती तो तुमको बुलाती ही,आखिर तुम्हारे सिवा
और किसे बुलाती । तो तुमको लगता है कि इतने दिनों से तुम यूँ ही यहाँ एड्मिट हो , और
मै बेकार ही तुम्हारी फिक्र कर रहा हूँ , और कहते कहते महिम कुछ नाराज सा हो गया, तो
धीरे से सुधा ने महिम का हाथ थामते हुये कहा- महिम सच कहना क्या आधी रात अगर मै तुमसे
कहती कि मै बीमार हूँ तो क्या वाकई तुम अपनी पत्नी को छोड कर मेरे पास आ पाते........... कहते कहते उसने आँखे बन्द कर ली मगर उसके हाथ की पकड इतनी मजबूत हो गयी थी जैसे कोई बच्ची अपनी नयी गुडिया को
समेट कर सो जाती है , और महिम बस अपनी गुडिया को अपलक देखता रहा, क्योकि कहने के लिये
शायद उसके पास भी कुछ नही था, और शायद सुधा को भी किसी उत्तर का इन्त्जार नही था, या
शायद कुछ प्रश्नो के जवाब हो कर भी नही होते.............
मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंkya kahne
जवाब देंहटाएंकुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं होते..मन समझे यदि समझ सके..
जवाब देंहटाएंअनौतरित प्रश्न। मार्मिक।
जवाब देंहटाएंओह ...मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंsach me... kuch prashano ke utar nhi hote.....
जवाब देंहटाएंमार्मिक ... सच में ऐसे प्रश्नों के जवाब नहीं होते ...
जवाब देंहटाएंपर ऐसे प्रश्न न उठें क्या ऐसा नहीं होना चाहिए ..,