वो चूल्हे की आग में
तपते हुये निखरता तेरा रूप
क्या मुकाबला कर सकेगी
कोई विश्व सुन्दरी इसका
वो आँचल में बार बार
लगना हल्दी, तेल, मसाले
बना देता है मामूली
सी साडी में भी तुम्हे अप्सरा
तेरी मदमाती आँखों से लिपटता
हल्का हल्का धुँआ
बना देता है और भी मदमस्त तेरे श्याम नयनों को
जब जब तेरे अधरों का
स्पर्श पाती है टूटी फुकनी
मन देने लगता है उडान
अपनी अधूरी कल्पना को
परोस कर लाती हो पसीने
से लथपत चेहरा लिये थाली
तेरी साधारण सी छवि
में भी दिखता अलौकिक देवत्व
अपनी थकान को छुपाकर
मुझे झलती हो जब झलना
पूजने लगता हूँ मन ही मन तेरा अनुपम व्यक्तित्व
जब जब देखता हूँ तुम्हे इक
पहेली सी लगती हो तुम
तेरे एक कोमल से तन
में बसे है ना जाने कितने रूप
बन जाती हो कभी तो
तुम ममता की शीतल छाया
कभी तेजस्विनी ऐसी
की फीकी पड जाती प्रचंड धूप
बहुत ही मर्मस्पर्शी लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंसादर
नारी का यही रूप सबको लुभाता है ...सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर सा विश्व है नारी का..
जवाब देंहटाएंबहन नारी के असली सुन्दरता की प्रस्तुति की आपने | हमारे भारतीय संस्कृति में उसकी सुन्दरता की जो वास्तविक व्याख्या है वो आपकी रचना में दिखाई देती है | बहुत सुंदर |
जवाब देंहटाएंनारी का यह रूप अनुपम है . इसके सौंदर्य की कोई उपमा नहीं !
जवाब देंहटाएंकितना प्यारा लिखा है आपने..उसपर चित्र तो कमाल का है..तिस पर कविता के भाव.....दिल के अंदर छू गए
जवाब देंहटाएंsundar....wah
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंपरोस कर लाती हो पसीने से लथपत चेहरा लिये थाली
जवाब देंहटाएंतेरी साधारण सी छवि में भी दिखता अलौकिक देवत्व
अपनी थकान को छुपाकर मुझे झलती हो जब झलना
पूजने लगता हूँ मन ही मन तेरा अनुपम व्यक्तित्व ..
सच लिखा है .. नारी के अनेकों रूप में ये रूप आलोकिक होता है ... अन्नपूर्णा होता है ... लाजवाब ...