अच्छे कॉलेज में एडमीशन लेना जितना मुश्किल है उससे भी कही ज्यादा
मुश्किल होता है वहाँ पर सर्वाइव करना, एक एक नम्बर पाने के लिये दिन रात एक करने पढते
है। जब एडमीशन की तैयारी के लिये कोचिंग कर रही थी, तब एक दिन माँ ने कहा था- बेटा
बस एक बार मेहनत कर ले, एक बार अच्छे से कॉलेज में दाखिला मिल गया फिर तो बस कोई टेंशन
नही। पता नही मै माँ की बात सही से समझ नही पायी थी या माँ को इन कॉलेजों में पढने
के लिये की जाने वाली मेहनत का सही अंदाजा नही था, य वो मेरा हौसला बनाये रखने के लिये
समझाती थी, मगर आज तो यही लग रहा था कि सेलेक्शन तो एक्साम में अच्छी पोजीसन लाने से
कही आसान था।
यही सब सोच कर एक भी मिनट कही बर्बाद नही करती थी, क्लास के बाद
सीधा लाइब्रेरी जाकर पढाई करती थी, क्योकि जो मेरी रूम मेट थी उसके पास तो पढाई के
अलावा सारे काम थे, कई बार सोचती कि मुझे पढाई की कुछ ज्यादा टेंशन होती है या उसको
कुछ कम।
आज क्लास में न्यूमेरिकल एनालिसिस पढाई गयी थी, तो सोचा आज उसके
ही कुछ सवाल लगा लूँ, कुछ प्राब्लम हुआ तो कल ही सर से पूंछ लूंगी।
कैलकुलेशन करते करते एक सवाल में फस गयी। दो तीन बार लगा कर देखा,
मगर नही हुआ। तभी मेरे सामने सीट पर बैठे एक लडके ने कहा- क्या हुआ, नही आ रहा, कहो
तो मै बता दूँ।
अचानक से एक लडके का ऐसा कहना कुछ अटपटा सा लगा, और मन में ये भी
आया कि लगता है बच्चू अपना इम्प्रेशन दिखाना चाह रहे हैं। मैने कहा नही- मै कर लूंगी।
उसने कहा- इट्स ओके।
कह कर वो अपनी पढाई करने लगा। और मै सोचने लगी कि वाकई क्या ये पढाई
कर रहा है या अब भी मुझे देख रहा है।
मगर अब पढाई पर फोकस नही कर पायी। सोची हॉस्टल चलती हूँ, फिर सोचा
अगर अभी उठी तो कही ये साहब भी न चल दे मेरे साथ साथ, सो उसके जाने का इन्तजार करती
रही। किसी तरह अपने को दूसरे सवाल में व्यस्त किया।
अचानक से ऐसा लगा जैसे सामने वाली सीट खाली हो चुकी है, मेरा सवाल
भी हो चुका था सो मै हॉस्टल चली आयी।
अगले दिन जब लाइब्रेरी में मै ऑपरेटिंग सिस्टम पढ रही थी, वही कल
वाला लडका आया और बोला – हाय, आज न्यूमैरिकल एनालिसिस नही।
मैने सरसरी तौर से नजर ऊपर उठायी और बोला नही और वापस पढने लगी।
उसने सामने वाली सीट खींची और बैठ गया। थोडी देर बाद शान्ती टूटी, अपनी किताब बन्द
करते हुये वो बोला- और कल वाला सवाल हो गया। मन ही मन एक अजीब सा गुस्सा आ रहा था,
आखिर क्यों ये मेरे पीछे पड रहा है, मगर लाइब्रेरी में किसी तरह का कोई सीन क्रियेट
नही करना चाहती थी, सो बोल दिया – नही अभी नही हुआ।
उसने थोडा मुस्करा कर कहा- ऐसे कल वाला ऑफर आज भी वैलिड है- कहो
तो बता दूँ।
मै सोची इसको चुप करने का एक ही तरीका है सवाल दे ही दूँ, चुपचाप
करता रहेगा।
मैने कॉपी निकाली और दे दी- लीजिये सॉल्व कर दीजिये।
वो सवाल लगाने लगा और मै वापस से पढने लगी।
मन ही मन सोच रही थी, मिस्टर सवाल न लगा पाये न, तब बताऊंगी।
मगर थोडी देर बाद उसने कहा- लीजिये सॉल्व कर दिया है, देख लीजियेगा।
कह कर वो चला गया।
मैने कॉपी देखी, उसने बिना किसी कटिंग के सवाल एक बार में ही कर
दिया था, और लास्ट में एक नोट लिखा था- नॉलेज हमे जिस किसी से भी मिले ले लेनी चाहिये, चाहे
वो परिचित हो या अनजाना। संकोच पढाई का सबसे बडा दुश्मन है।
मैने अपनी किताब बैग में रखी और उठ कर लाएब्रेरी से बाहर आयी मन में था कि पक्का बाहर मिल जायेगा, मगर वो मुझे कही नही दिखा।
तब से कॉलेज छोडते समय तक हमेशा आते जाते एक नजर उसे ही ढूंढती रही,
हर दिन लाइब्रेरी में बैठते समय नजर सामने वाली सीट पर चली जाती, हमेशा सोचती कि काश एक
बार वो मिल जाता तो उसे थैंक्स बोल पाती जिसने मुझे जिन्दगी का सबसे बडा सबक दिया।
बहुत खूब ,मंगलकामनाएं आपकी कलम को !
जवाब देंहटाएंजीवन को दिशा देती प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
निमंत्रण :
जवाब देंहटाएंविशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे ही एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।