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शुक्रवार, 7 जून 2019

ऊष्मा


आज एक बार फिर लिखने बैठा हूं। एक समय था जब लिखे बिना तो नींद ही नही आती थी। प्यार भी कितनी अजीब  चीज है। किसी को शायर बना देता है किसी को काफिर और एक मै था, मेरे जैसे ठीक ठाक कवि के हाथ से ऐसे कलम छूटी कि आज करीब तीस साल बाद उसे छू रहा हूं।  यूं ही एक दिन मैं एक गजल लिखने की कोशिश कर रहा था, और मुझे दिखा ही नही कि वसू कबसे आ कर बैठी है, वो आई भी और चली भी गयी। अगले दिन जब मै उससे कालेज में मिला तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था।और मै समझ नही पा रहा था कि वो किस बात पर अपनी नाराजगी दिखा रही थी, क्योकि मेरे हिसाब से मै कल उसका इंतजार करता रहा था, और वो आई नही थी। करीब एक हफ्ते तक उसकी नाराजगी खत्म न हुयी। मुझे लगा शायद किसी बात के कारन ही वो उस दिन मिलने भी नही आई, मुझे अपनी भूलने की आदत मालूम थी। इसलिये मै उससे किसी बहस में न उलझता था। अंत में बहुत मिन्नते करने के बाद उसने कहा- तुम या तो मुझे चुन लो या अपनी कलम को, फिर रो पडी और बोली अपने लिखने में तुम मुझे देखना तक भूल गये। ये भूल गये कि तुम मेरा इंतजार कर रहे थे तो फिर कैसे यकीन कर लू कि शादी के बाद अपनी जिम्मेदारियां याद रखोगे।छोटी सी मेरी गलती को उसने बहुत संजीदगी से लिया था, मै जाता था ये उसके प्रेम का ही रूप था। मैने उसे अपनी कलम देते हुये कहा- वसू आज से मेरे हाथों को सिर्फ तुम्हारे हाथ की जरूरत है। इन तीस सालों में कितनी ही बार वसू ने मुझे लिखने को कहा, किसी नाराजगी  के कारण नही मगर  मेरा कभी मन ही न किया, लिखने का। मुझे जिन्दगी भर इस बात पर अफसोस होता रहा कि जो गजल मै उसे खुश करने के लिये लिख रहा था वो उसके आसुओं की वजह बनी थी। मैने अपने अंदर के कवि को मारा नही था, बल्कि वो खुद ब खुद मेरे पास से चला गया था, जैसे तपती रेत में पानी गायब हो जाता है, वसू के प्रेम की ऊष्मा मे मुझे यह याद भी न रहा कि मेरा और कलम का कोई संबंध भी था।
मगर अपनी जिंदगी के आखिरी पल तक शायद बसू को भी ये बात सालती रही कि उसकी नाराजगी ने मेरी अंदर के कवि को दफन कर दिया, तभी उसने इस दुनिया से जाने से पहले मेरे हाथ मे वही कलम देते हुये कहा- नीरज मै जानती हूं तुम मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करते हो, मगर अब मेरे हाथो मे तुम्हारा हाथ थामने की सामर्थ्य नही बची। वादा करो मेरे बाद अपने हाथो मे इस कलम को मेरी जगह दोगे।
मै चाह्ती हूं तुम वो गजल पूरी करो जो तीस साल पहले अधूरी रह गयी थी। समय रहा तो इसी जहां में नही तो उस जहां से तुमको पढूंगी।
आज कहने को तो हाथ मे कलम है मगर हाथ अभी भी वसू की ऊष्मा महसूस कर रहा है।

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