तो ज्ञान बाहर आ रहा है
एफ बी, ट्वीटर पर
विद्वानों का कुम्भ छा रहा है
बरसों से बंद सद्विचार
बाहर निकाले जा रहे हैं
एक प्रतियोगिता सी चल रही है
स्वयं को कर्मनिष्ठ देशभक्त बताने की
मगर कल
जैसे ही ये बाहर निकलेंगें
जैसे ही ये बाहर निकलेंगें
ज्ञान घर के किसी कोने में
दबा कुचला पड़ा होगा
आज जो लोग पोस्ट कर रहे हैं
नदियां साफ हो रहीं हैं
आसमान नीला दिख रहा है
चिड़िया चहकने लगी हैं
प्रदूषण कम हो रहा है
चीनी चीजों और ऐप्स का
जोरशोर से बहिष्कार हो रहा है
कल वही लोग भूल जायेंगें
चार दिनों में,
क्या क्या हुआ था
करोना काल में
दो - चार दिन सहम के निकलेंगें
थोड़ा संभल कर निकलेंगें
फिर बेधड़क हो पहले से और ज्यादा
करेंगें दुरुपयोग हवा पानी का
फिर खरीदेंगे चीनी सामान
फिर खेलेंगें टिक टैक
और फिर वही लोग
बनकर सच्चे चिंतक
करेंगें पोस्ट
उफ कितना गन्दा हो गया
नदियों का पानी
आह, बढ़ गया फिर से
प्रदूषण
अरे, गौरैया फिर हो गयीं
गायब
और फिर जुटेगी
विचारकों की भीड़
और प्रदूषित होगी
वर्चुअल वाल
और चिरकाल तक
पल्लवित रहेगा
चिंतन काल
पृथ्वी दिवस को सार्थक करती सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंधरा दिवस की बधाई हो।
सुप्रभात...आपका दिन मंगलमय हो।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (24-04-2020) को "मिलने आना तुम बाबा" (चर्चा अंक-3681) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
बहुत ही सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात
जवाब देंहटाएंकुछ दिन बाद सब भूल जाते है लोग, बीमारी है ये भी एक तरह की, यही भूल कब कहर बन टूटती है कोई नहीं जान पाता
सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!सुंदर व सटीक !
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