माँ, भाभी, बहन को देखकर
कुंवारेपन से ही देखने लगती है
स्वप्न
जब वो भी करेगी व्रत
अपने पति के लिये
होते ही सुहागन
करने लगती है कामना
सुहाग के अमर होने की
सहर्ष सप्रेम
बुनती है कवच
दीर्घायु का
सौभाग्य का
समृद्धि का
कभी पुत्र
कभी पति
कभी परिवार के लिए
करती है उपवास
कभी बिना अन्न के
कभी बिना जल के
कभी चौथ कभी तीज
कभी अष्टमी कभी दूज का
सम्पूर्ण समर्पण से
पूजन से अर्चन से
करती है कामना
अपनों के लिए
मगर उन अपनों में
सम्मिलित नहीं है
पुत्री माँ या बहन
समाज ने बड़ी सरलता से
कर दिया विभाजित
व्रत का भार स्त्री और
व्रत का फल पुरुष में
पूछना चाहती हूं
समाज के रचयिताओं से
क्या स्त्री नहीं है
दीर्घायु की अधिकारिणी
क्या पुरुष का पल्लवित होना ही
है पर्याप्त समाज के लिए
क्या जन्म जन्मांतर तक
स्त्री को ही चाहिए साथ
पति, पुत्र या पिता का
क्या नहीं बन सकता
तीन सौ पैंसठ दिन में
कम से कम एक दिन
जब करे पुरुष
व्रत पूजन अर्चन
पत्नी, मां, या बहन के
सौभाग्य की कामना के लिए
उनकी दीर्घायु के लिए
क्या देख सकता है
कभी कोई एक पुरुष
स्वप्न
कोई ऐसा व्रत रखने का
शायद पृथाओ में जकडे हैं दोनो
स्वीकार लिया है दोनो ने ही
अपना अपना भाग
गौरी ही करेगी तप महादेव के लिये
हाँ क्योकि
हर पुरुष नही हो सकता महादेव
जो करेगा तप गौरा के लिये
पता नहीं फिर होगा कैसे
पूरा स्वप्न हर गौरा का
जन्मजन्मान्तर तक पाने का
अपने इस जन्म के शिव को
पलाश सिर्फ अपनी डाल पर लगता है और खिल कर धरती पर गिर जाता है। वह सिर्फ अपने लिए अपनी डाल पर ही सीमित रहता है। और डाल से अलग होते ही अपने अस्तित्व को समाप्त कर देता है। यही है उसका पूर्ण समर्पण उस डाल के प्रति जिसने उसको जीवन दिया ।
शनिवार, 3 अक्तूबर 2020
प्रेम पृथाएं
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बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरचना को स्थान देने के लिये आपका बहुत आभार
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह!बहुत खूब!!बात तो सही है आपकी ,सभी व्रत ,तप स्त्रियों के भाग में ही क्यूँ ?
जवाब देंहटाएंवाह !बढ़िया प्रश्न !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति बहुत कुछ कहती हुई रचना
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