पूरा दिन चिलचिलाती धूप में काम करने के बाद, ऐसा कौन सा ऐसा मजूर होगा जो मजदूरी पा कर खुश ना होता हो। एक मजदूर सुबह से शाम तक हाड तोड मेहनत यही सोचते सोचते करता है कि जब दिन ढले वह आटा, नमक, तेल और चार पैसे हाथ में ले घर में जायगा, तभी तो उसकी घरवाली चूल्हा जलायेगी, उसका और उसके बच्चों को प्यार से थाली परोसेगी, जब वह दो पैसे उसके हाथ में धरेगा, तो उसकी आंखो की चमक से उसके जीवन में उजाला भर जायेगा। मगर निमई के लिये, शाम का ये बखत खुशी के साथ साथ दुख भी ले आता था। हर दिन दिहाडी लेते समय उसे सबसे ज्यादा अपने औरत होने का दुख होता। रोज सोचती की आज वो ठेकेदार से बात कर ही लेगी, मगर उसकी मजबूरियां उसकी जुबान पर ताला चढा देती।
सब कुछ तो मिलता था उसे, कभी ऐसा न हुआ था कि उसको पैसा काट कर दिया गया हो, या देर से दिया गया हो, रोज शाम सभी को पूरी मजूरी मिल जाता थी। ठेकेदार कई बार कह चुका था- निमई अब कुछ दिन के लिये तू आराम कर ले, बच्चा हो जाय तो फिर से काम पर आ जाना, तू इतना मन लगा कर काम करती है, तेरा काम कहीं नही जाने वाला।
निमई का सातवां महीना चल रहा था। पेट में बच्चा देकर रामदीन करीब छै महीने पहले किसी को नही पता कहाँ चला गया था। कोई और औरत होती तो शायद बच्चा गिरा देती। मजदूरों के पास भला क्या पूंजी होती है, बस अपने हाथ के जोर के बल पर घर परिवार का सपना संजों लेते हैं। निमई ने भी कुछ ऐसा ही सपना रामदीन के साथ देखा था। निमई के पास परिवार के नाम पर शादी के पहले भगवान राम और शादी के बाद रामदीन ही एकमात्र साथी था। निमई ने जब रामदीन को घर में एक नन्हे मेहमान के आने की खबर दी तो वह कुछ चिन्तित जरूर हुआ था, मगर यह तो उसने सपने में भी नही सोचा था कि वह अपनी प्रसूता पत्नी को इस दुनिया में इस तरह एक दिन अकेला छोडकर चला जायगा।
मगर निमई उन स्त्रियों में थी जो किसी भी परिस्थिति में घुटने टेकना नही जानती थी। किस्मत के लिखे को सिर माथे धर, वो अपना और अपने पेट में पल रही नन्ही सी जान का पेट पालने लगी। अच्छे खासे आदमी मजदूरों से भी ज्यादा वो काम करती। सभी उसकी मेहनत मजदूरी की तारीफ करते। मगर निमई को इस तारीफ की नही , चार पैसों की जरूरत थी, जिससे उसे अपने आने वाले बच्चे के लिये माँ और बाप दोनो बनना था, मगर इस दुनिया में एक औरत भले ही बाप बन जाय, मगर मजदूरी लेते समय केवल एक औरत ही होती है, जिसे कभी भी आदमी के बराबर की मजूरी नही दी जा सकती।
यही एक बात थी, जो रोज निमई को दुखी कर जाती थी, वो रोज सोचती कि आज वो
ठेकेदार जी से कह ही दे- कि बाबू साहब आप मुझे चाहे तो और काम दे दो, चाहे तो देर तक
और काम भी करा लो, मगर मुझे भी वही मजूरी दो जो आप शंकर, कल्लू और श्यामलाल को देते
हो। ये सब तो केवल बाप हैं मगर मै तो माँ – बाप दोनो ही हूँ। बस एक बार भगवान को साक्षी
मानकर, मन से सोचकर बताओ- क्या मै किसी से भी कम मेहनत या काम करती हूं, अगर नही तो
फिर ये आदमी और औरत की मजूरी में भेद काहे।
very true.. in fact women should be paid more for managing household and work
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक औरत के नजरिए को अच्छे से रखती हुई कहानी। इसे पढ़ कर यदि एक भी व्यक्ति की सोच में सकारात्मक परिवर्तन आया, तो इसे लिखना सफल हो जाएगा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंEffective presentation
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