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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

चंद रुमानी एहसास

 


तेरे इश्क पर हम ऐतबार करते हैं

कहें ना कहें तुमसे प्यार करते हैं

मौसम कोई हो, चलेगें साथ तेरे

मूंद आंखें अभी इकरार करते हैं

वो पल जिसमें तुम शामिल नहीं

ऐसी जिन्दगी से इनकार करते हैं

मिले तुमसे जब भी आये जहाँ में

खुदा से ये दुआ हर बार करते हैं

मेरे झगडों से ना दिल इतना दुखा

यूं ही झूठ-मूठ की तकरार करते हैं

रूह पलाश की बसती जिस्म में तेरे

ऐलान आज ये सरे बाजार करते हैं

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-02-2021) को    "महक रहा खिलता उपवन"  (चर्चा अंक-3991)     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. प्रणाम चाचा जी। आपके निरन्तर आशीर्वाद के लिये बहुत आभार।

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  2. मेरे झगडों से ना दिल इतना दुखा

    यूं ही झूठ-मूठ की तकरार करते हैं।
    बिल्कुल साफगोई से कबूल कर लिया । खूबसूरत एहसास ।

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    1. प्रणाम, आपको अपने ब्लाग पर देखना, मुझे आपके आशीर्वाद सा लगता है, बहुत इच्छा है मन में कि कभी आपसे बात कर सकूं या मिल सकूं

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 28 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिए आपका बहुत धन्यवाद

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  4. अद्भुत अभिव्यक्ति दी ...धारा सा मन बह गया इसे पढ़कर

    जवाब देंहटाएं

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