वक्त मुश्किल है मगर, ये भी निकल जायेगा
रेत की तरह ये भी, हाथों से फिसल जायेगा
यकीं रखो तो जरा, आंच-ए- इश्क पर जानिब
वो संगे दिल ही सही, फिर भी पिघल जायेगा
नसीहतें मददगार बनें हरदम, जरूरी तो नहीं
ठोकरे पाकर ,वो खुद ब खुद ही संभल जायेगा
आज का दिन भले भारी है, तेरे दिल पे बहुत
हौसला रख बुलंद, ये मुकद्दर भी बदल जायेगा
याद करने से रोने से, कहाँ कुछ हासिल हुआ
करोगे कोशिशे तो, दिल खुद ही बहल जायेगा
खुशी से कर इस्तकेबाल, पलाश नई सुबह का
होते मियाद पूरी दिन, कुदरतन ही ढल जायेगा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-03-2021) को "चाँदनी भी है सिसकती" (चर्चा अंक-3994) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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वक्त मुश्किल है मगर, ये भी निकल जायेगा
जवाब देंहटाएंरेत की तरह ये भी, हाथों से फिसल जायेगा
सच दिन कैसे भी हो एक जैसे नहीं रहते, सब बदल जाते हैं समय के साथ
ब्लाग पर आने एवं प्रतिक्रिया देने के लिये हार्दिक धन्यवाद
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 3 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना,कृपया हमारे ब्लाग पर भी पधारिए 🙏
जवाब देंहटाएंजी अवश्य, कॄपया अपने ब्लाग का पता दीजियेगा।
हटाएंआज का दिन भले भारी है, तेरे दिल पे बहुत
जवाब देंहटाएंहौसलें कर बुलंद, ये मुकद्दर भी बदल जायेगा
वाह , हर शेर उम्दा .
हौसला बढाने हेतु बहुत धन्यवाद
हटाएंस्तय है वक्त को बदलते देर नही लगती,बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद
हटाएंखुशी से कर इस्तकेबाल, पलाश नई सुबह का
जवाब देंहटाएंहोते मियाद पूरी दिन, कुदरतन ही ढल जायेगा
बेहतरीन शेर...
बधाई
बहुत शुक्रिया
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
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