क्या जगाकर हमें
वो, सो सकेगा
रात भर
शमा बुझ गई
अंधेरा अब, जगेगा रात भर
कर सका ना हौसल वो, कहने का हाले दिल
महफ़िल में ख्वाबों की
अब, कहेगा रात
भर
करी कोशिशें मना सका ना, रुठे सनम को
कदम भर की
जुदाई ये दिल,
सहेगा रात भर
मसरूफ हो किसी तरह, ये दिन गुजरा है
तनहाइयों का बिच्छू अब, डसेगा रात भर
क्यूं न एतबार किया दिलबर की बात का
अफसोस औ मलाल दिल करेगा रात भर
हर बात पहली मुलाकात की, याद आयेगी
सुबह की बाट देखता, अब रहेगा रात भर
खत ना जाने कितने अब, लिखेगा रात भर
बहुत सुन्दर गीतिका।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उव्वाहहहह..
जवाब देंहटाएंसादर..
Thank you so much
हटाएंबहुत खूब। ढेरों शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंThank you Virendra Ji
हटाएंमन की कसक बखूबी बयान की है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं