बाते, खिला सकती है,
मुरझाई बगिया
बाते दे देती कभी न
भरने वाला घाव
सुनी थी माँ से बचपन
में एक कहावत
बातन हाथी पाइये, या
बातन हाथी पाव
बात का बन भी सकता
है बडा बतंगड
बात बात में बन भी
जाती उलझी बात
बातों ही बातों में
अक्सर जुड जाते दिल
जब बात-बात में बन
जाती किसी से बात
हाँ बात के नही होते
यूं तो सिर या पैर
मगर निकलती तो दूर
तलक जाती बात
कहती पलाश सबसे सौ
बात की इक बात
सोच समझ कर सदा कहो किसी से बात
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-03-2021 को चर्चा – 4,016 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
Thank you so much Dilbag ji. I wish you must be good
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2078...पीपल की कोमल कोंपलें बजतीं हैं डमरू-सीं पुरवाई में... ) पर गुरुवार 25 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंRavindra ji, Aap kaise hai? thank you so much for giving me place in "Paanch links ka Anand"
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंPranam Chacha Ji.
हटाएंAap kaise hai?
manobal badhane k liy bahut dhanyawaad
बात की बात में कितनी अच्छी बात कह डाली ।
जवाब देंहटाएंThank you so much Maa'm, Aapka blog par aana hamesha mere liy sudhad hota hai.
जवाब देंहटाएंThanks for your blessings
रहिमन जिव्हा बावरी, कहिगी सरग पताल।
जवाब देंहटाएंआपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥
बात का सटीक सही आकलन करती सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसही कहा
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सराहनीय
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