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सोमवार, 1 अगस्त 2022

कुछ कहता है ये सावन


 

अपने मन के एक छोटे से कोने में मैने बना रखी है एक सुंदर सी गली जिसका नाम रखा है मायका। जिसमें रहती है, सुमधुर यादें, अल्हड़ बचपन, खट्टी मीठी बातें, शरारतें, और सखियां 

जब कभी भी हदय को दुनिया की भीड़ में अकेलेपन का अहसास होता है, मैं खटका देती हूं इस गली का कोई एक दरवाजा जब कभी मन चाहता है जाना अपने मायके किंतु जीवन की व्यस्तताओं और जिम्मेदारियों  की विवशताओं के कारण जाना असंभव सा दीखता है, तब अपने सारे कामों को निपटा आ जाती हूं इसी गली में। जब तीज त्योहारों में नही मिलता कोई जिसके साथ खुशियां बांट सकूं, तो आ जाती हूं इसी गली में, जब बेचैन होता है मन, किसी अपने से गले लिपट कर अपनी पीड़ा बांट लेने का, आ जाती हूं इस गली में।

मायका- एक ऐसी दुनिया जिसका एक छोटे से छोटा कोना भी प्रेम से बिंधा होता है। जिसमें ना चकाचौंध है, ना दिखावा है, ना छल का कोई स्थान, ना बैर को कोई जगह।

सावन का महीना हो और मायके जाने को मन आतुर ना हो यह तो शायद वैसे ही है हुआ जैसे चैत की भोर हुई हो मगर सूरज देवता दर्शन ना दे।

बेटियां सिर्फ तभी तक बेटियां होती हैं जब तक उनके जीवन में ससुराल नाम की दुनिया का आगमन ना हो। बहुत सुंदर लगती है ये बात कि आज के जमाने में बहुयें बेटियों जैसी ही रहती है। हकीकत या तो जन्म देने वाली मां जानती है या उसकी जाई बेटी। रोजमर्रा की जरूरतों से कहीं ज्यादा बडी होती है, प्रेम और अपनेपन की जरूरत। मखमल की चादर भी नुकीली ही लगती है यदि मन में परायेपन का छोटा सा भी कंटक लगा हो।

सुखी और खुशी ये मन की वो भिन्न अवस्थायें है, जो सदा साथ ही रहती हो, ये तनिक भी आवश्यक नही। जैसे बारिश हो और हर मन मयूर सा नृत्य करे, विरह में डूबा हदय बरखा के साथ बरसता है और प्रीत से भीगा मन उत्सव मनाता है।

सावन का महीना आज भी हर ब्याहता के लिये मायके चलने का न्योता लेकर आता है। नीम के पेड़ पर पड़े झूले मेघों के माध्यम से भाई का संदेशा लाते हुये कहते हैं कि आ जाओ बहना तुम्हारे भाई की कलाई तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है।

बाबू जी भी भूल जाते है कि उनकी बिटिया अब इतनी बडी हो गयी है कि पूरी एक दुनिया की जिम्मेदारियां संभाल रही है, बाजार में लगे मेले से उसके लिये गुडिया और कंगन ला कर रख लेते हैं और जब मायके आकर बिटिया गले से लगती है तो गहनों से सजी बेटी को बाबू जी बहुत सारी प्यार और आशीर्वाद के साथ उसके हाथ में कागज में लिपटे हुये कांच के दो कंगन दुलहन सी सजी गुड़िया थमाते हुये कहते हैं, वो परसों बाजार गया था एक दुकान पर ऐसे ही नजर पडी, तो बस तेरे लिये लेता आया। बेटी यह भली भांति जानती है कि उसके बाबू जी खूब ढूंढ कर उसके लिये वो दुल्हन वाली गुड़िया लाये होंगे। पिता पुत्री दोनो ही अपने अपने आंसू छुपाने का असंभव प्रयास करते हैं, तभी मां इस विराम को तोडते हुये कहती है, आजा बिटिया, जा जल्दी से हाथ मुंह धो कर आजा, तेरी पसंदीदा फेनी बनी है, और बाबू जी की तरफ उलाहने भरी नजर से देख कहती हैं बातों से ही बिटिया का पेट भरवा दीजियेगा क्या? जब श्रीमती जी से कुछ कहते ना बन रहा हो तब बेटा ढाल सा दिखता है, और वही बाबू जी भी करते हैं  और भाई को लाड से लिपटा आदेश देते है- अरे बउआ झूला ठीक से देख तो लिये हो ना, कही अइसन ना हो बिटिया बइठे झूला मां औ झूला लपक के नीचे आ जाये।

एक बेटी के आ जाने से पल भर में ही जेठ सा तपता सावन हरा भरा हो जाता है। और फिर बातों हंसी ठिठोली, उल्लास, और उत्सव के अनंत दौर शुरु होते है। बेटी भी जी भर कर एक बार फिर अपने बचपन को जीना चाहती है,ताकि अपने मायके की उस गली को जो उसने अपने हदय में बनाई है उसने वापस जा कर बना सके एक और सुखद यादों का घर अपने मायके की गली में।

3 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 3 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
    >>>>>>><<<<<<<
    पुन: भेंट होगी...

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  2. मायके की गली की भी अब तो बस यादें ही शेष हैं । 👌👌👌👌

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