मुस्कुराते चेहरों तले, खुशियां पलें, जरूरी तो नहीं
दिलों जान से चाहना ही बस, आपके मेरे बस में
सिलसिले चाहतों के उधर भी हों, जरूरी तो नहीं
सह लेते हैं कुछ लोग, हर ज़ख्म हंसते हंसते भी
हाले दिल हम ज़माने को सुनाए जरूरी तो नहीं
अहसास ऐ बेगानापन काफी है, दिल डुबाने को
बुझे चिराग ही करें तीरगी मकां में, ज़रुरी तो नहीं
लहज़े बातचीत के बता देते हैं, स्वाद रिश्तों का
कड़वे अल्फाज़ ही कहे सुने जाय ज़रुरी तो नहीं
कली गुलाब की काफी है इज़हार ए मोहब्बत को
महंगें गुलदस्तें हों वजह ए इकरार, ज़रुरी तो नहीं
पलाश करती है कोशिश, अपनों को खुशी देनें की
उसकी हर इक कोशिश हो कामयाब, ज़रुरी तो नहीं
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