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शनिवार, 21 अगस्त 2010

फितरत

इंसा की फितरत तो देखो
जो मिलता है कम लगता है
इक ख्वाइश पूरी होती है
दूजी को रोने लगता है

कल तक जो मेरे साथी से
वो आज हमारे दुश्मन है
एक हाथ से हाथ मिलाते है
पर  रक्खे दूजे में खंजर है

शब्द शहद से मधुर हैं लेकिन
भावों में  स्वार्थ का राग छिपा है
इंसा की फितरत देख देख कर
गिरगिट भी शर्मसार हुआ  है


सब कुछ पाने की हसरत में
हम हर पल कितना कुछ खोते हैं
लाख को करोड बनाने के लिये
 मूलधन भी हम खो देते है

4 टिप्‍पणियां:

  1. सच्चाई को वयां करती अच्छी रचना ,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. कल तक जो मेरे साथी से
    वो आज हमारे दुश्मन है
    एक हाथ से हाथ मिलाते है
    पर रक्खे दूजे में खंजर है
    यही है दुनियां की रीत।
    बहुत अच्छे भाव।
    *** WORD VERIFICATION हटा दीजिए।

    जवाब देंहटाएं
  3. yahi to vidambana hai insaan ki
    nice expression of true of the world net

    जवाब देंहटाएं

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