आज लगभग ४ महीने के बाद मै पुनः इस ब्लाग की दुनिया में वापस आ रही हूँ । इस बात की मुझे हार्दिक खुशी है कि एक दिन के लिये भी कभी आप लोगों ने मुझे अपने आप से दूर नही किया । सदैव मेरा उत्साह बढाया और लिखने के लिये प्रेरित करते रहे । यह आप सभी के अशीर्वाद और स्नेह का परिणाम ही है कि मै फिर से लिखने का साहस कर पा रही हूँ , इस विश्वास के साथ की पहले से कही अधिक आप सभी का सहयोग मुझे मिलेगा , मेरी त्रुटियों को सुधारने में अच्छे लेखन में आप मेरी मदद करेंगें ।
यह कहानी एक ऐसी औरत की है जो हमारे आपके आस पास जीती है । कभी आप इसे चाची कह कर पुराकते है कभी दादी । मै और मेरे आस पास के लोग इनको रुक्मी ताई के नाम से जानते है । रुक्मी ताई जो कभी पूरे मोहल्ले की जान हुआ करती थी , आज उनकी सांसे तो चल रही थी , मगर जीना भूल चुकी थी । आज मुझे वो समय याद आता है ,जब वो अपने हेमू में अपना भविष्य खोजती दिन रात काम में लगी रहती थी । किस तरह उन्होने एक साधारण से मकान को सुन्दर से घर में बदल दिया था । बस दिन रात उनकी आखों में यही सपना सजता था की कब उनका नन्हा सा हेमू (हेमन्त) बडा होगा और पढ लिखकर एक बडा आदमी बनेगा ।
जिस मुश्किल दौर को उन्होने देखा था वो उसकी परछाई भी उस पर नही से पडने देना चाहती थी । आखिर एक वो भी दिन आया जब उनकी बरसों की मेहनत और इन्तजार सच्ची खुशियों के रंग ले कर लौटे ।
देश के सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में हेमू को आज दाखिला मिल गया था ।धीरे धीरे समय मन से भी तेज रफ्तार से चलने लगा । रुक्मी की आंखों मे उसकी एक अच्छी सी नौकरी का सपना पलने लगा था । ईश्वर ने भी जैसे उसके हर एक सपने को पूरा करने की ठान ली थी । उसको एक विदेशी कम्पनी में नौकरी मिली थी । रुक्मी ताई ने पूरे सवा पाँच किलो के बेसन के लड्डू का बजरंग बली जी को भोग चढाया था । उसके जाने की तैयारी में उन्होने दिन रात एक कर दिये थे । उनका बस चलता तो वो एक दो महीने के लिये खाने का सामान बना देती ।
फिर वो भी दिन आया जब वो घर में अकेली रह गयी । फिर भी मन में संतोष और आँखे खुशी के आंसुओं से भरी थी । हेमू से फोन पर हुयी पाँच - दस मिनट की बात को वह पूरे मोहल्ले में घंटों सुनाया करती थी । और फिर धीरे धीरे शुरू होने लगा वापस आने का इन्तजार ।
कई बार सोचती कि बडी गलती हुयी उनसे , हेमू की शादी कर देती तो ठीक रहता , कम से कम विदेश में उसको खाने की परेशानी तो नही उठानी पडती । फिर सोचती कि इस बार आने पर उसकी शादी जरूर कर देगीं । फिर तो उनका सारा दिन लडकी ढूंढने में ही निकलने लगा । एक रिश्ता उन्होने लगभग तय ही कर दिया था , बस इन्तजार था हेमू की हाँ का । आज दो साल बाद हेमू दीवाली पर घर आ रहा था या ये कहा जाय कि रुक्मी ताई की दीवाली आज दो साल बाद ही आई थी । उनका राम सा बेटा आज अपने घर आया था , बस उनको अब इन्तजार था सीता सी बहू लाने का । मगर जब उनको पता चला कि उनके बेटे ने अपने लिये पत्नी देख ली है , तो पहले तो उन्हे थोडा दुख हुआ , दुख इस बात का नही था कि उसने लडकी स्वयं ही पसन्द कर ली थी , वो उनकी जाति की नही थी , मगर उन्होने इस दुःख को अपने चेहरे पर भी नही आने दिया था । खूब धूम धाम से शादी हुयी , हर किसी से कहते नही थकती कि मेरी बहू लाखों नही करोंडों में एक है , दूसरी जाति की है तो क्या , संस्कारों की उसमें कोई कमी नही । मै मूरख तो सात जनम भी अपने हेमू के लिये ऐसी बहू नही ढूँढ पाती ।
शादी के १० -१५ दिन बाद जब वो दोनो घूम कर लौटे , तब माँ के मन में आस जगी कि कुछ दिन दोनो उसके पास रहे , मगर हेमू ने कहा- माँ सारी छुट्टियां खत्म हो चुकी है , लेकिन माँ अब हम साल मे एक बार पूरे एक महीने के लिये आपके पास आया करेंगें । मगर ना साल बीता ना वो महीना आया । आँखे रास्ता देखती रहीं , खबरें मिलती रहीं , रिश्ते बढने लगे , अब वो एक माँ से दादी बन चुकी थीं । पोते के चेहरे को तरसती आँखों में भी खुशी की चमक थी । इस खुशी मे उन्होने कितनों को कितनी मिठाई खिला दी थी , इसका हिसाब तो ब्रह्मा जी भी नही रख सके होंगें । वादे होते रहे मगर सिर्फ टूटने के लिये । अब उसमें अपने दर्द को आचंल में बाँध कर रखने की क्षमता खत्म सी हो चली थी , और दर्द ने आँखों के किनारों से निकलनें का रास्ता देख लिया था । पुत्र विछोह उनकी आँखों के आइने में साफ नजर आता था । मगर आस थी कि नदी के किनारे की तरह नदी के बहाव का साथ दिये थी ।
मुझे याद है वो दिन जब मै उनके घर पर ही थी , कि हेमू का फोन आया था । ताई जी कह रही थी - बेटा बस चाहती हूँ मरने से पहले एक बार अपने पोते को देख लेती । मगर शायद हेमू उस दर्द को महसूस नही कर पा रहा था जिसे मैं पराई होकर भी देख रही थी , हँस कर बोला - माँ आप भी ना हमेशा मरने की ही बात क्यों करती हो , मै आने की कोशिश कर रहा हूँ , मगर यहाँ से आना इतना आसान नही होता | आप ऐसा क्यों सोचती हैं कि मै आना नही चाहता , माँ मुझे बहुत दुख हो रहा है कि एक माँ ने ही अपने बेटे की मजबूरी को नही समझा ।
उस दिन की बात के बाद तो रुक्मी ताई बिल्कुल अनमनी सी रहने लगी , जैसे जीने की इच्छा ही खत्म हो गयी हो , शायद अब उनका हर इन्तजार खत्म हो गया था । तीन दिन बाद ही उन्होने प्राण त्याग दिये । जाने से एक दिन पहले उन्होने मुझे बुला कर कहा था - बेटी मेरे मरने की खबर हेमू को ना देना , वो बेचारा परेशान हो जायगा , और फिर इतनी दूर से तुरन्त आना मुंकिन भी नही होगा । बस तुम मेरे जाने के बाद इस घर में रोज दिया - बाती कर दिया करना । हेमू के आने तक मै उसका इन्तजार इसी घर में करूगीं । मुझे विश्वास है वो समय मिलते ही अपनी माँ से मिलने जरूर आयगा और फिर तब मैं हमेशा के लिये उसी के पास जा कर रहूंगीं ।
क्या वाकई मरने के बाद भी इन्तजार खत्म नही होते ? क्यों इन्तजार कभी कभी इतना बेदर्द हो जाता है कि जीवन को उसके सामने घुटने टेकने पड जाते हैं ? क्यों हम ऐसा इन्तजार करते है ? ये कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके जवाब मैं आज तक ढूँढती हूँ , मगर आज तक अनुत्तरित ही हूँ । बस इन्तजार है कि शायद कभी मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल जायें ।
लम्बे अन्तराल के बाद आपका स्वागत है . बूढी माँ की आंखे अपने बेटे का इंतजार करके पथरा गयी . आज के समाज के कडवे यथार्थ को प्रतिबिंबित करती कहानी . मन द्रवित हुआ . मुझे लगता है पुत्र अपने माता पिता को भूल जाता है लेकिन उसका इंतजार केवल एक माँ ही कर सकती है .
जवाब देंहटाएंब्लाग की दुनिया में पुन: वापिसी पर स्वागत है ...
जवाब देंहटाएंकुछ सवालो मे जवाब अनुत्तरित ही रहते हैं ……………बेहद मार्मिक लेकिन आज का कटु सत्य जिसे झुठलाया नही जा सकता।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्म स्पर्शी कहानी पढाई आपने. आपके सवाल के जवाब सोचने पर मजबूर करते हैं.
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रसंग लेकिन आज की सच्चाई इसको स्वीकारना ही पड़ेगा ,अच्छी लगी रचना
जवाब देंहटाएंअनुत्तरित प्रश्नों के कभी जवाब नहीं मिलते बल्कि कुछ और प्रश्न सामने खड़े हो जाते है, मगर ये निश्चित है रुक्मी ताई उस घर में जरूर रही होगी बेटे के आने के आसरे में सदियों तक ..
जवाब देंहटाएंन जाने कितनी छोटी छोटी इच्छाओं पर टिका है जीवन का क्रम।
जवाब देंहटाएंhello,di... bhut dino baad aap aayi... apka swagat hai... ek sawal kiya hai apne vo aaj ki haqkat ki tasveer prstut karta hai....
जवाब देंहटाएंवापसी का स्वागत...
जवाब देंहटाएंजाने कितनी तुक्मी ताऊ अपने हेमूओं का आज भी उन वीरान घरों में इन्तजार कर रही हैं, जहाँ अब दिया बाती करने वाला भी कोई नहीं बचा....
मार्मिक!!
मार्मिक प्रस्तुति ... कुछ इंतज़ार इंतज़ार ही बन कर रह जाते हैं ..
जवाब देंहटाएंवापसी पर घनघोर स्वागत.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंकुछ चिट्ठे ...आपकी नज़र ..हाँ या ना ...? ?
bahut hi acchi prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी लिखी है आपने ...मर्मस्पर्शी है ....समाज के बदलते स्वरुप की कथा ...
जवाब देंहटाएंवापसी पर स्वागत एवं आगे लिखते रहने के लिए शुभकामनायें ...!
बहुत सुन्दर कहानी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कहानी लिखी है आपने.
जवाब देंहटाएं--------------------------------------------
आपकी एक पोस्ट आज यहाँ है-
नयी-पुरानी हलचल
मर्म स्पर्शी कहानी. वापसी पर स्वागत .
जवाब देंहटाएंbahut hi marmic sambedansheel,dil ko chunewali parantu aaj ki sachchai bayan karati hui saarthak prastuti.badhaai sweekaren.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog.thanks.
welcome back.
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएं॰ संगीता जी "कुछ चिट्ठे ...आपकी नज़र ..हाँ या ना ...? ? " पर मेरी पोस्ट की चर्चा करने के लिये आभार ।
॰ यश जी नयी-पुरानी हलचल पर मेरी पोस्ट लगाने का शुक्रिया ..
माएँ ऐसी ही होती हैं ... पर खून की गर्मी उनके बारे में सोचने का समय नही देती जब तक की वो खुद इसी स्थिति में नही आते ... संवेदनशील रचना है ...
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक कहानी...आज यह घर घर की कहानी है...बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा कहानी पेश की है आपने अपने पुर्नागमन के साथ.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ...
अपर्णा त्रिपाठी "पलाश " जी साधुवाद -रुक्मी ताई और माँ , नारी के जज्बातों का बेहद मार्मिक चित्रण किया इस आलेख में दिल को छू लेने वाला लेख -बहुत से घरों की आज ये दुर्दशा दिखती है भगवन ही बचाए सब को संस्कार दे
जवाब देंहटाएंशुक्ल भ्रमर ५
कहानी पसन्द करने के लिये आप सभी का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र जी हमारे अनुसरण कर्ताओं की संख्या को शतकीय बनाने एंव हमारे ब्लाग के साथ जुडने का बहुत बहुत शुक्रिया ।
सुंदर कहानी के साथ वापसी.....स्वागत है...
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी रचना|
जवाब देंहटाएंपलाश जी ये देख हमें भी हर्ष हुआ था की शतक के साथ हमारी याद तो बनेगी -ढेर सारी शुभकामनाएं आप को -एक एक शून्य और इसी तरह जुड़ता रहे -२००-३००--
जवाब देंहटाएंपिता के प्रति आभार और पिता-पुत्र के प्यार के रिश्ते को प्रगाढ़ करने में आप शामिल हुए धय्न्वाद
आइये अपना सुझाव और समर्थन भी दें
शुक्ल भ्रमर ५
बहुत दिन बाद ब्लॉग जगत में उपस्थित हुआ. अच्छा लगा देखकर की पलाश के फुल फिर से खिलने लगे हैं.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी। कम पढने को मिलती हैं ऐसी कहानियां
जवाब देंहटाएंBahut hi marmik aur dil ko chhu lene wali kahani hai jiske liye aapko koti koti dhanyawad
जवाब देंहटाएंBahut hi marmik aur dil ko chhu lene wali prastuti hai
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