मिलता नही अवसर कि
देखे कभी मृत्यु के पार,
जीते जी ना कर पाया कोई
मृत्यु से साक्षात्कार,
यूँ तो कहते है सब
कुछ नही मृत्यु के बाद,
पर दो पल हों तो चलो
मेरे संग आज मृत्यु के पार,
जीवन खत्म नही होता है
तन से प्राणों के जाने से,
माना आखँ नही खुलती है
चिर निद्रा में सो जाने से,
पंचतत्व* से ही बनते हम
ये तो सभी मानते हैं ,
छोड के जाना पंच तत्वों ** को
ये सब नही जानते हैं,
अनन्त उम्र का जीवन
राह देखता खडा मृत्यु के पार,
पर सच्चे जीवन को ही मिलता
अनन्त जीवन का उपहार,
सबको मिलता नही अवसर कि
जाये मृत्यु के पार,
मर कर भी कर पाये वो
जीवन से साक्षात्कार .................
*नभ , जल , वायु, अग्नि, धरती
** विचार , शब्द , आचार , व्यवहार ,कर्म
सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक..
सच है..मुक्ति और मृत्यु में फर्क है..
एक अनसुलझा रहस्य है मृत्यु.
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्सी.
जवाब देंहटाएंआध्यातिम अनुभूति. अच्छी अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन और मर्म स्पर्शी कविता।
जवाब देंहटाएंसादर
मृत्यु के पार की कल्पना ... आसान नहीं है इस पहेली को सुलझाना ... अच्छा लिखा है ...
जवाब देंहटाएंनींद का सा गाढ़ा अनुभव होता होगा, मृत्यु का भी..
जवाब देंहटाएंनिराकार ... साक्षात्कार..
जवाब देंहटाएंbehtareeen........
जवाब देंहटाएंबढियाँ है!! मृत्यु के पार के जीवन की अभिलाषा जागृत करने के लिए धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंबेहद गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंभावों और शब्दों का उत्कृष्ट संयोजन अत्यंत गहन भाव युक्त प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंऊँची बात कह दी . झांक कर देख आये हम .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|