प्रशंसक

सोमवार, 23 जनवरी 2012

मृत्यु के पार


मिलता नही अवसर कि

देखे कभी मृत्यु के पार,

जीते जी ना कर पाया कोई

मृत्यु से साक्षात्कार,

यूँ तो कहते है सब

कुछ नही मृत्यु के बाद,

पर दो पल हों तो चलो

मेरे संग आज मृत्यु के पार,

जीवन खत्म नही होता है

तन से प्राणों के जाने से,

माना आखँ नही खुलती है

चिर निद्रा में सो जाने से,

पंचतत्व* से ही बनते हम

ये तो सभी मानते हैं ,

छोड के जाना पंच तत्वों ** को

 ये सब नही जानते हैं,

अनन्त उम्र का जीवन

राह देखता खडा मृत्यु के पार,

पर सच्चे जीवन को ही मिलता

अनन्त जीवन का उपहार,

सबको मिलता नही अवसर कि

जाये मृत्यु के पार,

मर कर भी कर पाये वो

जीवन से साक्षात्कार .................

*नभ , जल , वायु, अग्नि, धरती

** विचार , शब्द , आचार , व्यवहार ,कर्म

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर...
    बहुत सार्थक..
    सच है..मुक्ति और मृत्यु में फर्क है..

    जवाब देंहटाएं
  2. आध्यातिम अनुभूति. अच्छी अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत गहन और मर्म स्पर्शी कविता।


    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. मृत्यु के पार की कल्पना ... आसान नहीं है इस पहेली को सुलझाना ... अच्छा लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं
  5. नींद का सा गाढ़ा अनुभव होता होगा, मृत्यु का भी..

    जवाब देंहटाएं
  6. बढियाँ है!! मृत्यु के पार के जीवन की अभिलाषा जागृत करने के लिए धन्यवाद !!

    जवाब देंहटाएं
  7. भावों और शब्दों का उत्कृष्ट संयोजन अत्यंत गहन भाव युक्त प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. ऊँची बात कह दी . झांक कर देख आये हम .

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth