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गुरुवार, 23 अगस्त 2012

मृगमरीचिका के पार

सात साल बाद अचानक वो आँखों के सामने यूँ आ जायेगा इस बात की तो कल्पना करना भी रचिता ने छोड दिया था, आज सानिध्य को अपने सामने देखकर उसे अपनी आँखों पर यकीन नही आ रहा था । मगर जिस हालात में वो दोनो एक दूसरे के सामने थे, चाह कर भी कुछ कहे बिना ही एक बार फिर अलग हो गये। रचिता उसे एक बार फिर एक सपना समझ कर भूलने लगी कि एक दिन उसके मेल बाक्स में सानिध्य का मेल आया । उसमें सिर्फ एक ही बात लिखी थी कि वो एक बार उससे बात करना चाहता है, अगर वो भी ऐसा चाहती है तो बस इतना बता दे कि क्या उसने अपना नम्बर बदला तो नही जो उसे वैसे ही याद है जैसे उसे अपना नाम। इन दो लाइनों को पढने के बाद रचिता के सामने बीते वो हर पल सामने आने लगे जिसकी यादों पर भी उसने पर्दा डाल दिया था, और खुद को वह यह समझा चुकी थी कि सिर्फ वो ही हमेशा सानिध्य को प्यार करती थी, मगर आज उसे ऐसा लगने लगा कि जैसे उसके प्यार का इम्तहान पूरा हुआ, वक्त ने ही अचानक उससे उसके सानिध्य को दूर किया था और आज उसको वो सब मिल जायगा जिसका उसको इतने बरसों से इन्तजार था । उसने बस मेल के उत्तर में बस इतना ही लिखा कि जो नम्बर तुम्हे याद है उसे हम कैसे बदल सकते थे।
मेल करने के थोडी ही देर बाद फोन की घंटी बजी, और उसके ही साथ रचिता की धडकने भी ।बात हुयी तो पता चला कि सानिध्य की अपनी पूरी दुनिया है, जिसमें उसकी पत्नी और उसकी बच्ची है, रचिता को बुरा तो नही लगा मगर वो यह सुन कर खुश भी ना हो सकी। मगर वो सानिध्य को दुबारा खोना नही चाहती थी। प्यार ना सही दोस्त बन कर तो वह उससे साथ तो पा ही सकती है, मगर कुछ दिनो बात करने के बाद रचिता को पता चला कि न सानिध्य के मन में भी रचिता के लिये वही भावनायें हैं जो रचिता के मन में थीं । रचिता अपना खोया प्यार पा कर बहुत खुश थी, वह अपने प्यार को पा कर यह भी भूल गयी कि जिस सानिध्य को वह प्यार करती थी, अब वह सानिध्य नही है, वह अब एक पति एक पिता है। मगर कुछ ही दिनों में रचिता को तो अपनी भूल  का अहसास हो गया पर सानिध्य की दीवानगी दिन पर दिन बढने लगी, जब भी रचिता उससे कहती कि वो सिर्फ उसका दोस्त ही है तो वह कहता नही तुम मेरी दोस्त नही मेरा प्यार हो, मेरा पहला प्यार और फिर रचिता उसके प्यार में कब खो जाती ये उसको भी नही पता चलता ।
पर आज रचिता ने निश्चय कर लिया कि वो सानिध्य के प्यार को ढुकरा देगी भले ही उसके लिये उसको अपना प्यारा दोस्त खोना ही पडे।मगर वह रिश्तों की इस उलझन में खुद को और सानिध्य को भी अब और नही उलझने देगी।
फिर तो जब भी सानिध्य का फोन आता वो अपनी पढाई का बहाना बना देती , हफ्तों ना उसको मेल करती ना उसका जवाब ही देती । इस तरह करते करते करीब तीन महीने निकल गये । रचिता को लगने लगा था कि इस तरह से वह सच्चाई से दूर नही रह सकती और ना ही सानिध्य के मन से अपने प्यार को मिटा सकती है ।
आज शाम कालेज से आने के बाद उसने सानिध्य को मेल की " आज हम बहुत खुश है , जब भी समय मिले मुझसे बात करना"। मेल करने के दो मिनट बाद ही सानिध्य का फोन आया ," तो आज मैडम जी को पूरे ९४ दिन बाद फुर्सत मिल गयी हमसे बात करने की, चलो हमारी याद तो आयी, रचिता तुमको मेरी याद नही आती थी क्या , कितनी मेल की तुमको तुमने एक का भी जवाब नही दिया, अरे हाँ अपनी बातों में मै तो भूल ही गया , तुम किसी खुशी की बात कर रही थी, बताओ क्या बात है हम भी तो खुश हों । रचिता ने जैसे ही कहा- सानिध्य मुझे प्यार हो गया है , तो सानिध्य ने कहा हम तो कब से आप से प्यार करते हैं हाँ बस आपसे सुनना चाहते थे, चलो आज आपने मान भी लिया, आज मै कितना खुश हूँ मैं बता नही सकता..... तभी रचिता ने बीच में रोकते हुये कहा- सानिध्य, मुझे प्रतीक सर से प्यार हो गया है । ये क्या कह रही हो रचिता ये कैसे हो सकता है, वो तो तुम्हारे सीनियर है ना, फिर उनका घर है बच्ची है, क्या तुमने कभी कहा उनसे , नही कहा तो कहना भी नही ये गलत है। सोचो उनकी पत्नी उनकी बच्ची को पता चलेगा तो वो तुमको कितना बुरा समझेंगीं । मै ये नही कहता कि तुम गलत हो, यार मान लिया कि फीलिंग्स आ सकती है मगर रचिता अभी अगर तुमने खुद को ना रोका तो बहुत गलत होगा, भावनात्मक रूप से भी और सामाजिक रूप से भी। तुम उनकी इज्जत करती हो ये अच्छी बात है मगर जिस प्यार की बात तुम कर रही हो उसका कोई भविष्य नही । मै कभी तुम्हारा बुरा नही सोचूँगा, और ये तुम भी जानती हूँ इसीलिये कह रहा हूँ । तुमको हो सकता है अभी मेरी बातें अच्छी ना लग रहीं हो , तुमको आज और कुछ दिनों तक थोडा दुःख भी होगा मगर यकीन मानो ये सब उससे बहुत कम होगा जो तुम्हे आगे दिखना पड सकता है अगर तुम प्रतीक के साथ रहती हो ।
तब रचिता ने कहा- सानिध्य यही तो हम कब से तुमको समझाने की कोशिश कर रहे थे कि अब तुम्हारा हमारा एक साथ कोई भविष्य नही, जो प्यार हम तुमको करते थे वो तो उस दिन ही खत्म हो गया था जब तुमने अपनी दुनिया बसा ली थी, मगर जब-जब तुमको समझाने के कोशिश की तुम नही समझे , इसलिये हमे आज तुमसे ये सारा झूठ कहना पडा । सानिध्य हम आठ साल नही मिले तब भी तो तुम खुश थे ना, हाँ कभी कभी मेरी याद आती रही होगी । आज से हम दोनो ही उसी दुनिया में चले जाते है जिसमें पिछले आठ सालों से हम दोनो रह रहे थे।
अलविदा सानिध्य
प्लीज अब हमे ना फोन करना और ना ही मेल करना क्योकि शायद दुबारा मैं भी अपने मन को प्यार की इस मृगमरीचिका से बाहर ना निकाल पाऊँ ।


7 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है अर्पना जी आप की प्रस्तुति तो लाजबाब है, बहुत सुन्दर

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  2. संबंधों और आशाओं की विचित्र दुनिया।

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  3. झकझोर देने में सक्षम अच्छी लगी

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  4. पर लहरों को रोकना इतना आसान नहीं होता ।

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