पूज्य पिता जी,
क्षमाप्रार्थी हूँ,
कभी आपकी अनुमति के बिना मैं कही दूर तो क्या पडोस मे कमला चाची के घर भी नही गयी किन्तु आज जीवन में पहली बार आपसे आज्ञा और आशीष लिये बिना ही घर से निकल आई हूँ। और निकली भी हूँ तो एक ऐसी यात्रा पर जिसका ना तो मुझे गंतव्य मालूम है और ना ही रास्ता, ज्ञात है तो सिर्फ अपना लक्ष्य।
आपके दिये हुये इस जीवन में आपसे बहुत कुछ कुछ सीखा, संक्षेप में कहूँ तो आज जो थोडी बहुत बुद्दि और साहस मुझमें है तो वह आपके लालन पालन से ही है। माता जी का आँचल तो मुझ बदनसीब को जन्म से ही नही मिला किन्तु आपके स्नेह ने मुझे कभी ममता की कमी महसूस नही होने दी। आपसे मुझे जीवन की कठिन से कठिन लडाई को सच्चाई और मानवता के सहारे जीतने का पाठ मिला है।
आपने सदैव ही मेरी हर परेशानी को बहुत आसानी से सुलझाया है मगर आज मेरे सामने एक ऐसा प्रश्न खडा हो गया है, जिसका उत्तर आपके पास भी नही है और हम आपको अनुत्तरित होते देखने का साहस नही रखते, इसीलिये स्वंय ही उत्तर की खोज में निकल आयी हूँ ।
सदा से ही आपने सिखाया कि प्रेम से बडा कोई धर्म नही होता, प्रेम की कोई जाति नही होती। प्रेम तो बस प्रेम होता है, यदि प्रेम में भेद हो तो वह प्रेम नही । बचपन से ही आपने इस बात को कभी रामायण के प्रसंगों से समझाया कभी कबीर और रहीम के पघों से सिखलाया। कल तक आप वैदिक से बहुत स्नेह रखते थे, किन्तु जब हमने आपसे यह स्वीकार किया कि हम और वैदिक विवाह सूत्र में बँधना चाहते है तब आपने कहा - बेटी विवाह स्वजाति , स्वधर्म में ही शोभा देता है, वैदिक का और हमारा कुल अलग है। तुम अपने मन में उसके प्रति जो लगाव है उसे स्थान मत दो।
कल रात भर हम आपकी बातों पर विचार करते रहे। मुझे समझ नही आया कि क्या दो लोगो का आपस मे विवाह लेने का निर्णय इस आधार पर नही हो सकता कि वह दोनो प्रेम धर्म को मामने वाले हैं? क्या आप जब वैदिक से स्नेह करते है तब यह बात क्यों नही आती कि दो विभिन्न धर्म के किन्तु एक लिंग के लोग भी आपस में प्रेम भाव नही रख सकते? आखिर क्यों दो प्रेम धर्म को मानने वाले प्राणियों को विवाह जैसी संस्था में प्रवेश की अनुमति नही मिलती?
आशा करती हूँ, शायद समाज के बनाये नियमों के पीछे छिपे तर्को को मैं खोज निकलूंगी, शायद यह बात मैं समाज में स्थापित कर पाऊंगी कि प्रेम धर्म वाकई में सबसे बडा धर्म है और सफल विवाह की बुनियाद भी। समाज की रचना के लिये जैसे विवाह अनिवार्य है , वैसे ही विवाह के लिये प्रेम ना कि जाति , धर्म का मिलान जो हमारे समाज ने अपनी सहूलियतों के हिसाब से गढ लिये है।
आशीर्वाद की आकांक्षिणी
आपकी स्नेहिल पुत्री
जाती आधार पर वर्जनाएं नहीं होनी चाहियें ... प्रेम विवाह में कोई हर्ज नहीं अगर निर्णय सोचा समझा है ...
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