चूल्हे में रोटी बनाने की वो बिल्कुल भी अभ्यस्त नही थी, तकलीफ उसे चूल्हे से उठ्ने वाले धुंये से नही थी, बल्कि दिल इस बात से दुखी हो रहा था कि बहुत कोशिश करने के बाद भी रोटियां जल जा रहीं थी । आज पहली बार वो बसंत को अपने हाथ से बना खाना बना कर खिलायेगी, वो भी ऐसा ! बसन्त शायद तभी बार बार उसे मना कर रहा था कि वो बना लेगा। जब पहली रोटी जली तो उसने ये सोच लिया कि ये हम खा लेगें दूसरी और तीसरी जलने पर भी उसने यही सोच कर मन को समझा लिया, जब चौथी जली तो सोचा कि बाकी की सावधानी से बनायेगी। मगर एक एक करके सभी लगभग एक जैसी ही बनी। अब वो क्या करे?
वो सारी जली रोटियों मे से वो छाँटने लगी जो कम जली थी, कि तभी बसन्त आया और बोला - जल्दी से खाना लगा दो, बडी भूख लग रही है, आज बरसों बाद रोटियां बनी बनाई मिल रही है। छः बरस पहले जबसे माँ गुजरी, खुद की ही बनाई खायी । अब तो माँ के हाथ का स्वाद लेके बस मुँह में पानी और आंखों में आसूँ ही आते है। अपनी बनाई से पेट तो जैसे तैसे भर जाता है, पर आत्मा नही भरती।
लाओ अब जल्दी से थाली लगा दो, पता है आज कारखाने में धीरज मुझसे क्या कह रहा था , बोला - भैया कुछ भी कहो मगर शादी करके कम से कम तुम्हारा एक तो फायदा हुआ, अब घर जा कर थाली परसी हुयी मिलेगी।
तभी बसन्त ने देखा माधवी मिटेटी की सी बुत बनी बस रोटी के कटोरदान की तरफ देखे जा रही थी ।
बसन्त ने उसको थोडा सा हिलाते हुये मुस्करा कर कहा- क्या हुआ, कहाँ खोई हुयी हो, घर की याद आ रही है क्या? तुम भी सोच रही होगी, किस गरीब से पाला पड गया । तेरे मायके में तो गैस है ना । और यहाँ गैस की कौन कहे एक स्टोव तक नही। पर तुम चिन्ता मत करो, अब जब तक मैं गैस नही ला पाता रोटी मै बना लिया करूँगा, तुम सब्जी वगैरह पका लिया करना । मिलजुल कर जिन्दगी की गाडी धीरे धीरे चल ही जायगी।
बसन्त की बात सुनने सुनते माधवी सिसकने लगी। बसन्त उसके रोने पर घबरा के बोला - अरे क्या हुआ? कही हाथ वाथ तो नही जल गया। और उसका हाथ अपने हाथ मे ले कर देखने लगा। तभी माधुरी एकदम बिफर पडी और रोते रोते बोली - मैं एक अच्छी पत्नी नही, मैं तो आपको दो अच्छी रोटियां भी बना के नही दे सकती। मैने सारी की सारी रोटियां जला दी। वो कुछ और कहती इससे पहले बसन्त ने एक हाथ से कटोरदान से एक रोटी और दूसरे से उसके आंसुओं को मोती की तरह अपनी उंगली पर लेते हुये कहा - अरे इसको तुम जली हुयी कह रही हो, ये तो बहुत अच्छी हैं, आज से छः बरस पहले तुमने देखा होता तब जानती जली रोटी किसे कहते हैं।
और फिर पगली, पेट से ज्यादा जरूरी होता है मन का भरना, आत्मा का भरना, और वो तो तुमने मेरी जिन्दगी में आते ही भर दिया।
मुझे रसोई संभालने वाली से ज्यादा मेरी जिन्दगी संवारने वाली की जरूरत थी।
behtareen!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और प्यार पगी कहानी !
जवाब देंहटाएंSunder..Atti Sunder.:)
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (25.07.2014) को "भाई-भाई का भाईचारा " (चर्चा अंक-1685)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंकितना सुन्दर जीवन होगा !!
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्दों से सजी और भावनाओं से ओतप्रोत कहानी
सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआज से छः बरस पहले तुमने देखा होता तब जानती जली रोटी किसे कहते हैं।
जवाब देंहटाएं........सच तब जली रोटी भी खुशकिस्मती से मिल पाती थीं । .
.....मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
्बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण है ये जली रोटी।
जवाब देंहटाएंभावनाओं से ओतप्रोत कहानी ....कभी ऐसे ही रोटी जलाया करते थे हम भी आपने याद दिला दिया
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयी़़़
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