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गुरुवार, 4 सितंबर 2014

नुमाइश


वो सुन्दर थी, पर सज रही थी
नुमाइश की तरह,
रंग रही थी खुद को
किसी इमारत की तरह।
सैंडल ऊंची पहन ली
क्योकि हाइट कम थी,
लगाया खूब फाउंडेसन
क्योकि व्हाइट कम थी।
अपने ही घर में
बैठी थी सिमटी चुपचाप,
मुसकराने और बोलने का
किया था खूब अभ्यास।
बाहर से लायी गयी
काजू वाली मिठाई,
और कहा जा रहा था
लडकी ने खुद बनाई।
मगर ये क्या लडके वालों को
इमारत पसंद ना आयी,
बिना टिकट बिना दाम के
खूब मिठाई खायी।
बोले चेहरे पर हैं
जाने कैसे निशान,
मेरी मानिये करवा लीजिये
इसका कुछ समाधान।
वरना आपकी कन्या
कुंवारी रह जायेगी,
दागदार किसी घर की
शोभा कैसे बढायेगी।


4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (05.09.2014) को "शिक्षक दिवस" (चर्चा अंक-1727)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. गुण न भाये , चेहरे पर जाए …
    इस समाज की यही गाथा !!

    जवाब देंहटाएं

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और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

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